#raguwansh prasad singh

 
 

यकीन कीजिए, रघुवंश भाई, अंतिम पंक्ति लिखते-लिखते मेरी आंखें भर आईं!

उर्मिलेश नहीं रहे रघुवंश भाई! जनता दल और फिर राष्ट्रीय जनता दल में जिन कुछ नेताओं से मुझे बातचीत करने या मिलने-जुलने का मन करता था, रघुवंश भाई, उनमें प्रमुख थे– और ये बात वह अच्छी तरह जानते थे. पत्रकारिता में होने के बावजूद मैंने नेताओं से निजी रिश्ते बहुत कम बनाये. राजनीतिक लोगों से प्रोफ़ेशनल रिश्ते ही ज्यादा रखे. नेताओं के लंच-डिनर से भी आमतौर पर दूर रहा. उन्हीं आयोजनों मे जाता रहा और आज भी वही स्थिति है, जहां निजी या प्रोफेशनल कारणों से जाना बहुत जरूरी हो!Read More


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