मुजफ्फरपुर: बच्चे नहीं मर रही हैं संवेदनाएं

जयशंकर गुप्त

बिहार में नीतीश कुमार-सुशील मोदी यानी जनता दल (यू) और भाजपा के’सुशासन’ को लेकर कोई संदेह नहीं है. आए दिन हत्या, लूट और बलात्कार की घटनाएं स्वतः गवाही देती हैं. भूख, प्यास और कुपोषण से दम तोड़ते बच्चे, गर्मी और लू के थपेड़ों की मार से मरते और इससे बचने के नाम पर धारा144 को झेलते लोग लगातार बिहार में ‘सुशासन’की गवाही दे रहे हैं.
लेकिन उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में महामारी का रूप धारण कर अबोध बच्चों को लील रहे चमकी या कहें दिमागी बुखार को लेकर जिस तरह की गंदी राजनीति शुरू की जा रही है, कुछ ‘स्वनामधन्य’ ढिंढोरची खबरिया चैनलों और उनके ‘हिज या हर मास्टर्स वायस’ बने ऐंकरों- संपादकों के द्वारा जिस तरह से केवल नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है, वह न सिर्फ हास्यास्पद बल्कि एक सोची समझी सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत भी लगती हैं.
राज्य सरकार का मुखिया होने के नाते नीतीश कुमार अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते. तमाम ताजा घटनाक्रमों पर उनकी रहस्यमय चुप्पी भी आज सबसे बड़ा सवाल है. लेकिन भाजपा!
जहां तक मुझे याद आता है बिहार में पिछले तकरीबन डेढ़ दशक (2005 से लेकर 2019 तक) की जद (यू) और भाजपा की साझा सरकारों में स्वास्थ्य मंत्री भाजपा के ही रहे हैं. इनके नाम हैं-चंद्रमोहन राय,नंदकिशोर यादव,अश्विनी चौबे,राजेश कुमार शर्मा और अभी मंगल पांडेय. वही मंगल पांडेय जो मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के महामारी बन जाने के समय विदेश में थे और लौटने के बाद डा. हर्षवर्धन की प्रेस कान्फ्रेंस में पत्रकारों से विश्वकप क्रिकेट में भारत पाकिस्तान मैच का स्कोर पूछते वीडियो कैमरे में कैद हुए थे जबकि केंद्र सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री बने चौबे जी झपकी ले रहे थे. मुजफ्फरपुर के विधायक सुरेश शर्मा और सांसद अजय निषाद भाजपा के ही हैं. अपवादों को छोड़ दें तो किसी भी बड़े खबरिया चैनल अथवा नेता ने बिहार और खासतौर से मुजफ्फरपुर की बदतर होती गई स्वास्थ्य व्यवस्था में भाजपा के स्वास्थ्य मंत्रियों,स्थानीय जन प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार में भाजपा के स्वास्थ्य मंत्रियों के’योगदान’ पर ना तो कोई चर्चा की और ना ही सवाल किए. त्यागपत्र मांगने की बात तो भूल ही जाइए.
मुजफ्फरपुर में चमकी या दिमागी बुखार और उससे बच्चों की मौतों का सिलसिला नया नहीं है. पिछले पांच वर्षों पर ही नजर डालें तो 2014 में वहां 379 बच्चे कालकवलित हुए. इसी तरह 2015 में 90, 2016 में 103, 2017 में 54, 2018 में 33 और इस साल 2019 में अब तक तकरीबन 180 बच्चे अकाल मौत का शिकार बन चुके हैं. 2014 में जब चमकी या दिमागी बुखार ने महामारी का रूप धरा था और 379 बच्चे मरे थे तब भी संयोग से डा. हर्षवर्धन ही केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. मुजफ्फरपुर गये थे. वहां उन्होंने 100 बिस्तरों का सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाने का वादा किया था. अब राजग सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी वह स्वास्थ्य मंत्री हैं. एक बार फिर चमकी ने इलाके में कहर बरपा है.
हर्षवर्धन जी फिर बिहार-मुजफ्फरपुर आए थे, क्या किसी ने पूछा कि हुजूर पांच साल पहले जो 100 बिस्तरोंवाला अस्पताल बनाने की बात करके आप गये थे, वह अस्पताल है कहां! सच तो यह है कि अभी तक ऐसे किसी अस्पताल की नींव वहां पड़ी ही नहीं. इस बात पर गुस्सा नहीं आना चाहिए क्या! क्या हमारी संवेदनाएं इस कदर शून्य पड़ती जा रही हैं कि खेलने-खाने की उम्र में भूख और कुपोषण के शिकार बच्चों की बड़े पैमाने पर हो रही मौतें भी हमारी संवेदनाओं को झकझोरती नहीं! हम इन्हें भी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से इतर नहीं देख पा रहे. अगर देख पाते तो सत्रहवीं लोकसभा में पहला कामकाजी विधेयक तीन तलाक पर नहीं, भूख, प्यास और कुपोषण से मुक्ति को समर्पित होता. राष्ट्रपति के अभिभाषण में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की शिगूफाई चर्चा के बजाय, मुजफ्फरपुर और गोरखपुर में दिमागी बुखार के शिकार बच्चों की जान बचाने के उपायों पर चर्चा होती.






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