COVID-19 को लेकर मोदी सरकार कितनी लापरवाह

COVID-19 को लेकर मोदी सरकार कितनी लापरवाह है ईस पर रविश कुमार की यह रिपोर्ट पढ़िये और मोदी सरकार का असंवेदनशील रवैया जान लिजिये ।
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कोरोना से लड़ने के लिए डॉक्टरों को चाहिए रोज़ 5 लाख बॉडी कवर PPE, लेकिन डॉक्टरोंके पास न मास्क है न दास्ताने ।

कोरोना कवरेज़ की तस्वीरों को याद कीजिए। चीन के डाक्टर सफेद रंग के बॉडी कवर में दिखते थे। उनका चेहरा ढंका होता था। हेल्मेट जैसा पहने थे। सामने शीशा था। आपादमस्तक यानि सर से लकर पांव तक सब कुछ ढंका था। इस बाडी कवर के कई पार्ट होते हैं। इन्हें कुल मिलाकर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट PPE कहते हैं। कई तस्वीरों में बॉडी कवर पर भी छिड़काव किया जाता था कि उतारने के वक्त ग़लती से कोई वायरस शरीर के संपर्क में न आ जाए। इसी को हज़मत सूट भी कहते हैं। इसे एक बार ही पहना जाता है। इसके पहनने और उतारने की एक प्रक्रिया होती है। पहनने को Donning कहते हैं। उतारने को Doffing कहते हैं। Doffing के लिए अलग कमरे में जाना होता है। इस तरह से उतारा जाता है जैसे पीछे से कोई कोट खींचता हो। फिर स्नान करना होता है जो उसी कमरे के साथ होता है तब जाकर डॉक्टर अपने कपड़ों में बाहर निकलता है।

देश भर के डॉक्टर अपनी सुरक्षा के लिए ज़रूरी इन बुनियादी चीज़ों को लेकर बेहद चिन्तित हैं। उनके होश उड़े हैं। जब वही संक्रमित हो जाएंगे तो इलाज कैसे करेंगे? वैसे ही देश में डॉक्टर कम हैं, नर्स कम हैं, अगर यही बीमार हो गए, तो क्या होगा? अगर डॉक्टर पूरी तरह से सुरक्षा के उपकरणों से लैस नहीं होंगे तो मरीज़ के करीब ही नहीं जाएंगे। तो अंत में इसकी कीमत मरीज़ भी चुकाएंगा।

आप एक सिम्पल सवाल करें। अपने डॉक्टरों और नर्स की ख़ातिर।

भारत में इस वक्त कितने PPE उपलब्ध हैं? हर उस अस्पताल में जहां कोरोना के संभावित मरीज़ों की स्क्रीनिंग हो रही है या इलाज चल रहा है वहां पर चांदी की तरह चमकने वाले बॉडी कवर PPE कितने हैं?

क्या आपको पता है कि भारत को हर दिन पांच लाख PPE की ज़रूरत है? कितना है पता नहीं। लेकिन कारवां पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने इसके लिए सरकारी कंपनी HLL को आर्डर किया है। कि वह मई 2020 तक साढ़े सात लाख PPE तैयार कर दे और 60 लाख N-95 मास्क तैयार कर दे और एक करोड़ तीन प्लाई मास्क।

क्या यह संकट देश से छुपाया गया? क्या सरकार सोती रही? इस पर थोड़ी देर बात आते हैं।

इस वक्त जब ये लिख रहा हूं बिहार के दरभंगा मेडिकल कालेज से ख़बर आ रही है कि वहां के डॉक्टरों ने काम करने से मना कर दिया है। उनके पास ज़रूरी दास्ताने और मास्क नही है। भागलपुर मेडिकल कालेज और पटना मेडिकल कालेज के डाक्टर और मेडिकल छात्रों के होश उड़े हैं कि बग़ैर सुरक्षा उपकरणों के कैसे मरीज़ के करीब जाएंगे। सरकार जानबूझ कर उन्हें मौत के मुंह में कैसे धकेल सकती है?

एम्स के रेज़िडेंट एसोसिएशन ने डायरेक्टर को पत्र लिखा है। जब RDA ने एम्स के अलग अलग वार्ड में चेक किया कि आपात स्थिति में कितने पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर हैं तो पता चला कि ज़्यादातर वार्ड में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामान पूरे नहीं हैं। RDA ने एम्स प्रशासन से अनुरोध किया है कि डॉक्टरों और नर्स के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर(PPE) की पर्याप्त व्यवस्था की जाए।

हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी ने जबलपुर के अस्पताल से एक रिपोर्ट भेजी है। जहां पर मध्यप्रदेश के चार पोज़िटिव मरीज़ भर्ती हैं। इस अस्पताल में N-95 मास्क सभी डॉक्टर के लिए नहीं हैं। उसी के लिए है जो मरीज़ के करीब जा रहा है। रही बात PPE की तो वह नहीं है।

क्या यह क्रिमिनल नहीं है? दिसंबर, जनवरी और फरवरी गुज़र गया, इस मामले में क्या तैयारी थी? क्या हमारे डॉक्टरों की सुरक्षा उन्हें थैंक्यू बोलने से हो जाएगा, क्या उनके लिए सुरक्षा के उपकरण पर्याप्त मात्रा में पहले से तैयार नहीं होने चाहिए? तो फिर हम तैयारी के नाम पर क्या कर रहे थे? क्या हमने ढाई महीने यूं ही गंवा दिए?

अब आइये कारवां पत्रिकार की रिपोर्ट पर। आपको पूरी रिपोर्ट पढ़नी चाहिए। इसका कुछ हिस्सा यहां बता रहा हूं। विद्या कृष्णन की रिपोर्ट है।

कारवां पत्रिका की रिपोर्ट पढ़िए। इसकी रिपोर्ट इसी पर सवाल उठा रही है कि दो से तीन महीने के दौरान भारत डाक्टरों और नर्स के लिए सुरक्षा के उपकरणों का संग्रह क्यों नहीं कर सका? 18 मार्च को प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं। 19 मार्च को सरकार भारत में बने PPE के निर्यात पर रोक लगाती है। इसके तीन हफ्ते पहले यानि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बता दिया था कि कई देशों में PPE की सप्लाई बाधित हो सकती है। तीन हफ्ते तक सरकार सोती रही। आखिर जनवरी से लेकर मार्च कर निर्यात की अनुमति दी ही क्यों गई?

भारत में 30 जनवरी को पहला केस सामने आता है। 31 जनवरी को विदेश व्यापार निदेशालय हर प्रकार के PPE के निर्यात पर रोक लगता है। लेकिन 8 फरवरी को सरकार इस आदेश में संशोधन करती है। सर्जिकल मास्क और दास्तानों के निर्यात की अनुमति दे देती है। 25 फरवरी को जब इटली में संक्रमण से 11 मौतें हो चुकी थीं तब भारत सरकार एक बार और इस आदेश में ढील देती है। आठ नए आइटमों के निर्यात की अनुमति दे देती है। यानि 31 जनवरी के आदेश को पानी-पानी कर देती है।

नतीजा यह है कि आज भारत के डॉक्टरों और नर्स के पास सुरक्षा के उपकरण नहीं हैं? आज भारत के डॉक्टर सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें संक्रमण का ख़तरा है। अब मैं थाली के बारे में और नहीं बोलूंगा। लेकिन आप सवाल तो करेंगे न कि सब कुछ राम भरोसे ही चलेगा या काम भी होगा। क्या काम हुआ कि आज कोरोना का इलाज कर रहे हैं डाक्टरों के पास हज़मत सूट नहीं है PPE नहीं है?

कारवां की रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य संगठनों के कार्यकर्ता स्वास्थ्य मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय के फैसलों को लेकर परेशान हैं। PPE के उत्पादन को लेकर सरकारी कंपनी HLL को नोडल एजेंसी बनाया गया है। ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाला है कि HLL के एकाधिकार को खत्म किया जाए। ढाई महीनों में सरकार स्थानीय निर्माताओं को आर्डर कर सकती थी। ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की असोला कहती हैं कि मई 2020 तक HLL को साढ़े सात लाख PPE की सप्लाई करने को कहा गया है जबकि हर दिन 5 लाख PPE की ज़रूरत है। आप कारवां की पूरी रिपोर्ट पढ़ें। लापरवाही के ऐसे किस्से मिलेंगे कि आप सोच भी नहीं सकते हैं।

क्या न्यूज़ चैनलों पर इन सब सवालों को उठाकर आपकी जान की सुरक्षा को दुरुस्त किया जा रहा है? मेरा मानना है कि ऐसे विषयों की रिपोर्टिंग सिर्फ कुछ अख़बारों और वेबसाइट पर हो रही है। न्यूज़ चैनल अभी भी जागरूकता के नाम पर प्रोपेगैंडा कर रहे हैं। कम से कम आप अब जब इन चैनलों को देखें तो ध्यान दें कि इन सवालों और तैयारियों को लेकर कितनी ख़बरें हैं और दावों का परीक्षण किया जा रहा है या नहीं। वहां केवल हाथ साफ कैसे रखें और बीमारी के लक्षण की बेसिक जानकारी दी जा रही है। तैयारी को लेकर सारी सूचनाएं नहीं हैं। ऐसे ऐसे डॉक्टर बैठे हैं जो सरकार पर दो सवाल नहीं उठा सकते हैं। अपना टाइम काट रहे हैं टीवी पर। आखिर इन डाक्टरों ने अपने जूनियर डाक्टरों के लिए क्यों नहीं हंगामा किया कि उनके पहनने के लिए PPE नहीं हैं। N-95 मास्क नहीं है। क्यों नहीं इन फेमस डॉक्टरों ने हंगामा किया? क्या ये डॉक्टर दोषी नहीं हैं?

प्रोपेगैंडा की भी एक सीमा होती है। यह वक्त तमाशे का नहीं था। आख़िर ढाई महीने से भारत क्या तैयारी कर रहा था कि डॉक्टर और नर्स के पास सुरक्षा के उपकरण तक नहीं हैं?






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