गोपालगंज में जनकराम, गया में हरी मांझी हैं भाजपा के लिए जरूरी

जानिए क्यों नहीं कट सकता है गोपालगंज में भाजपा से जनकराम का टिकट 
विशेष संवाददाता, बिहार कथा. गोपालगंज. सियासी बयार में राजनीति का उंट कब किस करवट बैठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर गोपालगंज से भाजपा के सांसद जनक राम के टिकट काटने को लेकर कई लोग कयास लगा रहे हैं. इसको लेकर सोशल मीडिया में भी कंपने चलाए गए. लेकिन क्या होगा आगे, क्या कटेगा जनकराम का टिकट इसको लेकर कंपेन चलाने वाले लोगों में संशय बरकरार है. चुनाव की राजनीति वोटों के आंकडों का गणित है. इसके आगे इमोशन का तर्क नहीं चलता है, हां यह सही है कि इमोशन से वोटों का गणित गडबडाया जा सकता है. फिलहाल गोपालगंज के जो राजनीतिक हालात है, उसको देखें तो ऐसे कोई ठोस कारण नहीं दिखते हैं जिसकी वजह से भाजपा का आलाकमान जनकराम को टिकट से वंचित कर दूसरा उम्मीदवार मैदान में उतारने का जोखिम ले. अंदरखाने में जो विरोध की गपशप है, वह जिले तक ही समिति है. प्रदेश और देश स्तर के पार्टी आलाकमान तक वह सूर मजबूत से पहुंचे ही नहीं है.
फिलहाल बिहार में कुल छह सीट आरक्षित श्रेणी की है. इसमें से तीन सीट राम बिलास पासवान ने ले लिया है. हालांकि अंदरखाने की खबर यह भी है कि राम बिलास पासवान को तीन आरक्षित सीट देने के बजाय दो आरक्षित सीट देकर एक जनरल की सीट दी जाए. इस लिहाज से भाजपा गठबंधन के पास बचते हैं कुल तीन से चार आरक्षित सीट. इसमें से तय है कि बंटवारा आधे आधे का होगा. रामविलास ने यदि तीन आरक्षित सीटें ले ली है तो यह तय मानिए कि भाजपा पासवान समाज के वोट बैंक इन्हीं के सहारे साधेगी. दो सीट जदयू को दे देगी तो बाकी दो सीट बचेगी भाजपा के पास.
छेदीपासवान की तरह जनक राम ने नहीं तरेरी है आंखें 

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सासाराम के छेदीपासवान भाजपा के सांसद हैं. इन्होंने कांग्रेस की कद्दवार नेता मीरा कुमार को शिकस्त देकर लोकसभा का रास्ता तय किया था. तब नरेंद्र मोदी का लहर था. अच्छे  अच्छे दिग्गजों को धूल चाटनी पडी. लेकिन अब हालात वैसे नहीं है. सवाल है कि जब पासवान वोटों को भाजपा ने रामबिलास पासवान के सहारे साध लिया है तो क्या अब भी वह इस इस जोखिम भरे सीट पर मजबूती से दावा करेगी.  वह भी उस स्थिति में जब छेदी पासवान भाजपा को कई बार आंखे तरेर चुके हैं. गोपालगंज के सांसद जनक राम ने तो हर समय पार्टी के सूर से सूर मिलाया है. आंख तरेरनी की बात तो दूर की है.
महादलितों को जोडने होगा गया पर दावा

जीतनराम मांझी अब कहां हैं. अपने साढे तीन दशक की राजनीतिक कॅरियर में जीतन राम मांझी से घाट घाट का पानी पिया है. अब ले राजद खेमे वाले महागठबंधन की नाव पर हैं. भाजपा के पास महादलितों में दुसाध,पासी समाज को जोडने के लिए कौन सा चेहरा है. गाया से हरी माझाी राजद के रामजी माझी को करीब एक लाख से ज्यादा वोटों से हराकर जीत का सेहरा बांधा था. यदि यह सीट भाजपा जदयू को दे देगी तो उसके पास दूसरे सीटों पर महादलितों में दुसाध,पासी समाज को जोडने के लिए क्या बचेगा. करीब तीन प्रतिशत वोट इस समाज का है. लिहाजा राजनीतिक आंकडों के समीकरण इस सीट को भी भाजपा को अपने पास रखने के लिए मजबूर करेगा.

गोपालगंज में जनक राम को नहीं छोडेगी भाजपा  
बिहार में करीब छह प्रतिशत वोट रविवदास (चमार) समाज से है. इस बार बसपा ने भी जी जान से लग कर अपने कैडर वोटों को जोडने के साथ ही बिहार की राजनीति में अपना जनाधार बनाने की जी तोड मेहनत कर रही है. इसके लिए बिहार में यूपी के कुशल व अनुभवी कार्यकर्ता लगाए गए हैं. इस समाज के वोटों को भाजपा आखिर अपने पाले से तनिक सा भी सीखने का क्यों जोखिम लेने लगी. जनकराम के अलावा बिहार में भाजपा के पास दूसरा कौन सा चेहरा है जो इस समाज से आता हो. जहिर है अभी तो कोई सीटिंग एमपी भी इस समाज का नहीं है बिहार में भाजपा की ओर से. लिहाजा, गोपालगंज में सर्वाधित मतों से जीतने वाले नेता जनकराम को टिकट देना भाजपा की मजबूरी कहिए या जरूरी.





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