बिहार की महिला किसानों ने छोटी सी बगिया से मिटाई पूरे गांव की भूख

पुष्यमित्र

बिहार के जमुई जिले में एक ऐसा परिवार रहता है, जो हर साल हरियाली अमावस्या के दिन पौधे लगाता है। इस परिवार के बच्चे भी फूलों के पौधे लगाते हैं। पिछले कई सालों से यह परिवार इस परंपरा को निभाता चला आ रहा और अब इस घर का लगभग हर हिस्सा हरा-भरा हो गया है। द बेटर इंडिया ने हरियाली अमावस्या के दिन ही इस परिवार से बात-चीत की। जमुई के मोहनपुर गांव की रहने वाली संगीता देवी बताती हैं, “आज हरियाली अमावस्या थी, इस मौके पर मैंने अपने किचन गार्डन में केले और पपीते का पौधा लगाया, अपने बच्चों से भी फूल के पौधे लगवाये।”

मात्र एक डिसमिल ज़मीन, फायदा इतना ज्यादा
संगीता ने बताया, “हम हर साल, हरियाली अमावस्या के दिन पौधे जरूर लगाते हैं और मैं तो खासतौर पर अमावस्या से पूर्णिमा के दिन तक, पूरे पखवाड़े में रोज पौधा लगाती हूं। जैसे दुनिया भर में पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस मनाया जाता है, उसी तरह हम हरियाली अमावस्या मनाते हैं और आज से नहीं, बल्कि सदियों से मनाते आ रहे हैं।”

वह जब यह सब बता रही थीं, तो उनकी आवाज की चहक सुनने लायक थी। संगीता के घर के पास एक डिसमिल (0.01 एकड़) जमीन है, उस जमीन पर उन्होंने कई प्रकार की सब्जियां और फल लगा रखे हैं।

वह कहती हैं, “अभी करेला, कद्दू, भिंडी, बोरा, झींगा, नेनुआ, चठैल, बैगन की सब्जियां और मिर्च आदि मेरी बाड़ी (किचन गार्डन) में आपको भरपूर मिलेंगे। इस मौसम के बाद, हम गोभी और दूसरी सब्जियां लगा लेंगे। मतलब यह कि पूरे साल आपको मेरे किचन गार्डन में तरह-तरह की सब्जियां मिल जायेंगी। मेरे घर में रोज चार सब्जियां बनती हैं।”

संगीता का कहना है, “मैं खाने-पीने की काफी शौकीन हूं। अगर सब्जियां खरीदकर खानी पड़तीं, तो इस बारिश के महीने में रोज सौ रुपये खर्च करने पर भी मेरा यह शौक पूरा नहीं होता। लेकिन अभी तो घर में ये सब मुफ्त में उपलब्ध है। थोड़े बीज के पैसे और थोड़ी मेहनत लगती है बस। हम खाद भी गोबर से बना लेते हैं या फिर खुद वर्मी कम्पोस्ट तैयार करके उसका प्रयोग करते हैं। इससे खाद पर आने वाला खर्च भी बच जाता है।”

उनके किचन गार्डन के एक छोर पर छोटा सा वर्मी कंपोस्ट का गड्ढा भी बना है। निश्चित तौर पर संगीता देवी, जिस ग्रामीण खेतिहर समाज की सदस्य हैं, उनके जैसे कम आय वाले व्यक्ति के लिए यह सुविधा अनूठी है। कोरोना काल में एक वक्त पर जब गरीब तबके के लोगों को चावल या रोटी के साथ दाल खा पाना मुश्किल साबित हो रहा था, तो वहीं संगीता देवी रोज चार सब्जियों का पोषण और आनंद ले रही थीं।

यह कहानी सिर्फ संगीता देवी की ही नहीं है, बल्कि यह तो, जमुई जिले के 18 गांव, 150 पड़ोसी जिले, लखीसराय की 19 और समस्तीपुर की 47 महिलाओं की कहानी है। जिन्होंने कोरोना काल में अपने घर से सटी जमीन के छोटे से टुकड़े को किचन गार्डन में बदल दिया है।

पड़ोसियों की भी करती हैं मदद
इस किचन गार्डन से वह महंगाई और आर्थिक संकट के दौर में अपने परिवार को न सिर्फ अच्छा भोजन और पोषण दे पाती हैं, बल्कि थोड़ी बहुत आमदनी भी हासिल कर लेती हैं। संगीता देवी, जरूरतमंद पड़ोसियों की मदद भी करती हैं। संगीता व उनके पड़ोसियों के लिए मुसीबत भरे दौर में, यह पोषण और आजीविका का बेहतरीन मॉडल साबित हुआ।

ग्रामीण महिलाओं के पोषण और स्वावलंबन की यह शुरुआत, पिछले साल अक्टूबर महीने में हुई। जब पूरी दुनिया कोरोना की पहली लहर के झटके से पस्त हो चुकी थी। जमुई में किसानों के साथ काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस, उन दिनों बिहार सरकार के साथ मिलकर स्कूलों में पोषण वाटिका तैयार करने का काम कर रही थी।

लेकिन कोरोना की वजह से जब लंबी अवधि तक स्कूल बंद हो गए। तो पोषण वाटिका सूखने और बर्बाद होने लगी। तब ग्रीनपीस ने सोचा कि क्यों न इस काम को महिला किसानों के साथ किया जाए।

प्लैनिंग के साथ शुरू किया काम
ग्रीनपीस ने बिहार में महिलाओं के आर्थिक स्वाबलंबन के लिए काम करने वाली संस्था, ‘जीविका’ (आजीविका मिशन के तहत संचालित) से संपर्क किया और उनके साथ मिलकर 18 गांवों में महिलाओं के साथ यह अभियान शुरू किया। इस काम में लखीसराय की ‘खेती’ और समस्तीपुर की ‘ग्रीन वसुधा फाउंडेशन’ सहभागी बनीं।

बिहार के पहले जैविक ग्राम, केडिया को आकार देने वाले कृषि विशेषज्ञ इश्तेयाक अहमद, इस काम के अगुआ बने। उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने कोई नया काम किया है। किचन गार्डन का विचार काफी पुराना है। हम लोगों ने बस महिलाओं की राय से इसकी संरचना में थोड़े बदलाव किए।

उन्होंने कहा, “हमने इसके लिए चार से छह सौ स्क्वायर फीट की जमीन चुनी। फिर तय किया कि इस पर 40 प्रकार के पौधे लगाये जायेंगे। इनमें 25-26 तरह की सब्जियां, 7-8 तरह के फलदार पेड़ और बाकी जड़ी-बूटियों के पौधे होंगे। हमने ऐसी सब्जियां लगाने का फैसला किया, जिससे हर मौसम में कोई न कोई सब्जी उपलब्ध हो सके। एक फसल खराब हो, तो दूसरा सहारा दे सके। तभी किचन गार्डन वाले परिवार को पूरे साल पोषण मिल सकेगा।”

सफल साबित हो रहा यह मॉडल
संगीता देवी जैसी किसानों के किचन गार्डन में भी यह संरचना बखूबी नजर आती है। इसके अलावा उनके गार्डन में शरीफा, नीबू, अनार, आंवला, बेल, पपीता और केले जैसे फलों के पेड़ भी दिखते हैं।

इश्तेयाक अहमद का कहना है कि विपरीत मौसम और जलवायु संकट में भी ये छोटे से किचन गार्डन इन घरों को भूख और कुपोषण से बचाते हैं। इनके खेतों में अक्सर इतनी सब्जियां हो जाती हैं कि वे इन्हें बेचकर, थोड़े पैसे भी कमा लेते हैं।

दिलचस्प बात तो यह है कि ये तमाम किचन गार्डन पूरी तरह से ऑर्गेनिक हैं। यह मॉडल काफी सफल साबित हो रहा है और अब जीविका, इसे बिहार के हर जिले में दो हजार महिला किसानों के साथ लागू करने जा रही है।

जमुई जिले के जीविका के कृषि विशेषज्ञ कौटिल्य कहते हैं, “20X20 फीट जमीन पर न्यूट्रीशन गार्डन तैयार करने की हमारी पुरानी योजना रही है।

हालांकि इसमें जैविक खाद के इस्तेमाल की बाध्यता नहीं थी। ग्रीनपीस का काम हमें पसंद आया तो हमने सोचा कि ‘एक से भले दो’ और हम साथ हो गए। अब हमलोग जमुई जिले के 18 गांवों में साथ मिलकर जैविक तरीके से इस योजना को लागू कर रहे हैं।”

संपादनः अर्चना दुबे

https://hindi.thebetterindia.com से साभार )

कोरोना काल में पूरे गाँव की भूख मिटाई इन महिला किसानों की छोटी सी बगिया ने






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