पटना पुलिस के जवानों ने नहीं दिया था उन विद्रोहियों का साथ

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7 जून 1857 की वह रात कमिश्नर विलियम टेलर के लिए इम्तिहान की रात थी। उसके सामने पटना में रहने वाले तमाम यूरोपियन आबादी की सुरक्षा का सवाल था। दानापुर के विद्रोही फौजी कभी भी शहर में प्रवेश कर सकते थे।

टेलर ने पटना में रहने वाले यूरोपियनों में से अधिकांश लोगों को अपने आवास पर बुला लिया था और स्वयं मेजर नेशन और पटना पुलिस के सिपाहियों के साथ उनकी सुरक्षा में जुटा था। उस रात का जिक्र उसने अपनी रिपोर्ट ‘आवर क्राइसिस और थ्री मंथ्स एट पटना दुएरिंग द इन्सरेक्शन ऑफ़ 1857’ में विस्तार से किया है।

अपने आवास पर जमा लोगों के बारे में उसने लिखा है,’ उत्तेजित, शांत और बातूनी मर्द, हाथों में तलवार, बंदूकें या निहत्थे झुंडों में बंटे आपस में मशविरा करते नजर आ रहे थे। घर के बाहर मेजर नेशन के नेतृत्व में स्थानीय पुलिस बटालियन के सिपाही बंदूकों के साथ तैनात थे। जबकि होल्म्स के फौजों की छोटी टुकड़ी दरवाजे के पास तैनात थी। गाड़ियों का कोलाहल, बच्चों की चीख, मदों की कर्कश आवाज, नौकरों की चीख पुकार से भ्रम का कोलाहल पैदा हो रहा था।’

अपनी बेटियों के बारे में टेलर ने लिखा है, ‘इन से अलग बगीचे की तरफ हमारी बेटियां दूसरी और लड़कियों और किशोरों के साथ आसन्न खतरों से बेपरवाह चांदनी में डूबी घास पर चहलकदमी कर रहीं थीं। उनकी हँसने और खिलखिलाने की आवाज़ वहां मौजूद लोगों को क्रोधित कर रही थी।’

अपनी पत्नी के बारे में टेलर ने लिखा, ‘इन सबसे अलग मेरी पत्नी घर में शरण लिए लोगों की देखभाल में जुटी हुई थी। इस दृश्य को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। गहरे हरे रंग की वर्दी में पुलिस के जवान और फुर्तीले फौजी घर की हिफाजत के लिए चौकस थे। जब मैं वहां शरण लिए हुए कुछ महिलाओं से आग्रह कर रहा था कि वे अपने साथ लाये ख़ज़ाने को सुरक्षित छत पर छोड़ आएं ताकि अचानक संकट आने पर वे सुरक्षित रह सकें, उसी वक्त मुझे मेजर नेशन ने बाहर बुलाया।’

टेलर ने आगे लिखा है, ‘मेजर नेशन ने मुझे वह दोनों पत्र दिखलाये, जिसे एक सिपाही ने उन्हें दिया था। इसे दानापुर से एक कूली ने लाकर सिपाही को दिया था। यह पत्र यहां की पुलिस को सम्बोधित था। उसमें लिखा गया था कि हम सभी ‘एक दिल’ हैं और पटना आना चाहते हैं। उस पत्र में पटना पुलिस से आग्रह किया गया था कि वे सरकारी ख़ज़ाने को अपने नियंत्रण में ले उनसे आ मिलें।’

कमिश्नर ने लिखा, ‘हमें उस सिपाही की प्रशंसा करनी होगी जिसने वह पत्र सिपाहियों को न देकर अपने कमांडिंग आफिसर मेजर नेशन को लाकर दिया था। यह हमारे लिए सुखद आश्चर्य था कि वही पुलिस के सिपाही हमारी सुरक्षा में थे। उन्होंने विद्रोहियों की बात नहीं मानी थी। इसके बावजूद यह बात तो साफ़ हो गयी थी कि विद्रोही फौजी पटना पुलिस के संपर्क में थे। यह भी हो सकता था कि गलती से वह पत्र मेजर नेशन को दे दी गयी हो।’ बहरहाल उस दिन इस तरह पटना में रहने वाले यूरोपियनों की जान बच गयी थी।

साभार: प्रभात खबर





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