गांधी फिल्म महोत्सव: बापू के कई अनछुए पहलुओं को जान रहे दर्शक

पटना. ,ए. बिहार की राजधानी पटना में चल रहे गांधी पैनोरमा फिल्­म महोत्­सव के जरिए सिने प्रेमी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कई अनजाने और अनछुए पहलुओं से रूबरू हो रहे हैं। चंपारण सत्­याग्रह शताब्­दी वर्ष के मौके पर पटना के अधिवेशन भवन में आयोजित महोत्सव के दूसरे दिन ‘रोड टू संगम’ और ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ जैसी फिल्में प्रदर्शित की गई।  फिल्­म ‘रोड टू संगम’ की कहानी एक ऐसे मुस्लिम मिस्­त्री की है, जिसे उस कार की मरम्­मत करनी है जिसमें कभी महात्­मा गांधी की अस्थियां रखी गई थी। अमित राय के निर्देशन में वर्ष 2010 में बनी यह फिल्­म एक मुस्लिम मैकेनिक की जिंदगी पर बनी है, जिसे फोर्ड कंपनी की इंजन कार को मरम्­मत करने की जिम्­मेदारी दी गई। मिस्त्री को यह नहीं पता कि जिस गाड़ी की वह मरम्मत कर रहा है जिससे महात्­मा गांधी की अस्थियां त्रिवेणी संगम में ले जाकर प्रवाहित की गयी थीं। हालांकि कार की मरम्मत के दौरान ही हड़ताल हो जाती है और वह असमंजस में पड़ जाता है। फिल्म के संपादन में गजब की कसावट है। फिल्म में मशहूर अभिनेता परेश रावल और ओमपुरी का बेजोड़ अभिनय देखने को मिलता है। वहीं, दिन की दूसरी फिल्­म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ थी। इस फिल्­म में एक ऐसे इंसान की मनोस्थिति को दिखाने की कोशिश की गई, जहां एक व्­यक्ति को यह वहम हो जाता है कि उसने ही गांधी जी को मारा है। साल 2005 में अनुपम खेर निर्मित एवं अभिनीत इस फिल्­म को राष्­ट्रीय और अंतर्राष्­ट्रीय स्­तर पर पुरस्­कृत निर्देशक जहानु बरूआ ने बनाया था। फिल्­म में पिता की बीमारी और बेटी के प्­यार, समझदारी और पिता के इलाज को लेकर बेटी की प्रतिबद्धता की कहानी दिखाई गई है, जो अनेकों समस्­याओं से जूझती है।






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