बौराने लगी कोसी, बढ़ने लगे किनारा, बेबस आंखों से लोग देख रहे हैं बर्बादी!

Kosi-river-erosion-in-bhagalpurभागलपुर। कोसी नदी का तांडवभागलपुर। कहते हैं कि कोसी नदी हर साल अपना रुख बदलती है। इस बार भी कोसी ने अपना रुख बदलते हुए अपनी नियमित धारा से 5 किलोमीटर अंदर बहना शुरू कर दी है। जिससे इलाके में जबरदस्त कटाव हो रहा है। नवगछिया के मदरौनी गांव में हो रहे जबरदस्त कटाव को देख लोगों की नींद उड़ गई है। दरअसल, कोसी नदी में हो रहे इस कटाव को देखकर हर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे, किनारे खड़े लोगों के पैरों के नीचे से जमीन कब खिसक जाए कहना मुश्किल है। लगातार नदी खेतों व मकानों को अपनी आगोश में ले रही है और लोग बेबश निगाहों से अपना सबकुछ लुटते हुए देखने को मजबूर हैं। वहीं गांवों और ग्रामीणों को बचाने को लेकर न केवल प्रशासनिक महकमा बल्कि जनप्रतिनिधि भी उदासीन हैं, जिसका काफी मलाल ग्रामीणों को है, जबकि कटाव रोकने के लिए बोरे में बालू की जगह मिट्टी भरा जा रहा है, लोगों का कहना है कि इस कटाव को रोकने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है, बोरी में बालू नहीं मिट्टी भर कर रखी गई है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि कटाव रोकने का यह प्रयास कितना सफल होगा। वहीं अपने गावं का अस्तित्व के संघर्ष को लेकर गांव के लोग जद्दोजहद में जुटी है।

koshi flod in 2008

koshi flod in 2008

वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि कटाव निरोधी कार्य को लेकर लूट मची हुई है, धरातल पर कुछ भी काम नहीं हुआ है। कटाव निरोधी कार्य में लापरवाही एवं घपले से मदरौनी गांव का अस्तित्व अब खतरे में है। लोग पलायन भी करने लगे हैं अगर जल्द ही प्रशासन की तरफ से कटाव रोकने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया तो कोसी जल्द ही इस गांव और इस गांव जैसे दर्जनों गांव को अपनी आगोश में ले लेगी।

2008 में कोसी ने ढाया था कहर
कोसी ने 2008 में कहर बरपाया था। पिछले 50 साल में बिहार में ऐसी बाढ़ नहीं आई थी। बाढ़ ने 250 लोगों की जान ले ली थी और लाखों लोग बेघर हो गए थे। करीब 3 लाख घरों और 8 लाख 40 हजार एकड़ में लगी फसल नष्ट हो गई थी। बिहार के अररिया, पूर्णिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा और सुपौल जिले इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
 नेपाल के पानी से बिहार में आती है बाढ़
बिहार में बाढ़ आने का मुख्य वजह पड़ोसी देश नेपाल है। मानसून आते ही नेपाल के पहाड़ी इलाके में भारी बारिश होती है। वर्षा का पानी नारायणी, बागमती और कोसी जैसी नदियों से होते हुए बिहार के मैदानी इलाके में पहुंचता है। अधिक पानी होने पर नदियों का तटबंध टूट जाते हैं और निचले इलाके बाढ़ के चपेट में आ जाते हैं। बाढ़ से बचाव के लिए कोसी डैम और बांध बनाए गए हैं। नेपाल में स्थित इस डैम को भारतीय इंजीनियर कंट्रोल करते हैं। अधिक बारिश के चलते इस डैम के गेट को खोलना पड़ता है, जिससे निकलने वाला पानी बिहार में बाढ़ ला देता है।
 बांध नहीं सह पाते हैं पानी का प्रेशर
बिहार के 68.9 लाख हेक्टेयर जमीन को बाढ़ संभावित क्षेत्र माना जाता है। सरकार ने इस इलाके में 3,465 km लंबा बांध बनवाया है। इसमें से करीब 3 हजार km लंबा बांध कोसी के दोनों ओर बनाया गया है। इसके बावजूद बाढ़ का खतरा कम नहीं होता। कोसी अपना रास्ता बदलने के लिए बदनाम है। बारिश के पानी से भरी नदी जब रास्ता बदलती है तो किनारे पर मिट्टी का भारी कटाव होता है और बड़ा से बड़ा बांध टिक नहीं पाता।
 वनों की कटाई से अधिक आते हैं बाढ़
पिछले 5-6 दशक में कोसी और उसकी सहायक नदियों बागमती और कमला के कैचमेंट एरिया में भारी पैमाने पर वनों की कटाई हुई है। पेड़ों के जड़ मिट्टी को मजबूती से जकड़ कर रखते हैं और वे पानी के बहाव को भी धीमा करते हैं। जंगलों की कटाई से मिट्टी आसानी से बह जाती है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।





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