सेक्स, संभोग या सहवास

आरती रानी प्रजापति के फेसबुक टाइमलाइन से साभार
सेक्स, संभोग या सहवास। कोई भी नाम इस प्रक्रिया को हम दे सकते हैं। यह समाज का वह पक्ष है, जो जरूरी तो है लेकिन उस जरूरत को दबाया या छिपाया जाता है, जाहिर नहीं होने दिया जाता। खासकर भारतीय समाज में इसे एक विशेषता माना जाता है। जबकि वास्तव में यह भारतीय समाज का मानसिक पिछड़ापन और कमज़ोरी है। भारतीय समाज में सेक्स को प्रतिबंधित किया गया है। अजीब बात यह है कि इसी समाज की हर गली में, लगभग सभी मंदिरों में, सेक्स प्रक्रिया का चिन्ह जिसे हम शिवलिंग भी कहते हैं मिल जाता है। ऐसा क्या है जो सेक्स को इतना घृणित, अशोभनीय बनाता है। अगर कोई छोटा बच्चा अपने मां-पिता से यह सवाल कर ले कि सेक्स क्या है तो अधिकतर भारतीय माता-पिता ‘यह बहुत गंदी चीज है’ कहकर किनारा कर लेते हैं। इस तरह बच्चे के दिमाग में यह भर दिया जाता है कि सेक्स बहुत गंदी चीज या गंदा काम है। यदि वह लड़का है तो हर गंदा काम उसके लिए सराहनीय है। यदि लड़की है तो गंदी चीजों से दूर रहना चाहिए। इसमें शामिल हो जाता है।
सेक्स और यौनिकता, दोनों आपस में जुड़े हैं। समाज में शादी एक लाइसेंस है जिससे आप कभी भी सेक्स खरीद सकते हैं। इस्तेमाल के लिए आपको ताउम्र शरीर की जरूरत को पूरा करने के साथ पेट की जरूरत को भी पूरा करने वाली स्त्री मिल जाएगी। हम जानते हैं कि सभ्यता की शुरुआत के साथ समाज में पितृसत्ता का आरंभ होता है। यह दोनों बड़ी घटनाएं जब घट रही थी तो इसके परिणाम में स्त्री घर की चार दीवारों में सीमित हुई। पुरुष की भूमिका घर के बाहर यानी पैसा
कमाना तय की गई। मेरी संपत्ति, मेरे बच्चे को ही जाए। इसका परिणाम स्त्री की यौनिकता पर नियंत्रण हुआ। घर में बंद स्त्री की देह पर पुरुष का वर्चस्व है। वह जब चाहे शादी के कपड़े, गहने, बर्तन के साथ आई इस लड़की से अपनी शारीरिक भूख मिटा सकता है। भूख शब्द पर शायद आपत्ति हो सकती है। यह एक कड़वा सच है कि पति से शायद ही इस क्रिया में वह देह सुख ले पाती हो। कारण पति दिन-भर बाहर काम करके, शाम को दोस्तों या दारू के साथ वक्त बिता कर आता है। जिसे घर में सुबह जल्दी उठकर, सारा काम करती स्त्री, घर में बेकार बैठी नजर आती है। इस बेकार निठल्ली बैठी स्त्री के सुख की परवाह कमाने-वाला, दिन-भर बॉस की खरी-खोटी सुनने वाला क्यों करें? इसलिए जैसा मन किया, कर लिया और काम खत्म। उसे यह तक जानने की जरूरत नहीं कि उसने जिसके साथ उसने संभोग किया है कहीं बलात्कार की शिकार तो नहीं हुई?
संभोग, सेक्स, सहवास से तात्पर्य है सम और सह यानी बराबर और साथ-साथ भोगा गया सुख। किंतु, अमूमन ऐसा नहीं होता है। आज की तो फिर भी बात अलग है। अब एकल परिवार हैं। ऐसे में कमरे में निश्चिंतता का सुख है। पहले ऐसा नहीं था। एक कमरे का घर। जिसमें आपके बुजुर्ग से लेकर बच्चों तक के खर्राटों की आवाज। निश्चिंतता तो बहुत दूर की बात है, बस, जल्दी कर लो, का भाव ही इसमें रहता है। कोई जाग गया तो? क्या सोचेगा? यानी छिपाकर करना है। लेकिन करना है। शारीरिक जरूरत भी है, और परिवार को बढ़ाना तो सामाजिक जिम्मेदारी है। लेकिन इसके बावजूद सेक्स छुपाकर करने की चीज।
स्त्री को बंद करके पुरुष ने अपनी इच्छा पूर्ति के लिए सारे रास्ते खुले रखे। उनके पास पत्नी के अलावा देवदासी, नगरवधू, वेश्या, दलित समुदाय की औरतें, घर की कामवाली, और घर के बाहर प्रेमिका। सारे विकल्प खुले थे। यह विकल्प आज भी हैं। बल्कि अब इनकी संख्या बढ़ गई है। काम संबंधों में अभी भी स्त्री की पहुंच बॉयफ्रेंड या पति तक ही सीमित है। या पति के साथ सह-पति जिसे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कहा जा सकता है। उच्च वर्ग की महिलाएं एक अन्य विकल्प रखती हैं, जिसे आम भाषा में जिगलो और हिंदी में पुरुष देह-व्यापारी कह सकते हैं। सेक्स आज बाजारों में बिकने वाली चीज नहीं रह गया है। वह आपके हाथ में उपलब्ध है। दुनिया-भर की वेबसाइट इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। लेकिन यहां सेक्स से ज्यादा बलात्कार बिक रहा है।
सेक्स और बलात्कार में अंतर अपने-सुख और दूसरे के सुख का है। जब आप सेक्स करते हैं तो अपने सुख से ज्यादा, अपने पार्टनर के सुख का ध्यान रखते हैं। लेकिन बलात्कार केवल अपने सुख पर केंद्रित होता है। इसलिए ऊपर कहीं गई पंक्तियों में पति-पत्नी के सम्भोग को बलात्कार कहा गया है। इन वेबसाइटों पर यदि ध्यान दिया जाए, तो आपको पुरुष देह के लिए तड़पती स्त्री दिखाई देगी। यहां पुरुष देह की भूमिका घर में हर आदेश का पालन करवाने वाली ही होती है। कठोर से कठोर अभिनय। सेक्स, जिसे पुरुष की यौन इच्छा की पूर्ति के लिए किया गया अभिनय भी कह सकते हैं। वहां दिखाई गई महिलाएं कोई नई स्त्री नहीं है, जिसे पहले संपर्क में पीड़ा हो रही हो। लेकिन वह उसी पीड़ा को अपने चेहरे व अभिनय में पेश करती है। कारण, पुरुष-मानसिकता, स्त्री की पीड़ा देखकर खुश होती है। अब घर में बंद कर औरत को पीटना इतना आसान नहीं है, जितना पहले था। जरा-सी बात, जोकि वास्तव में जरा-सी नहीं होती, पर भी तलाक हो सकता है। इन वेबसाइटों पर आपको रोती-चिल्लाती लड़कियां मिलेंगी। यौन अंगों पर जलाना, मशीन का प्रयोग, कभी स्तनों को चीटियों से पकड़ना, तरह-तरह के अत्याचार। यह सब देख-देख कर आज की पीढ़ी भी ऐसा ही कर रही है। आज बलात्कार की क्रूरतम घटनाएं सामने आ रही हैं। मानवीयता की सारी हदों को वहां तोड़ा जाता है। ऐसा नहीं है कि इस वेबसाइटों पर सेक्स-अभिनय करने वाली हर स्त्री वहां दर्द का ड्रामा ही कर रही है। कुछ लड़कियां वास्तव में पीड़ा में होती हैं। यह वह लड़कियां होंगी जो जबरन इस पेशे में धकेल धकेल दी गई हैं। हाथ-पैरों को रस्सी से बंधवाना, पशु की तरह अपने जूते को चूमने के लिए बाध्य करना, आत्म-सम्मान की सारी शर्तों को तोड़ देता है। कैमरे के सामने रोती-बिलखती, चिल्लाती लड़कियां किस पीड़ा को झेल रही हैं, यह कह पाना भी मुश्किल है। आज यह चलन है कि सेक्स क्रूर-से-क्रूर किया जाए। इस धारणा के अनुसार ज्यादा क्रूरता से किए जाने वाला संभोग स्त्री को अधिक तृप्त कर पाता है। हद दर्जे की घटिया मानसिकता की यह सोच औरतों को लगातार बिस्तर पर पीड़ा दे रही है। शायद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि स्त्रियां देह-सुख को महसूस ही नहीं कर पाती हैं। दूसरी तरफ यह वेबसाइट हैं जो, क्रूरता के माध्यम से पितृसत्ता को मजबूत करने का काम कर रही हैं।
समस्या सबसे बड़ी यह है कि सेक्स को एक वर्जना माना गया है। जबकि शादी के बाद यदि आप इसी वर्जना का पालन करते रहेंगे तो आप समाज से तिरस्कार पा लेंगे। शादी से पहले तो सेक्स तो बिल्कुल नहीं। अगर ऐसा किया तो समाज जीने नहीं देगा। सवाल यह नहीं है कि शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाए या नहीं। सवाल यह है कि शादी के बाद भी किस तरह के संबंधों को बनाया जाए ताकि संभोग, संभोग ही रहे बलात्कार ना बने। इसके लिए संवेदनशील होने की जरूरत है। यह माना जा सकता है कि महिलाओं की एक मात्र समस्या सेक्स नहीं है। सेक्स से इतर, बल्कि उससे कहीं बड़ी समस्या जाति, वर्ग-भेद, भूख, शिक्षा, गरीबी, असमानता की है। लेकिन जीवन का यह पक्ष भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। सेक्स स्त्री के मन को समझने की प्रक्रिया है। उसके मन तक पहुंचने का साधन है। इसलिए इस क्रिया को महत्व देना चाहिए ताकि घरों में बंद स्त्री कम-से-कम यह सुख तो ले सके। https://www.facebook.com/aartirani.prajapati






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