बिहार में भाजपा से मुकाबले के लिए लालू यादव ने बनाया यह फार्मूला

अरविंद शर्मा.पटना. बिहार में सत्ता से बेदखल होने के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद भाजपा-जदयू गठबंधन से मुकाबले के लिए नए तरीके से तैयारी में जुटे हैं। राजद के रणनीतिकारों ने इसके लिए तीन स्तरीय फार्मूला तैयार किया है। राजद का सर्वाधिक फोकस सोशल मीडिया, संगठन और संवाद के मोर्चे को सशक्त करने पर है।
बिहार में महागठबंधन के बिखरने के बाद लालू प्रसाद यादव को अहसास है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा बेहद आक्रामक रणनीति के साथ फील्ड में उतरने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में मिशन-2019 की तैयारी की झलक अभी से दिखने भी लगी है। ऐसे में राजद को सबसे पहले संगठन को दुरुस्त करना होगा।
यही कारण है कि लालू निर्धारित समय से एक साल पहले ही संगठन चुनाव की प्रक्रिया में चले गए। राजद में संगठन का चुनाव प्रत्येक तीन साल पर होता है। पिछला चुनाव नवंबर 2015 में हुआ था। इस हिसाब से नवंबर 2018 में चुनाव होना चाहिए था, लेकिन लालू को लगा कि लोकसभा चुनाव के पहले ही नए लक्ष्य के साथ संगठन को नए कमांडरों के हवाले कर देना चाहिए।
लिहाजा इसी महीने के आखिर तक संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। संगठन में युवाओं को तरजीह देकर पार्टी में नए नेतृत्व के अनुकूल नई ऊर्जा का संचार करने का प्रयास भी जारी है।
लालू की दूसरी प्राथमिकता सोशल मीडिया के इस्तेमाल की है। कई तरह के आरोपों में अदालती चक्कर में फंसे होने के बावजूद राजद के शीर्ष नेता अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया का किसी भी पार्टी की तुलना में अभी सबसे अधिक सहारा ले रहे हैं। देश-प्रदेश की तकरीबन सभी बड़ी घटनाओं पर राजद के शीर्ष नेताओं की नजर रहती है। लालू प्रसाद और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव खुद फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय हैं। सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक गतिविधियों पर राजद की ओर से जरूरत के हिसाब से प्रतिक्रिया व्यक्त करने में देर नहीं होती।
राजद प्रमुख को पता है कि चुनाव जीतने के लिए उनकी मौजूदा ताकत ही पर्याप्त नहीं है। मुस्लिमों और यादवों के अतिरिक्त बाकी जातियों का समर्थन जुटाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। लालू को यह भी पता है कि उनकी दूसरी सहयोगी कांग्रेस में भी इतना दम नहीं कि राजद के वोट बैंक में इजाफा कर सके। ऐसे में गैर मुस्लिम, गैर यादव ताकतों से समर्थन हासिल कर लालू गठबंधन को मजबूत करना चाहते हैं। इस प्रयास में लालू को अपनी अनोखी और परंपरागत भाषण शैली का सहारा लेना अनिवार्य होगा। चारा घोटाले की सुनवाई के क्रम में अक्सर रांची-पटना की यात्रा के बावजूद लालू को जब भी मौका मिलता है वह अपने समर्थकों के बीच जाकर संवाद की कोशिश जरूरत करते हैं। स्रोत साभार जागरण






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