देश के 150 पुलिस थानों में पीएम मोदी के खिलाफ मुकदमे दर्ज

देश के 150 पुलिस थानों में पीएम मोदी के खिलाफ मुकदमे दर्ज
bihar coverez डॉट कॉम् से साभार
फरवरी महीने की आखिरी तारीख को जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं को अपना बूथ मजबूत करने के टिप्स दे रहे थे, और इसी बहाने दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो कांफ्रेंसिग को संबोधित करने का रिकार्ड भी बना रहे थे, ठीक उसी रोज देश के अलग-अलग इलाके के मनरेगा कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने निकटवर्ती पुलिस थाने में जाकर पीएम मोदी के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया. अब तक मिली सूचना के मुताबिक देश के 50 जिलों के 150 पुलिस थानों में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुए हैं. युद्ध के उन्माद में डूबे देश के मिड्ल क्लास को जानना चाहिए कि मोदी जी के खिलाफ एक ही दिन में थोक में इतने मुकदमे क्यों दर्ज कराये गये.
दरअसल जिस मनरेगा के जरिये देश के करोड़ों अकुशल मजदूरों को साल में सौ दिनों की न्यूनतम मजदूरी की गारंटी भारत सरकार के कानून द्वारा दी गयी है, उसका कभी ठीक से पालन नहीं हुआ. इस सरकार के दौर में तो इस कानून की बुरी तरह उपेक्षा की गयी. पिछले पांच वर्षों में यह अनियमितता काफी बढ़ गयी थी. सरकार हमेशा कम फंड जारी करती, जिससे न मजदूरों को पर्याप्त काम मिलता, काम मिलता भी तो समय से मजदूरी जारी नहीं होती.
इस परिस्थिति को वैसा आदमी कभी समझ नहीं सकता, जो दिहाड़ी मजदूरी का जीवन नहीं जीता हो. जिसके लिए रोज कुआं खोद कर पानी पीने की स्थिति न हो. मनरेगा ने ऐसे मजदूरों के जीवन को काफी आसान किया था, मगर अब लचर क्रियान्वयन की वजह से मनरेगा तो समाप्ति की कगार पर है ही, इन मजदूरों का भी हाल बुरा है. जानकारों का मानना है कि इस साल मनरेगा के लिए कम से कम 88 हजार करोड़ की राशि जारी होनी चाहिए थी. मगर सरकार ने बजट में सिर्फ 55 हजार करोड़ की राशि आवंटित की. इस राशि को भी समय से जारी नहीं किया जाता रहा. ऐसे में मजदूरों का हाल तो बुरा होना ही था.
अक्टूबर, 2018 से 1 फरवरी, 2019 के बीच की अवधि में, मनरेगा योजनाओ में धन की अनुपलब्धता के कारण कई राज्यों में कोई भी फंड ट्रांसफर ऑर्डर (FTO) process नहीं किए गए, जबकि अधिनियम के प्रावधान के अनुसार काम करने के 15 दिनों के भीतर मजदूरी दिया जाना है. इस के बावजूद मजदूरों को मजदूरी के लिए लम्बा इंतजार करने के लिए मजबूर किया जाता है.
यह ध्यान रखना चाहिए कि मनरेगा कोई सरकारी कल्याणकारी योजना भर नहीं है, यह कानून है और इसके तहत रोजगार मांगने वालों को साल में 100 दिन न्यूनतम मजदूरी उपलब्ध कराने या उसके बदले मेहनताना देने की गारंटी दी गयी है. ऐसे में अगर कोई सरकार इससे इनकार करता है या इसमें हीला-हवाली करता है तो यह कानून का उल्लंधन है और आपराधिक दंड है. इसी वजह से इन मजदूरों ने एक साथ पीएम मोदी पर मुकदमा दर्ज कराया है.
ये मुकदमे देश भर के नौ राज्यों में हज़ारो की संख्या में मनरेगा मजदूरों ने अपने-अपने निकटवर्ती पुलिस थाने पहुंच कर सरकार के खिलाफ फिर दर्ज कराये हैं. बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मनरेगा मजदूरों ने करीब 50 जिलो में 150 पुलिस थाने में इकठ्ठा होकर एफआइआर दर्ज की है. इस एफआइआर के मुताबिक मजदूर प्रधानमंत्री को मजदूरों से झूठे वादे कराके काम कराने, उनके मजदूरी भुगतान में हो रही धोखाधड़ी और विशेष रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को उल्लंघन कर मजदूरों को नुकसान पहुंचाने जैसे से कई अपराधों का दोषी बताया है. देश भर में हजारों मजदूर और उनके परिवार ने अपनी लंबित मजदूरी की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इन मजदूरों ने मनरेगा कानून की प्रधान उल्लंघनकर्ता श्री नरेंद्र मोदी, भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 116 और 420 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का फैसला किया है.
इसके अलावा मनरेगा की इस धन संकट को दर्शाते हुए, एक पत्र जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) या उपयुक्त के माध्यम से देश भर के मजदूरों ने ग्रामीण विकास मंत्री को भेजा है, जिसमें नरेगा संघर्ष मोर्चा के और से यह मांग की गयी है के “… भारत सरकार को तुरंत 25000 करोड़ की धनराशि मनरेगा के लिए निर्गत करनी चाहिए जिससे की जून 2019 में चुनाव के बाद का आम बजेट पेश होने तक नरेगा का काम सुचारू रूप से चलायी जा सके.”
इस मांग के पीछे तर्क यह है कि, वित्त वर्ष 18-19 का मनरेगा का प्रारंभिक आवंटन 55,000 करोड़ रुपये थे, इसके बाद जनवरी 2019 में मनरेगा मजदूरों, नागरिक संगठनो और विपक्षी सांसदों के बढ़ते दबाव और आलोचना के कारण, इस कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त 6,084 करोड़ रुपये के अतिरिक्त फंड आवंटित किए गए. सरकारी आंकड़ो के अनुसार, इसमें से रु 5745 करोड़ पिछले वर्षो के लंबित मजदूरी के भुगतान करने में ही खर्च हो जाएंगे. इसलिए, जनवरी और मार्च 2019 के बीच में मजदूरों को काम दिलाने केलिए और योजनाओ का सुचारू क्रियान्वयन के लिए व्यावहारिक रूप से कोई धनराशि है ही नहीं.
(यह जानकारी NAPM द्वारा उपलब्ध करायी गयी है.)





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