मंत्री पद के लिए क्यों होती है मारामारी-2

‘चेयर प्रैक्टिस’ ही है आकर्षण की वजह
वीरेंद्र यादव
विधायकों का वेतन व भत्ता का निर्धारण संसदीय कार्य विभाग करता है, जबकि मंत्रियों के वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाओं का निर्धारण मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग करता है। वेतन व क्षेत्रीय भत्ता विधायक और मंत्रियों को समान मिलता है। इसके अलावा अन्य सुविधाएं अलग-अलग हैं। मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अनुसार, मंत्रियों को दैनिक भत्ता प्रतिदिन 2000 रुपये मिलते हैं। मंत्री बिहार में हों या बिहार से बाहर, उनके दैनिक भत्ता पूरे महीने का मिलता है। इनके दैनिक भत्ते में कटौती नहीं होती है। मंत्रियों को कोई यात्रा भत्ता देय नहीं होता है। उनकी विभागीय और ‘पारिवारिक’ यात्राओं के दौरान आवश्यकता अनुसार ईंधन के साथ वाहन देय होता है। विभागीय मंत्री के लिए आवंटित वाहनों का वे इस्तेमाल कर सकते हैं। एक से अधिक विभाग के मंत्री को संबंधित सभी विभाग के वाहनों और संसाधनों के इस्तेमाल का अधिकार होता है। अपने राजनीतिक आयोजनों के लिए मंत्री संबंधित जगह पर विभागीय कार्यक्रम भी तय कर लेते हैं। इस प्रकार सरकारी खर्चा और काफिले पर राजनीतिक दुकान भी चमका लेते हैं। इसके लिए एक कहावत भी है कि ‘लइका के बहाने लरकोरी’ भी मलाई काट लेती है।
मुख्यमंत्री को प्रतिमाह 25 हजार और कैबिनेट मंत्री को 24,500 रुपये प्रतिमाह आतिथ्य भत्ता के रूप में मिलते हैं। इसे आप चाय-पानी का खर्चा कह सकते हैं। मंत्रियों को विभागीय कार्यालय और आवासीय कार्यालय के डेकोरेशन के लिए 3-3 लाख रुपये दिये जाते हैं। इस राशि से विभागीय या आवासीय कार्यालय के टेबुल, कुर्सी और पर्दा आदि खरीदे जा सकते हैं। इसमें बड़ा खेल भी होता है। बताया जाता है कि टेबुल-कुर्सी और पर्दा के बिल पर मंत्री के लिए सोफा, दीवान से लेकर अन्य सामान खरीदे जाते हैं। जब मंत्री आवास छोड़ते हैं तो डेकोरशन की राशि से खरीदे गये सामान भी अपने साथ लेकर चले जाते हैं। इस राशि का भुगतान मंत्री को नकद नहीं किया जाता है। भवन निर्माण विभाग ही आवासीय व विभागीय कार्यालय के डेकोरेशन व मेंटेंनेंस का काम करता है।
मंत्री होने के कारण कई ‘चेयर प्रैक्टिस’ भी हो जाती हैं और जो अघोषित आय के स्रोत होती है। यही ‘चेयर प्रैक्टिस’ राजनीति की ताकत है। इसी से सरकार और पार्टियां के राजनीतिक काम चलते हैं। इसे एक पूर्व मंत्री के दर्द भरे शब्दों से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब मंत्री थे तो फल-मिठाई लेकर लोग आते थे। इससे बच्चों को आदत खराब हो गयी है। मंत्री पद से हट गये हैं तो फल-मिठाई सब बंद हो गया है। लेकिन बच्चों की आदत नहीं जा रही है। सब दिन भर परेशान करते हैं।






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