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1टॉप करवाना की मिडिल क्लास मानसिकता

संजय तिवारी

स्कूल में बच्चों को टॉप करवाना ये मिडिल क्लास मानसिकता है। न तो अपर क्लास को इस बात से कोई मतलब है और न ही लोअर क्लास को। ये जो बीच में त्रिशंकु बनकर लटका है मिडिल क्लास उसी के बच्चों पर स्कूल में टॉप करने का सबसे अधिक दबाव रहता है। उसका एक बड़ा कारण है उसका रूटलेस हो जाना। मिडिल क्लास ज्यादातर शहरी इलाकों में रहता है। इसने अपनी जड़ों से लगभग अपने आपको काट लिया है। अब इसके सामने सर्वाइवल का सबसे बड़ा साधन नौकरी है। इसे हर हाल में नौकरी या छोटा मोटा व्यापार करते रहना है ताकि ये जिन्दा रह सके। ऐसे में उसके जीवित रहने का स्कूली शिक्षा ही उसका सबसे बड़ा सहारा है। वह एक ऐसे सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट वाले माहौल में फंस गया है जहां जिन्दा रहने के लिए उसे टॉप पर रहना होगा।
एक कारण और है। इस मिडिल क्लास के पास जीवन में सेलिब्रेशन के लिए कुछ खास बचा नहीं है। अपनी जड़ों से कट जाने की वजह से उसकी सांस्कृतिक पहचान लगभग लुप्त हो गयी है। इसलिए अब उसे जीवन में सेलिब्रेशन के नये नये तरीके खोजने पड़ रहे हैं। इसमें स्कूल में टॉप करने से लेकर बर्थडे पार्टी आयोजित करने या फिर ऐसे ही अवसरों को तलाशकर वह अपने अस्तित्व को तलाशने का प्रयास करता है। सामाजिकता को वह बहुत पहले ही पीछे छोड़ आया है ऐसे में जो बात भारतीय परंपरा में बिल्कुल महत्वहीन होती है, वही बात इस मिडिल क्लास के लिए जीवन का आधार बन जाती है।
विकास की इस नव उधारवादी आंधी में सबसे ज्यादा मिडिल क्लास का ही ख्याल है क्योंकि यही मिडिल क्लास बाजर का वाहक होता है। लेकिन दुर्भाग्य से ये विकास की इस आंधी में यही मिडिल क्लास सबसे ज्यादा अधर में लटका हुआ है।





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