बिहार में होश संभालते ही राजनीति के मैदान में कूदने को तैयार हैं बच्चे, बड़े बना रहे माहौल

राजनेताओं के बच्चे होश संभालते ही राजनीति के मैदान में कूदने को तैयार हैं। बच्चों के राजनीति में घुसने के लिए पिता भी माहौल बना रहे हैं। इसके लिए बाप-बेटे दोनों सक्रिय हैं।
अरुण अशेष,पटना[जागरण डॉटकॉम से साभार]। कुछ नेताओं को पता नहीं चला कि बच्चे इतने बड़े हो गए और अब वे गोद के बदले राजनीति के मैदान में खेलना चाह रहे हैं। उन्हें जब इसकी जानकारी मिली, संतानों के लिए उचित माहौल बनाने की कोशिश में जुट गए हैं। पहला पड़ाव है लोकसभा चुनाव का टिकट। उसमें कामयाबी मिल गई तो जीत के लिए मेहनत करेंगे। ऐसे पिता कमोवेश सभी दलों में हैं। कांग्रेस में इनकी संख्या अधिक है। संचालन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अखिलेश प्रसाद सिंह राज्यसभा में हैं। पांच साल का कार्यकाल बचा है। यह लोकसभा के एक कार्यकाल के बराबर है। सो, पुत्र आकाश की लोकसभा चुनाव लडऩे की इच्छा का सम्मान करना चाहते हैं। पूर्वी चंपारण से पुत्र के लिए टिकट चाह रहे हैं।  कांग्रेस के कुछ नेता अपने पुत्रों के लिए ऊपरी तौर पर भले ही लोकसभा का टिकट मांग रहे हों, मगर उनका असल लक्ष्य विधानसभा चुनाव में टिकट की गारंटी लेना है। वह फंडा है न-बंदूक चाहिए तो तोप का लाइसेंस मांगो। प्रदेश अध्यक्ष डा. मदन मोहन झा के पुत्र माधव नौकरी छोड़कर राजनीति में शामिल हो गए हैं। लोकसभा सीट की गुंजाइश नहीं है। झा खुद विधान परिषद के सदस्य हैं। विधायक भी रह चुके हैं। कांग्रेस की परम्परा के मुताबिक विधानसभा सीट पर उनका दावा पक्का हो सकता है। माधव जीत गए तो विधानसभा में अपने खानदान की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करेंगे। मदन मोहन झा के पिता डा. नागेंद्र झा मंत्री, विधायक और विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं।
कांग्रेस के विधायक रामदेव राय सांसद भी रह चुके हैं। उन्होंने अपने पुत्र गरीब दास को राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना है। गरीब दास युवा कांग्रेस की गतिविधि में सक्रिय हैं। योजना है कि उम्र के नाम पर अगर अगले चुनाव में राय का टिकट कटे तो गरीब दास ऐन मौके पर इसे झटक लें।
पूर्व मंत्री और कांग्रेस के विधायक अवधेश कुमार सिंह एक बार लोकसभा का चुनाव लड़कर हार चुके हैं। इसबार फिर भाग्य आजमाना चाहते हैं। पिता-पुत्र में समझदारी बनी है-किसी एक को लोकसभा का टिकट मिल जाए, दोनों मिल कर लड़ लेंगे। एक संभावना यह भी जाहिर की जा रही है कि कांग्रेस बुजुर्गों की तुलना में युवाओं को तरजीह दे।
अवधेश के पुत्र शशि शेखर इस स्थिति में खुद को दावेदार के तौर पर पेश कर रहे हैं। बुजुर्ग-युवा संकट के दायरे में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी आ सकती हैं। एहतियात के तौर पर वह अपने पुत्र अंशुल को तैयार कर रही हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह को भी उम्र के नाम पर बेदखल होने का अंदेशा है। लिहाजा उनके पुत्र शुभानंद विरासत बचाने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। वे युवा कांग्रेस में हैं।
भाजपा के राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा भी इसी श्रेणी में हैं। अपने राज्यसभा में हैं। पटना साहिब से खुद दावेदार हैं। अगर भाजपा को उस सीट पर कोई युवा चेहरा चाहिए तो यह शर्त उनके पुत्र ऋतुराज पूरी करते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. शकील अहमद ने अपने पुत्र शहरयार को राजनीति में खुलकर अभी लांच नहीं किया है। लेकिन, शहरयार पिछले दिनों जब छट्टी बिताने मधुबनी जिले के अपने गांव आए थे तो उनकी गतिविधियां पहले की तुलना में अधिक सामाजिक थीं। डॉक्टर शकील विधानसभा में अपने खानदान की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वह मधुबनी से सांसद रह चुके हैं और यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी।
खुद भी सौंप रहे हैं विरासत
कुछ ऐसे भी हैं, जो संतानों को खुद अपनी विरासत सौंप रहे हैं। राज्यसभा सदस्य डा. सीपी ठाकुर उम्र के चलते लोकसभा चुनाव नहीं लडऩा चाहते हैं। वे अपने पुत्र विवेक ठाकुर को लोकसभा में देखना चाहते हैं। विवेक विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। एक बार विधानसभा का भी टिकट मिला था। जीत नहीं पाए। मधुबनी के भाजपा सांसद हुकुमदेव नारायण यादव ने कुछ महीने पहले चुनाव न लडऩे का प्रण किया था। चुनाव की चर्चा चल रही है तो वे अपने प्रण को दोहरा नहीं रहे हैं। पुत्र अशोक यादव को टिकट मिल जाए तो शायद उन्हें संतोष मिलेगा। अशोक भाजपा के पूर्व विधायक हैं। पूर्व विधायक रणवीर यादव के चुनाव लडऩे पर पाबंदी है। उनकी पत्नी पूनम यादव जदयू की विधायक हैं। पूनम की बहन कृष्णा कुमारी पिछली बार राजद टिकट पर खगडिय़ा से लोकसभा चुनाव लड़ी थीं। रणवीर के पुत्र साम्यवीर जदयू में सक्रिय हैं। तीन मार्च को गांधी मैदान में आयोजित संकल्प रैली में साम्यवीर की अच्छी भागीदारी थी। लोकसभा या विधानसभा-साम्यवीर दोनों के लिए तैयार हैं।
एक पिता जगदानंद भी हैं
राजनीतिक परिवारों में विरासत सौंपने की चर्चा हो और पूर्व सांसद जगदानंद का जिक्र न हो तो बात पूरी नहीं होती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में जगदानंद बक्सर से जीत गए। उस समय वे रामगढ़ से राजद के विधायक थे। उनके सांसद बनने के चलते रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव हुआ। उनके पुत्र सुधाकर भी  राजद टिकट के दावेदार थे। जगदानंद के विरोध के चलते सुधाकर को राजद ने उम्मीदवार नहीं बनाया। उन्हें भाजपा ने उम्मीदवार बनाया। चश्मदीद कहते हैं कि पुत्र की हार और राजद उम्मीदवार अंबिका पहलवान की जीत के बाद ही वे क्षेत्र से निकले।





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