चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें

चैत्र शुक्ल नवरात्रि विशेष :
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दरअसल सालभर में दो बार नवरात्रि त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रिका मतलब है नौ दिव्य रातें। इस नौ रातें अवधि के दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। चूंकि यह नवरात्रि पहले चैत्र मास में आती है, इसलिए इसे चैत्र- नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। चैत्र नव रात्रि को वसंत- नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के पहले दिन को भी चिह्नित करती है। हिन्दू पंचाग के अनुसार यह नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के दौरान मनाई जाती है। महाराष्ट्रीयन इस नवरात्रि के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते है और कश्मीर में इसे नवरेह कहा जाता है। यह नवरात्रि उत्तरी और पश्चिमी भारत के साथ पूर्व भारत में भी उत्साहपूर्वक मनाई जाती है और वसंत ऋतु को और अधिक आकर्षक तथा दिव्य बनाती है। कुछ इलाकों में इसे उगादि, गुड़ी पड़वा नाम से भी मनाया जाता है।।

चैत्र नवरात्रि मनाने के कई कारण है। जैसे हिंदू धर्म के अनुसार चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा का जन्म हुआ था। कहा जाता हैं कि माँ दुर्गा के कहने पर ही भगवान ब्रम्हा ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसी वजह से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के पहले दिन विक्रमी सम्बत के चलन युक्त हिंदू नववर्ष भी सुरु होता है। कुछ कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था।वेदों तथा पुराणों में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों में इसे आत्म शुद्धि एवं मुक्ति प्राप्त करने का आधार माना गया है। चैत्र नव रात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दौरान सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है और उस विषुव संक्रांति से सौर- नववर्ष गणना किया जाता है।।

देश के कुछ हिस्सों में लोग नवरात्रि के दौरान व्रत रखते है। लोगों का मानना है कि उपवास करके वे अपने शरीर, हृदय, मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते है। इन नौ दिनों के दौरान लोग एक विशिष्ट उपवास आहार का पालन करते है। चैत्र नवरात्रि को लेकर कई सारी कथाएं भी प्रचलित है। इसी में से एक कथा के अनुसार रामायण काल में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने के लिए चैत्र महीने में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु उनकी उपासना की थी, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद प्रदान किया था। कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन ही हुआ था। अन्य लोकप्रिय हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपनी पत्नी को केवल इस नौ दिनों के लिए अपनी मां से मिलने की अनुमति दी थी।। 

चैत्र नवरात्रि के दौरान कई भक्तों द्वारा पहले तथा आखिरी दिन व्रत रखा जाता है। कई भक्त नौ दिनों के कठिन व्रत भी रखते है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग- अलग विधि से नवरात्रि पूजन होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है; यथा– शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। नवरात्रि के पहले दिन भक्त अपने घर में कलश स्थापना करते है। हिंदू मान्यता के अनुसार कलश को सुख- समृद्धि, वैभव एवं मंगल कार्यों का प्रतीक माना गया है। तत्पश्चात जौ (ज्वार) बोया जाता है, इसके लिए कलश स्थापना के साथ ही उसके चारों ओर थोड़ी मिट्टी भी फैलाई जाती है और इस मिट्टी के अंदर जौ बोया जाता है। नवरात्रि के पर्व में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। माँ दुर्गा के भक्तों द्वारा अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं की विशेष पूजा की जाती है। जिसमें नौ कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर पूरे सम्मान के साथ भोजन कराया जाता है और भोजन के पश्चात आशीर्वाद लेकर उन्हें दक्षिणा और उपहार दिए जाते है।। #साभार






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