कौन होते हैं धन्ना सेठ, क्या आप जानते हैं धन्ना सेठ की कहानी

संजय तिवारी
आप जानते हैं धन्ना सेठ वाली कहानी कहां से आयी ? आइये जानते हैं।
चौदहवीं सदी में धन्ना जाट का जन्म राजस्थान में हुआ था। बहुत उदार और दानवीर। धन्ना जाट पर बचपन में ही ईश्वर की कृपा हो गयी। कहते हैं कन्हैया उनके साथ गैय्या चराते थे। बचपन में एक पंडित जी उनके घर आये तो धन्ना ने जिद्द करके उनके शालिग्राम को मांगा। अब भला पंडितजी अपना शालिग्राम किसी बच्चे को कैसे दे देते? इसलिए एक काला पत्थर पकड़ा दिया कि यही तुम्हारे शालिग्राम है। धन्ना जाट ने उन्हें ही सालिग्राम समझकर रख लिया। पंडित जी ने कहा था कि बिना शालिग्राम को भोग लगाये भोजन न करना तो धन्ना की बाल बुद्धि भोजन लेकर बैठ जाती शालिग्राम के सामने। शालिग्राम भला कैसे भोजन करेंगे? इसलिए बालक धन्ना ने भी अन्न त्याग दिया। जिद्द ये कि जब तक भगवान आकर भोग नहीं लगायेंगे, वो भोजन नहीं करेंगे।
कहते हैं एक दिन धन्ना की जिद्द से भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनकी रोटी खायी। तब से जब तब भगवान कृष्ण उन्हें दर्शन देते। कई बार धन्ना उनसे अपना गाय भी चरवाते। दोनों बालक गाय चलाते हुए साथ में खूब खेलते। धन्ना थोड़े बड़े हुए तो काशी जाकर स्वामी रामानंदाचार्य से दीक्षा ग्रहण की और वैष्णप संप्रदाय के महान संत बने।
धन्ना जाट की साधु संगत रहती थी। नित्य प्रति साधुओं की सेवा करते थे। उस जमाने में साधुओं की टोलियां चलती थीं। कोई न कोई टोली धन्ना भगत के घर टिकी ही रहती। इससे नाराज होकर पिता ने कुछ उल्टा सीधा कह दिया। फिर भी धन्ना भगत की साधू सेवा कम नहीं हुई। एक बार उन्होंने बोने के अनाज को बेचकर उन्होने साधुओं के लिए भंडारा कर दिया। और लोगों को दिखाने के लिए खेत में रेत और मिट्टी बो दिया। कहते हैं जिस खेत में उन्होंने सिर्फ दिखाने के लिए रेत और मिट्टी बोई थी उसमें भी लहलहाती फसल हुई। खैर, धन्ना भगत अपनी दानशीलता के लिए बहुत विख्यात थे। सुखाड अकाल में उनके घर का भंडार सबके लिए खुला रहता था।
इसलिए धीरे धीरे उनके ही नाम पर धन्ना सेठ वाली कहावत प्रचलित हो गयी। धन्ना भगत वैष्णव संत थे लेकिन उनकी वाणी को गुरुग्रंथ साहिब में भी संकलित किया गया है। उनके जन्मस्थान धुंआ कला पर सिखों ने एक गुरुद्वारा भी बनवाया है।
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