10 करोड़ से अधिक संपत्ति वाले 14 विधायकों में 6 यादव व 4 भूमिहार

बिहार की राजनीति : धन की दौड़ में यादव विधायक सबसे आगे
बिहार विधान सभा के 162 विधायकों की संपत्ति एक करोड़ से अधिक
वीरेंद्र यादव.पटना
. बिहार विधान सभा के 162 विधायकों की संपत्ति एक करोड़ से अधिक है। अपनी सं‍पत्ति की घोषणा खुद विधायकों ने अपने शपथ पत्र में दर्ज की थी। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) ने 2015 में चुनाव परिणाम के बाद अपनी रिपोर्ट जारी की थी। नामांकन के समय सभी विधायकों की संपत्ति का ब्यौरा ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ के मार्च अंक में पढ़ सकते हैं।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में 14 विधायकों के पास 10 करोड़ से अधिक की संपत्ति थी। इसमें 6 विधायक यादव जाति के हैं, जबकि ऐसे 4 विधायक भूमिहार जाति के हैं। इन 14 विधायकों में मुसलमान, धानुक, पासी और ब्राह्मण एक-एक विधायक हैं। तीन सर्वाधिक अमीर विधायकों में दो भूमिहार और एक यादव हैं। सभी 243 सीटों के अध्ययन करें तो पता चलेगा कि सबसे ‘मालदार’ विधायक यादव और भूमिहार जाति के ही हैं। हालांकि पासी जाति के एक विधायक माल के मामले में चौथे स्थान पर हैं।
‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ के मार्च अंक में आप को विधायकों की संपत्ति के साथ विधान सभा की धधकती 55 सीटों का विवरण भी पढ़ने को मिलेगा, जहां यादव, राजपूत और भूमिहार जाति के उम्मीदवार आमने-सामने थे।
‘वीरेंद्र यादव इस्टीट्यूट आफ कास्ट स्टडी’ ने विधान सभा क्षेत्रों को तीन श्रेणियों में बांटा है। पहली श्रेणी धधकती सीटों की है, जहां यादव, राजपूत और भूमिहार के बीच कांटे की टक्कर होती है। इस श्रेणी में कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जहां इन जातियों को किसी चौथी जाति के साथ मजबूत मुकाबला होता है। इन सीटों पर पांचों साल राजनीति होती है।
दूसरी श्रेणी की सीट है सुलगती सीट। इस श्रेणी में वैसी सीटें हैं, जहां इन तीन जातियों का मुकाबला अन्य जातियों से है। इसमें कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जिस पर यादव, राजपूत और भूमिहार की भूमिका बहुत मायने नहीं रखती है। यहां ज्यादा प्रयोग की संभावना नहीं होती है और राजनीति भी सीजनल होती है।
तीसरी श्रेणी की सीट है ‘मरघटी सीट’। आरक्षित श्रेणी की सीटें इसी श्रेणी में आती है। यहां राजनीति सिर्फ चुनाव के समय होती है। उम्मीदवारी को लेकर दावेदारी भी ज्यादा आक्रामक नहीं होती है। इन सीटों पर चुनाव के समय दबंग जातियां अपनी भूमिका निभाती हैं, वह भी टिकट तय होने के बाद। बाकी दिनों में राजनीतिक स्थिरता सी बनी रहती है। इसकी वजह है कि इन सीटों पर राजनीति करने वाले चुनाव लडने वाले लोग अपनी जाति या जातीय वर्ग के बजाये सपोर्ट करने वाली जातियों के प्रति ज्यादा प्रतिबद्ध होते हैं। इस कारण जातीय राजनीति की होड़ में हाशिये पर चले जाते हैं।
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