महिलाओं ने बजा दिया पुरुषों का 'बैंड'

nari gunjan sargam band mahadalit women band party danapur biharघर के पुरुषों ने किया था विरोध, महादलित समुदाय की महिलाओं ने लिखी सफलता की नई कहानी
पटना। बिहार में महादलित समुदाय की महिलाएं सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। जाति व लिंग की बंधनों को तोड़ महिला सशक्तिकरण की आईकॉन बन रही है। पुरुषवादी समाज के मिथकों को ध्वस्त कर महिलाओं ने बनाई है ‘नारी गुंजन सरगम म्यूजिÞकल बैंड’।
गीत-संगीत मानव जीवन में खुशहाली लाता है। राजधानी पटना में दलित महिलाओं की समूह ने अनूठे प्रयास से ढीबरा गांव को अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित किया है। पटना से सटे दानापुर के ढीबरा गांव की 12 महादलित औरतों ने अपना म्यूजिÞकल बैंड तैयार कर गीत संगीत को ही रोजी-रोटी का माध्यम बनाया है। इन महिलाओं ने अपनी सोच को धरातल पर उतारने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। इन महिलाओं को घर की चौखट लांघने के लिए घर में ही लड़ना पड़ा था। तमाम लोगों से लड़ते हुए 12 महिलाओं की यह समूह ने संगीत की तालीम लेकर ‘नारी गुंजन सरगम म्यूजिÞकल बैंड’ बनाया।
बैंड मास्टर साविता देवी बताती हैं, “जब ड्रम सीखने की कवायद शुरू हुई तो टोले की जवान औरतों और परिवार वालों का विरोध का सामना करना पड़ा। गांव की महिलाओं ताना मारा कि हमारे बीच में बूढ़ी औरत क्या करेगी। सबिता ने कहा कि विरोध के बावजूद हमने बैंड बजाना सीख लिया।
इन महिलाओं की बेरंग जिंदगी में संगीत का ए रंग भरने की कोशिश अगस्त 2013 में शुरू हुई। महादलितों के बीच काम कर रही पद्मश्री सुधा वर्गीज ने ढीबरा गांव की खेत मजदूर औरतों को ड्रम बजाने की ट्रेनिंग दिलवाना शुरू किया।
सुधा खेत मजदूरी करने वाली इन औरतों को रोजगार के दूसरे अवसर भी मुहैया करवाना चाहती थी। ट्रेनिंग के लिए 16 औरतों का चयन हुआ और बाद में इनमें से 12 का चयन करके म्यूजिÞकल बैंड तैयार किया गया। बैंड का हिस्सा बनी सविता देवी बताती हैं, “रोज एक घंटे तक ट्रेनिंग करते थे, छह महीनों तक तो धुन सीखने में बहुत परेशानी हुई पर धीरे-धीरे हमने धुन पकड़ना शुरू किया।
अब नारी गुंजन शरगम म्युजिकल बैंड टीम को बिहार, यूपी और झारखंड से बुलावा आता है। एक दिन के लिए दस हजार से लेकर तीस हजार रुपए बैंड बजाने के एवज में महिलाएं लेती हैं ।

from http://hindi.eenaduindia.com






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