बिहार पहुंचकर नरभसा गया कोरोना

बिहार पहुंचकर नरभसा गया कोरोना
व्यंग्य : – टीकाराम साहू ‘आजाद’
अच्छे-अच्छे नरभसा (नर्वस) जाते हैं बिहार में। एक बार शरद जोशी बिहार पहुंचने पर नरभसा गए थे, और अब कोरोना। दोनों की गति ‘घायल की गति घायल जाने’ वाली हो गई। जोशी जी हिंदी में अंग्रेजी के घालमेल को लेकर नरभसाए थे, तो कोरोना बिहार में अपनी बेइज्जती को लेकर। कोरोना के नरभसाने की ब्रेकिंग न्यूज सबसे पहले मैं दे रहा हूं, इसलिए हमारे अखबार की प्रति बढ़े, तो किसी के पेट में दर्द नहीं होना चाहिए। कोई विवाद हो इसके पहले ही घोषणा कर दूं-‘बाअदब, बाखबर, होशियार… अखबार पढ़ने के लिए मैंने पाठकों को पैसे नहीं बांटे हैं। लोग अपनी जेब से खरीद कर अखबार पढ़ रहे हैं।’
कोरोना का नरभसाना दुनिया के सामने नहीं आ पाता, यदि हम बिहार नहीं जाते। चुनाव की स्पेशल रिपोर्टिंग के लिए हमारा बिहार जाना हुआ (हम नहीं जाते तो भी चुनाव होता। कोरोना चुनाव नहीं रोक पाया, तो हम किस खेत का ‘मूला’ हूं)। पटना स्टेशन पर उतरने के बाद अपना सामान लेकर हम आगे बढ़े ही थे कि किसी के रोने की आवाज आई। देखा तो सामने ही सार्वजनिक बेंच पर बैठा व्यक्ति सुबक रहा था। हमने चुनाव में खड़े नेता की तरह प्यार जताने का नाटक करते हुए उसके रोने का कारण पूछा, तो वह हमें ऐसे देखने लगा जैसे 5 साल से उपेक्षा की शिकार जनता हाथ जोड़े नेता को। फिर वह दहाड़े मार कर रो पड़ा -‘बेइज्जती’।
मैंने पूछा- ‘किसकी?’
‘अरे भाई, मैं रो रहा हूं तो जाहिर है बेइज्जती भी मेरी हुई होगी।’ वह झल्लाते हुए बोला।
‘मियां, आखिर तुम हो कौन?
‘कोरोना’ उसने जवाब दिया और फिर रोने लगा।
कोरोना नाम सुनकर मुझे 440 वोल्ट का झटका लगा। अब तक लोगों को रुलाने वाला कोरोना आज खुद रो रहा था। किसी तरह खुद को संभालते हुए मैंने कहा-‘भाई, क्या हुआ कुछ बताओगे या यूं ही पहेलियां बुझाते रहोगे।’
कोरोना बोला-‘बाप! बिहार जैसी मेरी बेइज्जती दुनिया में कहीं नहीं हुई। चीन से निकलकर मैं पूरी दुनिया के चक्कर काट चुका हूं और पूरी दुनिया अस्पताल के चक्कर काट रही है। कहने को अमेरिका दुनिया का दादा है, लेकिन मेरी दादागिरी के आगे पूरी दुनिया पानी भर रही है, पर बिहार में आकर मेरी इतनी बेइज्जती हुई कि मैं पानी-पानी हो गया हूं। कोई डरता ही नहीं है मुझसे। ‘मां का डर न बाप का डर, बेटा बन गया वॉलिंटियर’ की तर्ज पर लोग खुलेआम घूम रहे हैं। अधिकांश लोग न मुंह पर मास्क लगा रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। न कहीं पर कोरोना की जांच हो रही है और न ही एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं। मां कसम! मेरी इतनी बेइज्जती कहीं नहीं हुई। बेइज्जती की इंतहा हो गई…’ कहते- कहते वह फिर रोने लगा।
कोरोना के सिर पर मैंने प्यार से हाथ फेरा तो फिर उसके दिल का गुबार फट पड़ा-‘मुआ चुनाव क्या आया, जैसे पूरा बिहार कोरोना मुक्त हो गया। लोग ऐसे गलबहियाँ डाले घूम रहे हैं, जैसे वर्षों पुराने बिछड़े यार। चुनावी सभाओं में इतनी भीड़ उमड़ रही है कि धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई। जैसे स्वयंवर में धनुर्धर अर्जुन को सिर्फ मछली की आंख दिखाई दे रही थी, वैसे ही चुनाव में नेताओं को हर मतदाता में सिर्फ वोट दिखाई दे रहा है। नेता जुमलों के तीर से मतदाता पर निशाना लगा रहे हैं। आश्वासन का चारा डाल मछली रूपी जनता को फांसने में जुटे हैं।
कोरोना बोला-‘मेरी इतनी बेइज्जती क्या कम थी, जो नेता अब वैक्सीन का लालीपॉप थमा रहे हैं। मेरा जोर और उछलकूद भले ही कम हो गया, लेकिन विज्ञान और वैज्ञानिक मेरे आगे पानी भर रहे हैं। पर यहां तो हद हो गई। अभी मेरा वैक्सीन भी नहीं बन पाया है और नेता ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ की तर्ज पर ‘तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें वैक्सीन दूंगा’ का वादा करते फिर रहे हैं।  
मैंने अपना राजनीति का ज्ञान बघारते हुए कहा-‘अरे पगले, तुम क्या जानो जुमले का खेल। जुमला उछालने में कोई पैसे थोड़े ही लगते हैं। जुमले हैं जुमलों का क्या, लेकिन भोली-भाली जनता जुमलों से ही भरमा जाती है। और फिर ग़ालिब मियां तो पहले ही कह गए हैं-‘दिल बहलाने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है।’
अचानक कोरोना का स्वर उत्तेजित हो गया-‘आधे बिहार में बाढ़ ने ऐसा कहर बरपा कि लोग संभल भी नहीं पाए, शहर से आए मजदूरों का दो जून की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल हो रहा है, महंगाई डायन मुंह फैलाए खड़ी है, लेकिन नेता चुनाव में मस्त है। चुनाव-चुनाव का खेल, खेल रहे हैं। कभी-कभी गरीबों का दुःख देखकर मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है और मैं उन्हें बख्श देता हूं, लेकिन नेताओं का पत्थर दिल नहीं पसीजता। मुझे राक्षस कहने वालों, अब बताओ सबसे बड़ा राक्षस कौन है?
कोरोना अपना दुखड़ा सुनाते हुए बोला-‘बिहार में आकर बहुत नरभसा गया हूं मैं। इतनी बेइज्जती की तो कल्पना भी नहीं की थी मैंने। कभी-कभी तो आत्महत्या का ख्याल आता है। सोचता हूं रेलगाड़ी के आगे कूद कर खुदकुशी कर लूं।’ जी में आया कह दूं…रेलगाड़ी क्या हवाई जहाज से छलांग लगा दे, लेकिन चुप्पी साध ली।
कोरोना की करुण कथा सुनकर मैं भी नरभसाने लगा हूं, आपके क्या हाल है?
((कार्टून साभार : श्री विनय चानेकर जी))






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