बिहार की हिडेन हिस्ट्री : नमिनाथ का धनुष

नमिनाथ का धनुष
-पुुष्य मित्र

जैन धर्म में जिसे पहले निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय भी कहा जाता था, क्योंकि पहले इस सम्प्रदाय में कोई ग्रंथ नहीं था, कुल 24 तीर्थंकर थे। वर्धमान महावीर इसके 24वें और आखिरी तीर्थंकर थे, जिनके बारे में आज दुनिया जानती है। मगर उनके अलावा इस धर्म में कई महत्वपूर्ण तीर्थंकर हुए, जिनके विचारों ने वह पृष्ठभूमि तैयार की जिस पर जैन धर्म और भारत में अहिंसा का विचार खड़ा है।

नमिनाथ भी ऐसे ही एक तीर्थंकर थे जिन्होंने शिव धनुष की प्रत्यंचा उतार कर रख दी थी। वे सीता के पिता सीरध्वज जनक के पूर्वज थे। परंपरा से धनुष उनके पास आया होगा। जैन धर्म की ही 19वीं तीर्थंकर मल्लिनाथा इनकी पूर्वज रही होंगी। क्योंकि उनका संबंध भी मिथिला के राजपरिवार से था। नमिनाथ के बाद जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ हुए, जिन्हें अरिष्टनेमि के नाम से भी जाना जाता है, कई लोग नमिनाथ और नेमिनाथ में कंफ्यूज हो जाते हैं। मगर दोनों अलग हैं।

जैन ग्रंथ उत्तराध्ययन सूत्र में उन्हें निष्काम कर्मभाव अथवा अनाशक्ति भावना से युक्त बताया गया है। उन्होंने सम्वेद

नमिनाथ का धनुष

शिखर पर जाकर तपस्या की और निर्वाण प्राप्त किया। उसी पर्वत पर जैन धर्म के 23वें और काफी महत्वपूर्ण गुरू पार्श्वनाथ ने भी तपस्या की थी। वह पर्वत आज उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है।

नमिनाथ की कथा से, खासकर शिव धनुष की प्रत्यंचा उतार कर रख देने के उनके फैसले ने मुझे यह सोचने की तरफ प्रेरित किया कि आखिर उस धनुष पर सीता के पिता प्रत्यंचा क्यों चढ़वाना चाहते थे? क्या वे अपने वंश की अहिंसक परंपरा को बदलना चाहते थे? और अगर हां, तो राम द्वारा धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर उसे तोड़ देने का क्या प्रतीकात्मक अर्थ था?

#व्रात्य #अहिम्सा






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