नीतीश ने फिर पकड़ी अलग राह, कोविंद को दे सकते हैं सपॉर्ट

नरेंद्र नाथ, (नवभारत टाइम्स). नई दिल्ली. बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले विपक्ष से अलग राह पकड़ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, उनका एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को सपॉर्ट देना लगभग तय है और बुधवार को वह इसकी औपचारिक घोषणा कर सकते हैं। उन्होंने पार्टी के अहम नेताओं की मीटिंग पटना में बुलाई है। वह 22 जून को विपक्ष की होने वाली मीटिंग से पहले इसकी घोषणा कर देना चाहते हैं। सूत्रों के अनुसार, रामनाथ कोविंद को सपॉर्ट करने के पीछे अपनी राजनीतिक मजबूरी के बारे में नीतीश ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को बता दिया है।
दिलचस्प बात है कि राष्ट्रपति पद पर विपक्ष को एकजुट करने की पहली पहल खुद नीतीश कुमार ने की थी। लेकिन उनकी अलग राह पर जाने का पहला संकेत तब मिला था, जब उन्होंने ऐन मौके पर 26 मई को विपक्ष की संयुक्त मीटिंग से खुद को अलग कर लिया था। उसके ठीक अगले दिन दिल्ली में पीएम मोदी की ओर से बुलाए लंच में वह शामिल हुए थे।
नीतीश के समर्थन की 3 वजह
1. कोविंद से बेहतर तालमेल
जब से रामनाथ कोविंद बिहार के गवर्नर बने, तब से उनके नीतीश कुमार से बेहतर संबध रहे हैं। एक भी ऐसा मौका नहीं आया, जब बतौर राज्यपाल कोविंद ने नीतीश सरकार के लिए मुश्किल पैदा की। ऐसे समय जब शराबबंदी पर बना सख्त कानून विवादों में था और कानूनी स्तर पर इसकी आलोचना हो रही थी, कोविंद ने इस पर अपनी सहमित बिना सवाल किए दे दी थी। इसके अलावा कुलपतियों की नियुक्ति पर भी नीतीश की पसंद को अपनी सहमित दी। दोनों के बीच परस्पर संबंध बहुत अच्छे रहे।
2. नीतीश का महादलित दांव
नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन महादलित वोट के सहारे ही पाई थी। यही वोट उनका सबसे बड़ा दांव भी है। ऐसे में नीतीश कुमार का तर्क है कि अगर वह कोविंद का विरोध करते हैं तो इसका गलत संदेश जा सकता है। नीतीश कुमार का यह भी मानना है कि ताक में बैठी बीजेपी उनके विरोध का उपयोग यूपी के तर्ज पर बिहार में भी राजनीति करने के लिए कर सकती है। जेडीयू बिहार में दलित और अति पिछड़े तबके को अपने पक्ष में रखने की पूरी कोशिश कर रही है। कोविंद इसी बिरादरी से आते हैं।
3. सभी विकल्प खुले रखने की कवायद
नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में भी अलग राह चुनकर बिहार की राजनीति में सभी विकल्प खुला रखना चाहते हैं। जब लालू प्रसाद और उनके परिवार पर करप्शन से जुड़े नए केस आए तो बीजेपी ने उन्हें खुला ऑफर दिया कि वह उनके साथ आ जाएं। हालांकि, नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव को खारिज किया। लेकिन इस संभावना के बने रहने के बदौलत वह बिहार में राजनीतिक संतुलन बनाने में कामयाब रहे हैं।
महागठबंधन पर पड़ेगा असर?
अगर विपक्ष की ओर से अपना संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने के बावजूद नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देते हें तो इसका महागठबंधन की सेहत पर असर पड़ सकता है। नोटबंदी के मुद्दे पर भी दोनों की अलग-अलग राय ही रही थी। हालांकि, अभी आरजेडी खेमे में भी कोविंद के नाम को लेकर बेचैनी है। पार्टी के एक नेता ने माना कि जब उनका दल पिछड़े-दलित को जोड़ने की कोशिश कर रहा तो ऐसे समय में उनका कोविंद का विरोध करना आसान फैसला नहीं होगा। अगर विपक्ष कोविंद के नाम पर सहमत हो जाता है तो बिहार में दोनों दलों के नेता राहत की सांस ले सकते हैं। हालांकि,अगर 22 जून की मीटिंग के बाद विपक्ष ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया तो इसका असर बिहार की राजनीति पर पड़ सकता है।






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