पाॅली हाउस में खेती किसानों के लिए वरदान, जमीन उगल रही है सोना

पाॅली हाउस में खेती किसानों के लिए वरदान, जमीन उगल रही है सोनाइटावा. कभी-कभी मौसम की बेरूखी और बढती लागत के चलते किसानों का खेती के प्रति कम होते मोह के बीच अत्याधुनिक पॉली हाऊस तकनीक से की जा खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। यही नहीं,आर्थिक रुप से बेहाल किसानों के लिए यह एक आशा की एक नई किरण के रूप में देखी जा रही है । उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बख्तियारपुरा निवासी किसान सुरेश चन्द्र यादव ने एक एकड़ में पॉली हाउस तैयार कर नई तकनीक के जरिए मल्टी स्टार खीरा पैदा कर क्षेत्र में एक बड़े उत्पादक के रूप में अपनी पहचान बनाई है। श्री यादव इटावा के अलावा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में प्रतिदिन पांच से छह कुंतल खीरा भेजकर दस हजार रुपए से अधिक कमा रहे हैं । उनका कहना है यह खीरा नहीं उसके लिए हीरा बन गया है । सुरेश का कहना है कि उसके इस प्रयास को केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय बागवानी मिशन से भरपूर सहयोग मिला । उसने पंजाब के एक पाली हाउस प्रोजेक्ट में बतौर मजदूर इस तकनीक को देखा और उसी समय तय कर लिया कि वह अपने जिले में पॉली हाउस तकनीक अपनायेगा। सुरेश इटावा के किसानों के लिए एक मिसाल बन गया हैं। उसने बताया कि एक एकड़ जमीन पर उसने 42 लाख रुपए खर्च करके पाली हाउस लगवाया। सरकार से उसे 21 लाख रुपए सब्सिडी के रुप में मिल चुकी है। अब वह अन्य किसानों को भी इस तकनीकी के जरिए खेती के नए प्रयोग सिखा रहा हैं। सुरेश ने गत वर्ष जून में पाॅली हाउस प्रोजेक्ट के लिए आवेदन किया था। जिसके बाद उन्होंने अपनी जमीन पर इसके लिए महाराष्ट्र की एक कम्पनी से सम्पर्क किया था। दिसम्बर में तैयार हुए पाली हाउस में दस हजार मल्टी स्टार खीरा का बीज रोपा था। मल्टी स्टार खीरा के इन बीजों ने जनवरी में ही पांच फुट ऊंची बेल की शक्ल ले ली और फरवरी में अब तक वह दस कुंतल से अधिक खीरे को बाजार भाव पर बेच चुका हैं। उसने बताया कि बगैर सीजन में होने वाले इस खीरे की फसल को केवल चार माह में ही फल देने लायक बनाया जा सकता है।
इससे जहां उत्पादन बढ़ जाता है वहीं खीरे की गुणवत्ता भी बाजार के लिए आकर्षक होती है। पाॅली हाउस का प्रयोग मुख्यता ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है । श्री यादव का कहना है कि अशुद्ध वातावरण से दूर होने के कारण इस फसल में कीटनाशकों का प्रयोग भी नहीं किया जाता। इसके अलावा तापमान के नियंत्रण और पेड़ों के सही विकास के लिए पूरे पॉली हाउस में तापमान नियंत्रक फोकर लगाए गए हैं। फव्वारेनुमा इस यंत्र से पाली हाउस का तापमान अधिक होने पर उसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा ड्रिप सिंचाई और पेड़ों की जड़ों तक यूरिया पहुंचाने के लिए भी एक व्यवस्थित पाइप यंत्र लगे हुए हैं। सुरेश द्वारा लगाये गये इस पाली हाउस की फसलों में जहां एक बेल से 30 किलो खीरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं गुणवत्ता के लिहाज से भी इस फसल को बेहतर माना जाता है । खेती के लिए इटावा की जलवायु वैसे तो काफी बेहतर मानी जाती है लेकिन पाॅली हाउस के प्रयोग से किसान कम लागत में अधिक उत्पादन से अपनी कृषि आय को बढ़ा सकते हैं। फिलहाल जिले में यह पहला सफल प्रयोग है और इस प्रयोग के बाद अब बडे़ पैमाने पर किसान इस योजना से जुड़ना चाह रहे हैं । इटावा के जिला उधान अधिकारी राजेंद्र कुमार शाहू का कहना है कि जिला उद्यान कार्यालय में भी इसके लिए अब तक कुल 11 आवेदन आ चुके हैं।
ऐसे में उम्मीद है कि आने वाले समय में किसानों के लिए यह तकनीक जहां आय के लिहाज से कारगर सिद्ध होगी वहीं दूसरी ओर आम जनता को भी इससे पूर्णतरू कीटनाशक मुक्त फलों व सब्जियों का स्वाद मिल सकेगा। गौरतलब है कि कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में अब केवल 18 प्रतिशत लोग ही खेती पर निर्भर हैं । अन्नदाता की इस दुर्दशा का मुख्य कारण तेजी से बदलता मौसम और महंगी हो रही प्राचीन कृषि पद्धति है । बदलते दौर में अत्याधुनिक तकनीक के बल पर खेती का बदला स्वरूप एक बार फिर किसानों के लिए एक नई ऊर्जा की किरण लेकर आया । पाली हाउस के जरिए ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करके और बिना कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाली उन्नत खेती आज किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है । with thanks from (वार्ता)



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