दीपावली में उल्लुओं की आई शामत, पटना में चोरी-छिपे बिक रहे

पटना [जेएनएन]। दीपावली जैसा हर्षोल्लास का त्योहार और इस त्योहार में अंधविश्वास में पड़कर लोग उल्लू जैसे पक्षी की हत्या कर देते हैं। जिसे तांत्रिक धन-वैभव विभिन्न तरह के दोषों को मिटाने के लिए और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस जीव की बलि देते हैं। क्या वाकई लक्ष्मी माता एक जीव की बलि से प्रसन्न होती हैं?  दीपावली जैसे जैसे करीब आती जाती है, तथाकथित तांत्रिक अपनी साधना को फलीभूत करने के लिए तेजी से काम शुरू कर देते हैैं। धनतेरस से लेकर परेवा तक वो अपनी साधना को सिद्ध करने के लिए तंत्र व मंत्र की साधना में लीन हो जाते हैैं, इसमें भी वो दिवाली की रात को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। अंधविश्वास की वजह से आजकल कुछ लोग उल्लुओं की जान के पीछे पड़े हैं। तांत्रिक दीपावली के दौरान उल्लू के हर अंग का अपनी ‘तंत्र क्रिया’ में प्रयोग करते हैं। जानकारों के मुताबिक अघोरपंथ से जुड़े लोग इस पक्षी की बलि देते हैं और तांत्रिकों के बहकावे में आकर आम लोग तंत्र क्रियाओं के लिए दिवाली पर उल्लू की मुंहमांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं। दीपावली में पटना में भी उल्लुओं की मांग बढ़ गई है। हालांकि चोरी-छिपे इसे बेचा जा रहा है।तंत्र क्रिया करने वाले से एडवांस पैसे लेकर पक्षियों का व्यापार करने वाले उसे दो से छह हजार में बेच रहे हैं। दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वह उल्लुओं की बलि देते हैं। वन अधिनियम के तहत उल्लुओं का शिकार करना दंडनीय अपराध है। इसके बाद भी पटना में उल्लुओं की खरीद-फरोख्त जारी है।
दीपावली के वक्त मिलती है मुंहमांगी कीमत
आमतौर पर 300 से 500 रुपए में मिलने वाले उल्लू का दाम दीपावली के वक्त 20 गुना बढ़ जाता है। दीपावली के समय उल्लू की कीमत दो से छह हजार रुपए की हो जाती है। उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसका दाम तय किया जाता है। लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 15 हजार रुपए से अधिक होता है।
संरक्षित प्रजाति है उल्लू
भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनुसूची-एक के तहत उल्लू संरक्षित है। ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है। पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं।
कहीं अशुभ मानते, तो कहीं बुद्धि का प्रतीक : कई संस्कृतियों में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन साथ ही संपन्नता और बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं। इससे आयुर्वेदिक इलाज होता है। इसके चोंच और नाखून को जलाकर तेल तैयार होता है जिससे गठिया ठीक होता है। इसके मांस का प्रयोग यौनवर्धक दवाओं में किया जाता है। एक गांव जहां दीवाली पर होती चमगादड़ों की पूजा
पूजा सिद्ध करने से पहले होती है विशेष तैयारी
तांत्रिक धनेश कुमार के अनुसार उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है। तांत्रिक इसके अस्थि, मज्जा, पंख, आंख, रक्त से विशेष पूजा की जाती है। इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में माना जाता है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है तथा इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करने के काम में आता है तथा चोंच इंसान की मारण क्रिया में काम आती है।
इसके बारे में यह भी भ्रांति है कि यदि इसे हम किसी प्रकार का कंकड़ मारें और यह अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाए और किसी नदी अथवा तालाब में डाल दे तो जिस प्रकार से वह कंकड़ घुलेगा उसी प्रकार कंकड़ मारने वाले का शरीर भी घुलने लगता है। वहीं पंडित अरुण कुमार पाठक का कहना है कि उल्लू लक्ष्मी की सवारी है। लोग लक्ष्मी जी के उल्लू की भी पूजा करते हैं। तांत्रिक तंत्र शक्ति बढ़ाने के लिए उल्लुओं की बलि देते हैं। इसके सभी अंगों को विशेष तरीके से पूजा करते हैं।
कहा – डीएफओ, पटना ने
पटना के डीएफओ मिहिर कुमार झा ने बताया कि संरक्षित प्राणियों के व्यापार करने वालों पर वन विभाग की निगाह रहती है। गश्ती के दौरान वन सुरक्षाकर्मी लड़की कटाने के साथ ही वन जीवों के व्यापार करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई करते हैं। –डीएफओ मिहिर कुमार झा, पटना






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