पुरे खेल में बिहार को क्या कुछ मिलेगा यही तो यक्ष प्रश्न है!

नड्डा के दम्भ ने नीतीश को अलर्ट किया और फिर वे पलट गए

अखिलेश अखिल

बिहार की एक चलती सरकार का वध हो गया। वध किसका होता है ?जो आततायी हो जाए ,दम्भी हो जाए ,सामने वाले को त्याज्य जिव जंतु मानाने लगे। घमंड से परिपूर्ण। और यह सब ऐसे नहीं होता। महादेव कहते हैं कि वे वैरागी है। न उन्हें सम्मान का लोभ है न अपमान का भय। कितनी बड़ा दर्शन है यह। आगे महादेव यह भी कहते हैं कि शक्ति के साथ उत्तरदायित्व के सही संतुलन से ही जीवन चलता है। जो शक्तिशाली है उसे अपने उत्तरदायित्व के प्रति भी सचेत रहना चाहिए। नहीं तो नाश निश्चित है। तो कहानी यही है कि बीजेपी के दम्भ और विस्तारवादी नीति को भांपकर जदयू ने बीजेपी का साथ छोड़कर उसी समाजवादी धरे के साथ हो लिए जहाँ से लौटकर नीतीश कुमार पलटू राम से अलंकृत हुए थे। लेकिन इस बार नीतीश कुमार दिनकर की कविता का जाप कर रहे हैं। उठो पार्थ गांडीव सम्हालो —- यह सब आगे की लड़ाई की दुदुम्भी है। बीजेपी आठ सालो में काफी शक्तिशाली हुई। मोदी और शाह के नेतृत्व में बीजेपी की अलग छवि बनी। ऐसी छवि जिसकी कल्पना भी नहीं जी सकती। व्यापार साधने के जितने गुण -दोष होते हैं राजनीति पर अमल किया गया। साम ,दाम ,दंड भेद को अपना गया .बीजेपी लहराने लगी। देश के कई राज्यों में सरकार बनी। लेकिन ये सभी सरकार चुनाव जीतकर नहीं तोड़कर बनाये गई ,कौन बोलेगा ? किसकी मजाल ! विपक्ष को धूल चटाकर ,डराकर ,धमकाकर ,निपटाकर और बांटकर विकलांग किया गया। सब कराह रहे हैं। कल तक जो नेता कांग्रेस और और दलों में पड़े थे उसे बीजेपी ने साधा। खिलाया ,पिलाया और अपना लिया गया। सब बम बम। मीडिया को बौना किया गया। पत्रकारिता और पत्रकार नाली और कूड़े में फेंक दिए गए। जो मौजूद हैं वे पत्रकार नहीं मीडिया के लोग हैं। नयी परिभाषा है।
और देश की जनता ! उसके बारे में क्या कहने ! लोभी जनता को पहले धर्म की चासनी में लपेटा गया। पांच सेर अनाज और कुछ नकदी से उसे गुलाम बनाया गया। पिछले 70 साल की उपलब्धि को नकारा गया और उसी लोभी जनता से ताली और थाली पिटवाई गई। जो पढ़े थे उसे अनपढ़ बनाया गया और जो अनपढ़ थे उसे जड़। चालक लोग मूर्खों पर शासन करते हैं। लेकिन जब चालाकी में धर्म का ओट हो तो क्या कहने !
बीजेपी का घमंड सातमे आसमान पर है। नेताओं की बात कौन करें उसके भगवा धारण करने वाले शुतुरमुर्ग चरित्र वाले कथित भगवाधारियों का बखान करने लगूं तो उपंन्यास बन जाए। लेकिन इससे लाभ क्या ! पाखंड फलता फूलता जो है।
मौजूदा समय में बीजेपी को चुनौती कौन देगा ? किसकी मजाल है ? जो बोलेगा वह बचेगा नहीं। उसकी राजनीति जाएगी या फिर जेल के भीतर। चुकी राजनीति पाखंड ,ठगी और लुटेरों की मण्डली होती है। गिरोह है। जो गिरोह ताकतवर हुआ सबको ख़त्म किया। चम्बल के डकैतों की कहानी को पढ़िए तो राजनीतिक डकैतों पर शर्म आती है। आज बीजेपी सबसे ताकतवर है। सभी मुख्यमंत्री बीजेपी के दबाव में है। गैर बीजेपी सरकार भी बीजेपी से पंगा नहीं लेती।
बीजेपी कहती है कि देश के सभी नेता चोर हैं लेकिन बीजेपी में कितने चोर बैठे हैं और कितने ठग यह कौन जाने ! इनपर तो कार्रवाई तब होगी जब बीजेपी की सरकार जाएगी। तब मौकापरस्त पाखंडी बीजेपी को छोड़ कही और दखल देंगे।
नड्डा घमंड में चूर थे। बीजेपी ही जब घमंड में चूर है तो नेता की क्या बिसात ! नड्डा पिछले सप्ताह पटना पहुंचे। पटना में ही पढ़े लिखे नड्डा पटना में ही छात्रों के विरोध का सामना करते रहे। पार्टी नेताओं के बीच ऐलान किये कि आने वाले दिनों में देश में कोई क्षेत्रीय पार्टी नहीं बचेगी। बड़ा ऐलान था। जदयू जैसी क्षेत्रीय पार्टी के साथ बिहार में वह सरकार भी चला रहे हैं और उसे खतम करने का उद्घोष भी कर रहे थे उसी पटना में। गजब का खेल था। नीतीश कुमार चिहुंक गए। मंथन किया तो पता चला कि महाराष्ट्र की तरह ही जदयू में भी बीजेपी ने एकनाथ शिंदे खड़ा कर रखा है। पहचान हुई तो नीतीश के सबसे करीबी आरसीपी सिंह निकले। खेल का भान होते ही नीतीश ने आरसीपी किया और ऑपरेशन तीर चलाया।
सारे समाजवादी एक हुए। कांग्रेस और लेफ्ट भी सहयोगी बने। नीतीश का का ऐलान बीजेपी के लिए खतरा बना। 2024 के गुमान पर पानी फिरता दिखा। बिहार में सरकार अब नयी होगी। बीजेपी के विधायक बेरोजगार होंगे और नए विधायकों को रोजगार मिलेगा। लेकिन इस पुरे खेल में बिहार को क्या कुछ मिलेगा यही तो यक्ष प्रश्न है।



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