लव जिहाद नहीं हैं तो कानून बनने से टेंशन क्यों ?

संजय तिवारी
सोशल मीडिया पर कोई मुसलमान नहीं मिलेगा जो ईमानदारी से इस बात को स्वीकार करे कि लव जिहाद जैसी कोई बात भी होती है। लेकिन कोई सरकार अगर इसे रोकने के लिए कानून बना दे तो सब कानून को समाप्त करने के लिए कोर्ट कचहरी की शरण लेते हैं। लाखों रूपया खर्च करके हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उस कानून को चुनौती देते हैं।
क्यों भाई, जब लव जिहाद जैसी कोई बात है ही नहीं तो उसे रोकने के लिए बनने वाले कानून से सिर्फ मुसलमानों को ही क्यों परेशानी है? आखिर दारुल उलूम देओबंद से जुड़ी जमात ए उलमा ए हिन्द को इतनी परेशानी क्या थी कि गुजरात में लव जिहाद रोकने वाले कानून को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दे दिया?
और हमारे कानून तो खैर हर प्रकार के असमाजिक तत्वों को मदद करने के लिए ही गढे गये हैं। तीस चालीस साल कांग्रेसियों की पीठ पर बैठकर कम्युनिस्टों और इस्लामिस्टों ने ऐसे ऐसे कानून बनावाये हैं कि हिन्दू धर्म को छिन्न भिन्न कर दिया जाए। कोर्ट तो कानून से बंधे होते हैं। वो वही बोलेंगे जो कानून कहेगा। और कानून अंतर्धार्मिक विवाहों को तो बढावा ही देता है। फिर उसमें जबर्दस्ती या लालच वाली बात से आप अंतर्धार्मिक विवाह को कैसे रोक सकते हैं?
इसलिए आज गुजरात हाईकोर्ट ने देओबंदी विचारधारा से जुड़ी जमात ए उलमा ए हिन्द की याचिका पर सुनवाई करते हुए लव जिहाद को रोकने के लिए बने कानून की कुछ धाराओं पर रोक लगा दिया। कोर्ट कानून के हाथों मजबूर है और कानून बनाने वाले कम्युनिस्टों, इस्लामिस्टों और कांग्रेसियों ने चुन चुनकर हिन्दुओं को नष्ट भ्रष्ट करनेवाले ही कानून बनाये हैं। क्या कर सकते हैं ?

(संजय तिवारी के फेसबुक टाइमलाइन से साभार)






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