बिहार में बदलनी होगी सत्‍ता की आर्थिक संस्‍कृति

वीरेंद्र यादव की पोलिटिकल डायरी 

राजनीति का सीध संबंध सत्‍ता से है और सत्‍ता का सीधा संबंध संपत्ति से है। संपत्ति के साथ जुड़ा शब्‍द है धन-संपत्ति। धन से जुड़े कई मुहावरे हैं। हम मुहावरों की बात नहीं कर रहे हैं। हम धन की बात कर रहे हैं। बोलचाल की भाषा में ‘माल’ भी कहते हैं। बिहार में बहुत सारे विधायक करोड़पति हैं। विधायक के साथ सत्‍ता खुद-ब-खुद जुड़ जाती है। बिहार में सत्‍ता की राजनीति कमाई का नहीं, लूटने का माध्‍यम है। हर विधायक मंत्री बनना चाहता है, कमाने के लिए नहीं, लूटने के लिए। सरकारी योजनाओं की लूट में हिस्‍सेदारी के लिए। इसे चेयर प्रैक्टिस कहते हैं। विधायक होने के कारण विकास के नाम लूट के कई रास्‍ते खुल जाते हैं। इसमें गलत भी कुछ नहीं है। चुनाव में करोड़ों रुपये फूंकने वाले आलू बेचकर थोड़े ही वसूल करेंगे।
2017 में योगी आदित्‍य नाथ यूपी के मुख्‍यमंत्री बने थे। हमने उनका शपथपत्र खंगाला तो उन्‍होंने राजनीति को अपना पेश बताया था। राजनीति को कुछ लोग समाजसेवा भी कहते हैं। बिहार में अधिकतर विधायकों का पेशा राजनीति यानी समाजसेवा ही है। दरअसल बिहार में सत्‍ता की आर्थिक संस्‍कृति को बदलने की जरूरत है। बिहार का विधायक राजनीति को धंधा मानता है और उसे ही आय का स्रोत बताता है। जबकि राजनीति को धंधा विस्‍तार का माध्‍यम होना चाहिए। बिहार के राज्‍यपाल थे डीवाई पाटिल। अपने कार्यकाल में उन्‍होंने पटना में एक डीवाई पाटिल स्‍कूल खोल कर चले गये। राज्यपाल बनकर आये थे और धंधा फैला कर वापस महाराष्‍ट्र चले गये। यह कल्‍चर बिहार में नहीं है। बिहार में सत्‍ता में आकर लोग सरकार को लूटना चाहते हैं, लेकिन बाजार में दखल देना नहीं चाहते हैं। किंग महेंद्र, अमरेंद्र धारी सिंह, प्रेमचंद गुप्‍ता, एसएस अहलुवालिया जैसे कई नेताओं ने राजनीतिक दलों के फंड में दान दिया और ‘प्रसाद’ में टिकट लेकर सांसद बन गये। इन लोगों ने राजनीतिक सत्‍ता का इस्‍तेमाल धंधे के विस्‍तार के लिये किया। कई एमएलसी भी हैं, जो ‘प्रसाद’ में टिकट लेकर सदस्‍य बने और फिर धंधे के विस्‍तार में जुट गये। बिहार की राजनीति में इसी संस्‍कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। लेकिन बिहार का दुर्भाग्‍य है कि विधायक राजनीति को ‘पेंशन स्‍कीम’ मानते हैं और पेंशन पक्‍का करने के लिए करोड़ों फूंक देते हैं।
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उप मुख्‍यमंत्री तारकिशोर गुप्‍ता की प्राथमिकता
बिहार के उप मुख्‍यमंत्री हैं तारकिशोर प्रसाद। नाम बड़ा अटपटा लगता है। प्रसाद से लगता ही नहीं है कि लालू प्रसाद वाले ‘प्रसाद’ हैं या राजेंद्र प्रसाद वाले ‘प्रसाद’। इसलिए हमने पाठकों की सुविधा के लिए उनका सरनेम प्रसाद की जगह गुप्‍ता कर दिया है। तो हम बात कर रहे हैं उप मुख्‍यमंत्री तार किशोर गुप्‍ता की। रविवार की शाम को उनसे मुलाकात हुई। उनके पुराने आवास पर ही। हमने पूछा- नये आवास (5 देशरत्‍न मार्ग) में कब जा रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि अभी वास्‍तु देखकर तय करेंगे। हम मुद्दे पर लौटे। नयी सरकार में आपकी प्राथमिकता क्‍या होगी। उन्‍होंने कहा कि आत्‍मनिर्भर बिहार और सात निश्चिय के संकल्‍पों को जमीन उतारना ही सरकार की प्राथमिकता है। हमने विभिन्‍न आयोगों में रिक्‍त पड़े पदों की चर्चा की तो उन्‍होंने कहा कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी सत्‍ता में हिस्‍सेदारी मिलनी चाहिए। इसके लिए उचित और नियमानुकूल कार्य किये जायेंगे।
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10 नंबर के दरवाजे पर आकर 15 नंबर से लौट गयी थी सत्‍ता
पूर्व मुख्‍यमंत्री राबड़ी देवी का सरकारी बंगला 10 नंबर सर्कुलर रोड। दरवाजे के बाहर 10 नवंबर से पसरा सन्‍नाटा अभी टूटा नहीं लगता है। विधायकों की कई बैठक हुई, लेकिन सन्‍नाटा यथावत। शाम को दस नंबर गये थे नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात करने के मकसद से। लेकिन दरवाजे पर सन्‍नाटा पसरा हुआ था। चुनाव के समय दरबार दिखने वाला 10 नंबर फिर ‘दरबे’ में तब्‍दील हो चुका है। बांग देने वाले भी पटना छोड़ चुके हैं। दरवाजे पर विधायक ललित यादव, पूर्व विधायक शक्ति सिंह यादव और गुलाब यादव का आगमन दिखा, लेकिन किसी चेहरे पर उत्‍साह नहीं था। 10 नवंबर को 10 नंबर के दरवाजे पर सत्‍ता आती दिख रही थी कि 15 नंबर (महागठबंधन और एनडीए के विधायकों की संख्‍या का अंतर) से लौट गयी। इसका दर्द अब भी 10 नंबर में विश्‍वास रखने वाले कार्यकर्ताओं साल रहा है। अंदर और बाहर की गतिविधि अभी यही कहती है।
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