आपदाओं पर आत्ममंथन की जरूरत

नीतीश पाण्डेय, अधिवक्ता, दिल्ली
आज सोशलमीडिया ने सुचना प्रसारण में शिक्षा की बाधा को समाप्त कर दिया है, सबको थोड़ी- बहुत जानकारी हो जाती है, देश- दुनिया में हो रही उथल- पुथल के बारे में | स्मार्ट फ़ोन की पहुँच ने सबकुछ आसान कर दिया है |जब बिहार- झारखंड /उत्तरप्रदेश के किसी गाँव से कोई दिल्ली, मुम्बई, सुरत कमाने के लिए जाता है, तो अपने साथ वह व्यक्ति अपने राज्य सरकारों के निक्कमेपन को साथ लिए घुमता है, बार-बार ताना सुनना पड़ता है, लेकिन उस मजबूर मजदूर के लिए घरवापसी आगे कुआँ पीछे खाई जैसा लगता है |सभी राज्य सरकारें अगर अपने लोगों के रोजीरोटी की व्यवस्था उनके गृहराज्य में ही कर दें, तो बेरोजगारी, पलायन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सभी समस्या एक झटके में ही समाप्त हो जाती |लोग अपने राज्य को अपना मानकर उसे सवारने में दिल लगाते, जब वहाँ की सरकार उन्हें अपना मानती |राजनीतिक पार्टियों को जनता की याद केवल चुनाव में आती है, जबकि जनता चुनाव के बाद हर पल अपने नेता को याद करते रहती है, जब स्कूल में पढाने वाला शिक्षक महीनों हड़ताल पर रहता है, क्योंकि उसका बेटा तो किसी बडे़ स्कूल में पढता है! जब कोई गरीब समय पर इलाज न मिलने के अभाव में दम तोड़ देता है, क्योंकि पैसे वालों के लिए बडे़- बडे़ नीजि अस्पताल बने हैं |
नेताओं को जनता की समस्याओं से सरोकार नहीं है, क्योंकि आजकल चुनाव जाति-धर्म-धन से जीते जाते हैं |कहने का तात्पर्य है कि हम स्वयं जिम्मेदार है, आज हम यदि व्यवस्था में कमी पर नेताओं को गाली दे रहे हैं, अपनी बेरोजगारी पर उन्हें दोषी बना रहे हैं, तो ये मात्र दिखावा है और कुछ नहीं|हर पांच साल में एक बार मौका मिलता है अपनी गलती सुधारने का – वोट देते समय तब हम अपनी जाति के प्रत्याशी को ढूंढने लगते हैं , कभी किसी नेता के नाम पर, तो कभी पार्टी के नाम पर, और जब कुछ नहीं बचता तो कुछ रूपयों पर, हम अपने को सौंप देते हैं, रामभरोसे |
हमें अपनी जिम्मेदारी समझना होगा | आज आपदा की घड़ी कोई नई नहीं है, इससे पहले भी बड़ी से बड़ी महामारियों से हमलोग मुकाबला कर के निकले हैं, वो भी तब जब आज की तुलना में हमारे पास संसाधन नहीं थे, तकनीकी रूप से विकसित नहीं थे, सुचनाओ का आदानप्रदान इतना सरल नहीं था |हमने भुखमरी जैसे हालात में भी जीना सिखा है | बाढ़ से हर साल जुझते रहते हैं| बेरोजगारी आजीवन कारावास जैसा है, जबतक धरती पर जीवन है, समस्या बनी रहेगी|इन सभी समस्याओं के जड़ में एक समस्या जनसंख्या है, हमारे पास जितनी संसाधन मौजूद है, उससे ज़्यादा रोज नये दावेदार जन्म ले लेते हैं, इसके लिए हमारी शिक्षा भी जिम्मेदार है| हर समस्या किसी न किसी रूप से आपस में जुडी़ हुई है |एक- एक व्यक्ति को आत्ममंथन की जरूरत है, अब भी समय है, यदि आज से ही, इसकी शुरुआत हम स्वयं से कर दे, तो भविष्य में आने वाली हर चुनौतियों से निबटा जा सकता है |
सवाल है, हमें क्या करना चाहिए?
जबाब- अगर आप अभिभावक हैं, तो अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के शिक्षा पर ध्यान दें |
अगर आप नये शादीशुदा जोडे हैं तो किसी और के लिए बच्चों की लाइन न लगाएं, बच्चे कम से कम पैदा करें, दो से ज्यादा नहीं |उनके स्वास्थ्य एवं शिक्षा की व्यवस्था कर सकने की स्थिति हो तभी पैदा करें |
अगर आप युवा हैं, और माँ-बाप आपकी पढाई की जिम्मेदारी उठा रहे हैं, तो पुरी ईमानदारी से पढ़े, ताकि बेरोजगार न रहे
अगर आप महिला हैं, तो अपने बच्चों सहित, परिवार के अन्य पुरूषों को दुसरी महिलाओं के प्रति सम्मान करना सिखाएं |
… और अगर आप जिवित जिम्मेदार इंसान हैं, तो किसी अन्य के भरोसे न रहे |अपने गाँव के विधालय में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में , स्वास्थ्य सुविधा की सुचारू व्यवस्था में, टुटे सडकों की मरम्मत में, भ्रष्टाचार रोकने में एवं समाज को विकसित बनाने में सरकार का सहयोग करे |
आजकल खाली समय है, तो आत्ममंथन करें, अगर हर कोई ऐसे ही जिम्मेदारी निभाने को तैयार हो जाए, तो सोशलमीडिया पर भडास निकालने की नौबत न आयेगी |






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