बिहार में एक हजार रुपए किलो क्यों बिकती है हिल्सा मछली, इसे पाल का हो सकते हैं करोड़पति!
हिल्सा मछली से एक एकड़ में कमा सकते हैं 15 लाख रुपये, बिहार में एक हजार रुपये प्रति किलो है कीमत
बिहार में मछली पालन के जरिये रोजगार हासिल करने की संभावना।
पटना, दिलीप ओझा जागरण से साभार। पटना की बाजार समिति स्थित मछली मंडी में पांच दशक से हिल्सा (मछली की एक प्रजाति) उपलब्ध नहीं है। लोग इसका स्वाद भी भूल चुके हैं। हालांकि, इसके विकल्प के तौर पर वर्मी हिल्सा से जुड़े दो प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं। हिल्सा की वापसी की बड़ी बात इसलिए कि महज एक एकड़ के तालाब से 15 लाख रुपये की कमाई इससे संभवित है, क्योंकि इसका स्थानीय भाव 1000 रुपये प्रति किलो और निर्यात मूल्य 4000 रुपये प्रति किलो तक है। इसे एक क्रांति के रूप में भी देखा जा सकता है।
कैसे गायब हुई हिल्सा
गंगा नदी पर 1972 में फरक्का बांध बनने के साथ ही पानी का बहाव रुक गया और हिल्सा भी बिहार की जगह बांग्लादेश चली गई। बाजार समिति मछली मंडी के अध्यक्ष अनुज कुमार कहते हैं, पांच दशक से मंडी में हिल्सा नहीं आ रही है। मछुआ टोली, बोरिंग रोड के व्यवसायी कोलकाता से 20-25 किलो मछली लाते हैं। कीमत 1000 रुपये किलो होने से इसे कुछ ही लोग खरीद पाते हैं।
प्रोजेक्ट ने जगाई उम्मीद
हिल्सा की किल्लत को देखते हुए भारत सरकार के राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंध संस्थान-हैदराबाद और नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड की एक्वा क्लीनिक्स की नोडल एजेंसी सृष्टि फाउंडेशन के अध्यक्ष एके ठाकुर ने हिल्सा की जगह वर्मी हिल्सा के प्रजनन एवं विकास से जुड़ा इनोवेटिक प्रोजेक्ट बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, भागलपुर के समक्ष रखा। प्रोजेक्ट चयनित हुआ और एके ठाकुर को प्रशिक्षण भी दिया गया। ठाकुर कहते हैं, भरोसा है, प्रोजेक्ट को स्वीकृति भी मिलेगी, लेकिन मैंने अपने बल पर कलौंजर पंचायत (समस्तीपुर) के फुलहट्टा ग्राम में वर्मी हिल्सा का पालन शुरू कर दिया है। इसके अलावा, जंदहा प्रखंड (वैशाली) स्थित सोरहथी में हैचरी का निर्माण हो रहा है। दो साल में ब्रूडर (मदर फिश) बिहार के किसानों को मिलने लगेगी।
वर्मी हिल्सा की खासियत
ठाकुर कहते हैं, हिल्सा की प्राकृतिक दिक्कत यह है कि यह प्रजनन तो नदी के मीठे जल में करती है, लेकिन पालन वहां होता है जहां नदियां समुद्र में गिरती हैं। इसके उलट वर्मी हिल्सा का प्रजनन व पालन दोनों मीठे जल में संभव है। मीठे जल स्रोत के मामले में बिहार देशभर में धनी है, इसलिए प्रोजेक्ट की सफलता में संदेह नहीं है। वर्मी हिल्सा में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जिससे कई बीमारियों में लाभ होता है।
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