बिहार में मेडिकल कॉलेजों को बंद करने की धमकी
पटना। मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया (एमसीआई) ने बिहार सरकार और इसके द्वारा चलाए जाने वाले मेडिकल कॉलेजों पर कड़ा रुख अपनाया है। सरकार पर निशाना साधते हुए काउंसिल ने कहा है राज्य सरकार अपने मुख्य सचिव के द्वारा कई बार मेडिकल कॉलेजों की कमियां और उनमें काबिज गड़बड़ियां दूर करने का वादा करने के बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं कर सकी है। काउंसिल का कहना है कि सरकार की ओर से मुख्य सचिव इस बारे में कई आश्वासन दे चुके हैं, फिर भी इस सिलसिले में कोई सुधार नहीं किया गया है। बिहार सरकार की आलोचना करते हुए एमसीआई ने हाल ही में राज्य सरकार को एक पत्र लिखा है। काउंसिल ने कहा कि उसकी टीम ने 2015-16 के शैक्षणिक सत्र के लिए बिहार के मेडिकल कॉलेजों का मुआयना किया। हालांकि 2014 में भी बिहार के मुख्य सचिव ने इस बारे में सुधार का वादा किया था, लेकिन एमसीआई की जांच टीम ने अपने मुआयने में पाया कि कॉलेजों के अंदर गंभीर कमियां और गड़बड़ियां अभी भी बदस्तूर बनी हुई हैं।
एमसीआई ने अपने पत्र में लिखा है, ‘जांच में हमारी टीम ने ऐसी गंभीर कमियां पाईं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है। यह दिखाता है कि आपकी राज्य सरकार अपने वादे और आश्वासन को निभाने में नाकाम रही। फिर भी, छात्रों के हित को ध्यान में रखते हुए कॉलेजों को 2015-16 के मौजूदा शैक्षणिक सत्र के लिए मंजूरी दे दी गई है।’
एमसीआई ने कहा कि वह राज्य सरकार की ओर से 2016-17 के शैक्षणिक सत्र के लिए किए गए किसी वादे को स्वीकार नहीं करेगी। पत्र में लिखा गया है, ‘नियमों का पालन करने में दिखाई गई नाकामी नकारात्मक अनुशंसा मिलने का कारण बन सकती है, जिसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार की होगी।’
बुनियादी सुविधाओं के अभाव से कहीं ज्यादा जिस बात से एमसीआई को गुस्सा आया है वह शिक्षकों की संख्या में भारी कमी है। आमतौर पर एमसीआई कॉलेजों को शिक्षकों की निर्धारित संख्या से 10-15 फीसद कम संख्या होने पर भी मेडिकल पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति दे देता है, लेकिन बिहार के सबसे बड़े और सम्मानित माने जाने वाले पीएमसीएच मेडिकल कॉलेज में भी 2016-17 के सत्र के लिए शिक्षकों की निर्धारित तादाद में 22.85 फीसद कमी पाई गई है। कई अन्य कॉलेजों में शिक्षकों की कमी 40 फीसद तक है।
एमसीआई की ओर से मिली नकारात्मक अनुशंसा का नतीजा यह होगा कि पावापुरी में हाल ही में खुले वर्धमान इंस्टिट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज और बेतिया स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज पर फिलहाल के लिए ताला लग जाएगा। इन दोनों कॉलेजों में 100 सीटें हैं। पटना मेडिकल कॉलेज में सीटों को घटाकर 150 से 100 कर दिया जाएगा। पटना स्थित एनएमसीएच और मुजफ्फरपुर, गया और भागलपुर स्थित मेडिकल कॉलेजों में भी 50 सीटें घटा दी जाएंगी। दरभंगा मेडिकल कॉलेज को 10 सीटों का नुकसान होगा।
इस पत्र में आधिकारिक तौर पर साफ-साफ लिखा गया है कि राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले मेडिकल कॉलेजों से आधी-अधूरी जानकारी वाले डॉक्टर तैयार होंगे। पत्र में लिखा है, ‘बुनियादी सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की कमी और मानव संसाधन की भारी कमी का नतीजा यह होगा कि इन कॉलेजों से आधी-अधूरी जानकारी वाले डॉक्टर तैयार होंगे। ए डॉक्टर चिकित्सीय तौर पर मेडिकल के पेशे की चुनौतियों से निपटने और इसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं होंगे। इससे लोगों की जिंदगी के लिए खतरा पैदा हो सकता है।’
शिक्षकों की कमी हर स्तर पर काबिज है। इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने डॉक्टरों के सेवानिवृत्त होने की आयुसीमा 65 से बढ़Þाकर 67 कर दी। लगता है कि सरकार की इन कोशिशों से ना तो एमसीआई खुश है और ना ही संतुष्ट ही है।
वहीं, डॉक्टरों के कुछ धड़े का आरोप है कि लंबे समय से उनकी पदोन्नति नहीं हुई है। उनका कहना है कि अगर राज्य सरकार ने समय पर पदोन्नति दी होती तो सहायक प्रफेसर और प्रफेसर स्तर पर शिक्षकों की संख्या में कमी नहीं आई होती।
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