कौन जात के बच्चे इंसेफलाइटिस या चमकी बुखार से बच्चे मर रहे हैं

बुधनमा : – नवल किशोर कुमार
बिहार का राजा चाहे भले ही आंख का अंधा हो, लेकिन बुधनमा अंधा नहीं है। वह सब देखता है। हर साल सैंकड़ों बच्चे इंसेफलाइटिस के कारण मारे जाते हैं। बिहार का राजा चैन की वंशी बजाता है। बुधनमा सब जानता है। अखबार में पढ़ता है। टीवी पर देखता है कि एसकेएमसीएच में दिमागी बुखार से पीड़ित बच्चे किस तरह पड़े हैं।

उस समय बुधनमा का करेजा फट जाता है जब कोई मां-बाप अपने बच्चे की लाश हाथ में लिए अस्पताल से बाहर आता है। उसके मन में आता है कि बिहार के राजा का झोंटा पकड़ के ले आए और उसको कहे कि किस बात के राजा हो तुम।

खैर बुधनमा लोकतंत्र में विश्वास रखता है। कानून को हाथ में लेना उसको पसंद नहीं। बुधनमा गरीब भी तो है। गरीब आदमी कर भी क्या सकता है। सिवाय इसके कि वह राजा को कोसे। सार्वजनिक तौर पर उसको गालियां भी नहीं दे सकता है। का जाने राजा का दिमाग सनक जाये और बुधनमा को जेल भेज दे। फिर बुधनमा क्या करेगा।

लेकिन बुधनमा को इस बात से हैरानी है कि इतने बच्चे मर जाते हैं/मार दिए जाते हैं और कोई कुच्छो नहीं बोलता है। सिविल सोसायटी का चोला ओढ़ने वाले लोग भी मुंह सी के बैठल रहते हैं। आखिर इ माजरा क्या है? क्या मरने/मारे जाने वाले बच्चे केवल एक ही जाति वर्ग के होते हैं? 

बुधनमा ने कल एसकेएमसीएच के अधिकारी को फोन किया। जानकारी मिली कि अबतक 43 बच्चों की मौत हो चुकी है। करीब 67 की संख्या में अभी इलाजरत हैं। प्रतिदिन 15-20 बच्चे अस्पताल लाए जा रहे हैं। यह पूछने पर कि जो बच्चे हैं अधिकांश किस तरह के इलाके से हैं, तो अधिकारी ने बताया कि अधिकांश बच्चों के माता-पिता गरीब हैं।

बुधनमा तब समझा कि असल में अधिकारी जिनको गरीब कह रहा है, वे असल में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग हैं। मतलब चमार, डोम, धोबी, यादव, कोईरी, कुर्मी, धानुक, कहार, कुम्हार, नाई आदि।






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