बिहार विधानसभा के सेंट्रल हॉल में गरिमा गई पानी मै!

12 पन्ने के अभिभाषण को 13 मिनट में ही पढ़ा मान लिया गया 
दोनों सदनों के सदस्य राज्यपाल लालजी टंडन के अभिभाषण को सुनने का धैर्य नहीं दिखा पाये
वीरेंद्र यादव.पटना. पटना के सेंट्रल हॉल की पहली ही बैठक संसदीय मर्यादाओं पर ‘भारी’ पड़ गयी। संसद के सेंट्रल हॉल के प्रारूप पर बना विधान मंडल का सेंट्रल हॉल अपनी ही गरिमा को ‘तार-तार’ कर गया। विधान मंडल के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक विस्तारित भवन में पहली बार हुई थी, लेकिन दोनों सदनों के सदस्य राज्यपाल लालजी टंडन के अभिभाषण को सुनने का धैर्य नहीं दिखा पाये। हंगामा और प्रतिहंगामा के लिए आदि हो चुके हमारे ‘माननीय’ बमुश्किल 15 मिनट भी शांति से नहीं बैठ पाये। और 12 पन्नों के अभिभाषण को राज्यपाल ने 13 मिनट में ही पढ़ा हुआ मान लेने घोषणा कर दी। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई, जब सभी पार्टियों के ‘फेस लीडर’ संयुक्त बैठक में शामिल थे, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को छोड़कर। तेजस्वी की सीट खाली पड़ी रही।
राज्यपाल करीब 11.27 मिनट पर सेंट्रल हॉल के पिछले दरवाजे से आसन की ओर बढ़े। 11.30 पर राष्ट्रगान हुआ और फिर अभिभाषण की शुरूआत। इस बीच मीडिया के लोग 3-4 मिनट की फोटोग्राफी के बाद हॉल से बाहर निकल आये। बाहर हम भी आये। हॉल से निकलकर हम प्रेस दीर्घा में पहुंचे तो कुर्सियां भरी हुई थीं। दीर्घा में लगे टीवी स्क्रीन पर सिर्फ तस्वीर आ रही थी, आवाज नहीं। हम जगह देखकर जमीन पर बैठ गये। प्रेस दीर्घा की ऐसी बनावट है कि दीर्घा में बैठने के बजाये प्रेस रूम में बैठकर सुनना ज्यादा सुविधाजनक है। यही हाल अधिकारी दीर्घा का भी था। प्रेस दीर्घा की कुर्सी पर बैठ कर सदन की

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कार्यवाही दिखायी ही नहीं पड़़ती है। कई पत्रकार दीर्घा के बजाये प्रेस रूम में जाकर अभिभाषण सुन रहे थे।
विधान सभा की बैठक 11.10 बजे समाप्त होने के बाद सभी सदस्य संयुक्त बैठक में शामिल होने के लिए सेंट्रल हॉल में जा रहे थे, तभी हम भी उसी भीड़ में सदन के गलियारे से आगे बढ़े। विस्तारित भवन में प्रवेश करने के बाद हम सीएम चैंबर के गलियारे से मुख्य द्वार पर पहुंचे। राज्यपाल को गार्ड ऑफ ऑनर मुख्यद्वार के सामने दिया जाना था। वहां से हम फिर सेंट्रल हॉल की ओर वापस उसी रास्ते लौट रहे थे कि पुलिस वाले पीछे पड़ गये। हमें बताया गया कि मुख्य दरवाजा से अंदर जाइए। हम मुख्य दरवाजे की ओर तेजी से बढ़े कि आवाज आयी- उधर से नहीं, इधर से जाइये। दरअसल मुख्यद्वार के आगे पुस्तकालय के पास लिफ्ट बना हुआ है, जिससे महामहिम को सेंट्रल हॉल में जाना था। यह लिफ्ट सेंट्रल हॉल के पिछले दरवाजे तक ले जाता है और उसी रास्ते राज्यपाल को जाना था।
पुलिसकर्मियों के निर्देश के बाद हम पीछे मुड़े और फिर बाहरी गलियारे से लाइब्रेरी के बगल से लिफ्ट के पास पहुंचे और फिर लिफ्ट से ऊपर यानी दूसरी मंजिल पर। दूसरी मंजिल पर ही सेंट्रल हॉल का प्रवेश द्वार है। तीसरी मंजिल पर प्रेस दीर्घा है।
राज्यपाल के पहुंचने के समय होने पर हम फिर दूसरी मंजिल पर आये। राज्यपाल के आने के बाद राष्ट्रगान हुआ और अभिभाषण। इसके बाद सदन में घुसने के लिए पत्रकारों में होड़ थी। हम भी सदन में ढुक गये। हमने विधायक और विधान पार्षद की तस्वीर लेने में रुचि ली, क्योंकि हमारे तीन वाट्सग्रुप में सिर्फ सांसद, विधायक, विधान पार्षद और इन चुनाव में हारे हुए लोग हैं। इसलिए हमारा फोकस दोनों सदनों के सदस्यों पर ही था।
करीब 50 मिनट में अभिभाषण की समूची प्रक्रिया पूरी हो गयी थी। इस दौरान पूरे माहौल में गहमागहमी बनी रही। वरीय प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी के साथ विधान सभा सचिवालय के अधिकारी भी कार्यक्रम के समापन तक व्यस्त रहे। इस बीच मुख्यमंत्री विस्तारित भवन से विधान सभा में बने अपने चैंबर में नयी राह से आये। यह नयी राह पुरानी कैंटिन हॉल से होते हुए सत्ता पक्ष की लॉबी की ओर पहुंचती है। हम भी इसी नयी राह से सीएम के चैंबर से होते हुए विधान सभा के पोर्टिको से बाहर निकल लिये।






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