गठबंधन की राजनीति का कार्यकर्ताओ पर ‘साइड इफेक्ट’

दुर्गेश यादव

दिल्ली में केजरीवाल अकेले चुनाव लड़े भाजपा को हरा दिया कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ते भाजपा जीत जाती ।

कांग्रेस ही भाजपा है और भाजपा ही कांग्रेस है इन दोनों में वही अंतर है जो गंगाधर और शक्तिमान में था ।

यूपी में अखिलेश भाई कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़े भाजपा की सरकार बन गई ।

मायावती से गठबंधन कर के लड़े फिर भी भाजपा जीत गई ।

कर्नाटक में जेडीएस अकेले लड़ा सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच गया ।

राजस्थान , मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अकेले लड़ा भाजपा को हरा दिया ।

गठबंधन पॉलिटिक्स से जनता का भरोसा खत्म हो चुका है गठबंधन हार का सबसे मुख्य कारण हो सकता है ।

गठबंधन करके हारने के बाद हार का विश्लेषण भी ठीक से नहीं हो पाता है कि आखिर क्यों हार गए?

कोई भी दल सरकार बनाने की इच्छा रखता है तो एक ही कारण होता है कि उस दल के कार्यकर्ता राज्य के कोने कोने में होते हैं गठबंधन करके अपने कुछ कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने से वंचित कर देना और कुछ कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचा देना कार्यकर्ताओं के साथ भी बेईमानी है ।

गठबंधन नहीं होगा तो पार्टी का हर कार्यकर्ता अपनी क्षमता के अनुसार चुनाव लड़ेगा जीत और हार के बाद आगे की तैयारी करेगा संघर्ष करेगा ।

किसी भी राजनीतिक दल का किसी दल से लंबे समय तक गठबंधन रहता है तो उस दल का जनाधार धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है और 1 दिन समाप्त हो जाता है अतः राजनीतिक दल को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए अकेले भी चुनाव लड़ना चाहिए अकेले चुनाव लड़ने से उसकी नीति और नेता दोनों की क्षमता की परख जनता के बीच होती है ।

गठबंधन का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि अंत तक हर क्षेत्र के कार्यकर्ता इस बात को लेकर आशंकित रहता है कि मेरे लाख मेहनत करने के बाद गठबंधन के सहयोगी दल मेरे ही सीट पर अपना दावेदारी ठोक दे और गठबंधन बचाना नेता की मजबूरी हो तो मेरी सीट सहयोगी दल को चली जाएगी ।

इस भाय के कारण सभी सीटों पर कार्यकर्ता तैयारी ठीक से नहीं करते हैं जिसका खामियाजा दल को और नेता दोनों को भुगतना पड़ता है और रिजल्ट नकारात्मक होता है ।

इसलिए मेरा मानना है राजद को चुनाव में अकेले जाना चाहिए इससे दल के जनाधार विस्तार को बल मिलेगा और नेता की स्वीकार्यता राज्य के हर क्षेत्र में बढ़ेगी ।

चुनाव बाद बहुमत न मिलने की परिस्थिति में पार्टी के नीति और सिद्धांतों का ख्याल रखते हुए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत दल को गठबंधन का हिस्सा बनकर सरकार में शामिल होना नेतृत्व के इच्छा पर निर्भर रहना चाहिए ।






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