बिहार की हिडेन हिस्ट्री : अंगुलिमाल परित्त

अंगुलिमाल परित्त
पुष्यमित्र के फेसबुक टाइमलाइन से साभार
यतो हम भगिनी अरियाय जातियो जातो
नभि जानामि सनसिक्का पणाम जीविता वोरोपिता।
तेना सक्केना सोत्ति ते होतु गबभासा।

अर्थ- हे बहन, मैंने इस नए जन्म अपनी जानकारी में किसी का अहित नहीं किया है। इसलिये तुम्हारा दुख दूर होगा और तुम्हारे गर्भ में पल रहे शिशु का भी।

थेरवाद(हीनयान) बौद्धों के घर में जब शिशु का जन्म होने वाला होता है, तब कोई भिक्खु आकर यह मंत्र गर्भवती स्त्री को कहता है। भावना यह होती है कि गर्भवती स्त्री का कष्ट दूर हो और वह आसानी से शिशु को जन्म दे सके।

इस मंत्र या सुत्त को अंगुलिमाल परित्त के नाम से पुकारा जाता है। अब इस परित्त को संगीतमय ऑडियो वर्जन के रूप में भी तैयार किया गया है।
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आपने सही पहचाना। यह वही अंगुलिमाल दस्यु है, जो राहगीरों की हत्या करता था और उसकी एक अंगुली काट कर उसकी माला बना लेता था। जिसे बुद्ध ने कहा था, मैं तो ठहर गया, भला तुम कब ठहरोगे? फिर वह बुद्ध का शिष्य बन गया। उसी अंगुलिमाल के नाम पर इस मंत्र अंगुलिमाल परित्त की रचना हुई है और आज भी इस मंत्र का तकरीबन हर थेरवादी बौद्ध घरों में होता है।

अब एक बार इस मंत्र को फिर से पढ़िये। ” हे बहन, मैंने इस नए जन्म अपनी जानकारी में किसी का अहित नहीं किया है।” मन्त्र कहने वाला कहता है कि मैंने इस नवीन जन्म में किसी का अहित नहीं किया है और मन्त्र 99 लोगों की हत्या कर उनके अंगुलियों की माला बनाने वाले के नाम है। है, न दिलचस्प। अंगुलिमाल की कथा भी उतनी ही दिलचस्प है। जितना हम जानते हैं उससे कहीं बड़ी है यह कथा।
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अंगुलिमाल की कथा थेरगाथा और मज्झिम निकाय नामक ग्रंथ में है। बुद्धघोष, जिन्होंने त्रिपिटकों का विशद अध्ययन कर उसकी कथाओं को संग्रहित और सम्पादित कर अट्ट कथा नामक ग्रंथ को आकार दिया था, उन्होंने जो अंगुलिमाल की कथा लिखी है, वह थोड़ी भिन्न है।

उस कथा के मुताबिक अंगुलिमाल सावत्थी(श्रावस्ती) का रहने वाला था और तक्षशिला विवि का एक मेधावी छात्र था। उसका असली नाम अहिम्सक था। उसकी मेधा से उसके सहपाठी ईर्ष्या करते थे और वे अपने शिक्षक को उसके खिलाफ भड़काते रहते थे। यह चर्चा भी करते कि अंगुलिमाल के नाजायज संबंध उक्त शिक्षक की पत्नी से हैं। इसलिये शिक्षा पूर्ण होने पर उक्त शिक्षक ने शर्त रख दी कि जब तक तुम सौ लोगों की हत्या करके उसकी अंगुलियों की माला मुझे नहीं दोगे, तुम्हारी शिक्षा पूर्ण नहीं मानी जायेगी। इसी वजह से वह इस काम में जुट गया।

वह श्रावस्ती के एक पहाड़ पर छिप कर रहता था और राहगीरों की हत्या कर उसकी एक अंगुली काट लेता था। जब उसकी इस प्रवृत्ति से श्रावस्ती की जनता परेशान हो गयी तो उसने वहां के राजा पसेनदि(प्रसेनजित) को इस बात की शिकायत की। पसेनदि ने अपने सैनिकों को उसे पकड़ कर लाने का आदेश दिया। इस पर अंगुलिमाल की मां का कलेजा दहल उठा, वह अपने पुत्र का जीवन बचाने उसे समझाने उक्त पर्वत के पास जाने लगी।

इन घटनाओं का आभास बुद्ध को भी हो गया जो उस वक़्त वहीं जेतवन में ठहरे थे। उन्हें पता चल गया कि अंगुलिमाल 99 लोगों की हत्या कर चुका है और आखिरी शिकार की तलाश में है। कहीं वह अपनी मां की ही हत्या न कर दे, इसलिये बुद्ध खुद वहाँ गए। अंगुलिमाल पहले अपनी मां की हत्या का विचार कर रहा था। बुद्ध को देखकर वह उसकी तरफ लपका। मगर वह लाख कोशिश करके भी उन्हें पकड़ नहीं पा रहा था। वह दौड़ता मगर अपनी जगह से आगे नहीं बढ़ पाता। बुद्ध अपनी जगह पर खड़े थे।

अंगुलिमाल ने कहा, ठहर। बुद्ध ने कहा, मैं तो ठहरा हुआ हूँ, (स्थविर) तुम कब ठहरोगे। अंगुलिमाल में ज्ञान की तो कमी नहीं थी, वह भाव समझ गया और बुद्ध का हो गया। वे उसे लेकर चेतवन चले आये। जब पसेनदि अपने सैनिकों के साथ अंगुलिमाल को ढूंढते हुए वहां पहुंचा तो उसे एक दस्यु की जगह एक भिक्खु नजर आया। वह लौट गया। अंगुलिमाल बुद्ध के साथ भिक्खु बनकर रहने लगा।

एक रोज अंगुलिमाल ने एक महिला को प्रसव पीड़ा से तड़पते देखा। वह भाग कर बुद्ध के पास गया। उसने कहा, कुछ ऐसा उपाय कीजिये कि इस महिला के दुःख दूर हो जाएं। बुद्ध ने कहा, जाकर उस महिला से कहो-

“हे बहन, मैं जन्म से लेकर अब तक अपनी जानकारी में किसी का अहित नहीं किया है। इसलिये तुम्हारा दुख दूर होगा और तुम्हारे गर्भ में पल रहे शिशु का भी।”

इस पर अंगुलिमाल ने कहा, मैं यह कैसे कह सकता हूँ। मैंने तो अपने जीवन में लोगों का सिर्फ अहित ही किया है।

इस पर बुद्ध ने कहा, तो यह कहो-

हे बहन, मैंने इस नए जन्म में अपनी जानकारी में किसी का अहित नहीं किया है। इसलिये तुम्हारा दुख दूर होगा और तुम्हारे गर्भ में पल रहे शिशु का भी।

नये जन्म का अर्थ, भिक्खु बनने के बाद का जीवन था। अंगुलिमाल ने जाकर उस महिला से यह कहा। यह सुनकर ही उस महिला ने बड़ी आसानी से शिशु को जन्म दे दिया। तब से यह मंत्र थेरवादियों के लिए अंगुलिमाल परित्त बन गया। कहते हैं इस घटना के कुछ ही दिन बाद अंगुलिमाल की मृत्यु हो गयी। उसकी मृत्यु के बाद शिष्यों ने पूछा कि क्या अंगुलिमाल को निर्वाण प्राप्त हुआ होगा? बुद्ध ने जवाब दिया, हां। अच्छे कर्मों से मनुष्य इसी जीवन में अपने पापों से मुक्ति पा सकता है।

अंगुलिमाल सचमुच का इंसान था या उसकी कथा को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया यह कहना मुश्किल है। मगर यह कथा प्रेम और अहिंसा के जरिये क्रूर से क्रूर मनुष्य का जीवन बदलने का आधार बनी। गांधी की अहिंसा में यही मूल विचार था। बाद में जय प्रकाश नारायण ने इसी विचार की ताकत से चम्बल के डाकुओं से आत्म समर्पण कराया।

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