किसने कह दिया, मोदी हारा

रघुनाथसिंह लोधी
कुछ राज्यों में कांग्रेस जीती। भाजपा हारी। इस हार जीत पर कई तराने गूंजे। कह दिया गया,अब दिल्ली हिलनेवाली है। दिल्ली केजरीवाल वाली नहीं। राहुल गांधी अब पप्पू नहीं रहे। अहंकार को पस्त कर गए। पीएम मोदी को करारा झटका लगा। हार जीत के शोर शराबे के बीच यह बात समझ नहीं आयी कि मोदी कैसे हारे। थोड़ा इस एंगल से भी सोचकर देखिए। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय पीएम पद के चेहरे के लिए भाजपा में एकमत नहीं था। लालकृष्ण आडवाणी की छोडिये। मोदी के गुजरात माडल की बात निकलती तो भाजपा से भी आवाज आती,और भी है हमारे पास। कोई कहता गुजरात के सीएम से ताकतवर व कुशल तो मध्यप्रदेश के सीएम है। गुजरात तो पहले से ही विकसित था। मुंबई व बंदरगाहों से कनेक्टिविटी का उसको लाभ मिला। मध्यप्रदेश जैसे बीमारु राज्य को विकास की धारा से जोड़ने का जो काम हुआ वह कहीं नहीं हुआ है। शिवराजसिंह का नाम पीएम पद के लिए गिनाया जाता था। छत्तीसगढ़ के डॉ.रमणसिंह के बारे में भी कहा जाता था कि उन्होंने चावल बाबा की पहचान ऐसे ही नहीं बनायी है। वे गुजरात व गोधरा जैसे दाग लेकर नहीं चलते है। राजस्थान की कथित महारानी की तो बात ही मत करिए। खबरें आती रही कि वसुंधरा राजे किसी को गिनती ही नहीं है। मोदी प्रधानमंत्री बन भी गए तो वसुंधरा ने कभी उनके सामने झुकना पसंद नहीं किया। और तो और जो अमित शाह भाजपा सहित केंद्र सरकार के मंत्रियों को आंख दिखाते रहा। जिसने कथित तौर पर भय का वातावरण बनाया उसे भी वसुंधरा के राज ठाठ के सामने चुप रहना पड़ा। बात अपने ही दल में षड़यंत्रों तक पहुंची। वसुंधरा के तेवर तने रहे। साफ है तीनों मुख्यमंत्री सेल्फ मेड थे। वे कोई देवेंद्र फडणवीस या योगी आदित्यनाथ नहीं जो मोदी मेड हैं। शिवराज, रमण व वसुंधरा जैसे ही येदियुरप्पा की पर्सनालिटी थी। भ्रष्टाचार के आरोप उनपर लगते रहे। काफी मालदार है। लेकिन कर्नाटक जैसे दक्षिण के राज्य में भाजपा की सरकार बनाने का खिताब येदि को केंद्र की राजनीति में कभी भी मिल जाता । मोदी के पीएम बनते ही सबसे पहले येदि का राज गया। भाजपा के 4 मुख्यमंत्री सत्ता गंवा बैठे। इसमें भाजपा की हार हो सकती है पर मोदी की हार कहां है। उनकी तो पार्टी के भीतर उठनेवाली चुनौती वक्त से पहले ही टांय बोल गई। प्रसंगवश कोई अब यह न पूछ ले कि भाजपा में मंत्रियों के बीमार होने,बेहोश होने या चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान का दौर क्यों चल पड़ा है। राह के कांटे कैसे सहे जा सकते हैं।। और हां, राहुल गांधी का राजनीतिक कद बढ़ने से मोदी काे क्या तकलीफ हो सकती है। राहुल के बढ़ने से तो नींद उन पवारों की उड़ेगी जो सोनिया को परदेसी परदेसी कहते हुए कांग्रेस से बाहर हुए थे। कांग्रेस में ही ऐसे महत्वाकांक्षियों की कमी नहीं है जो कामना करते रहते हैं कि राहुल की पप्पू वाली पहचान बनी रहे। कांग्रेस से पीएम बनने का समय आए तो भाग्य का छींका उनके नाम से टूटे। ममता बैनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती जैसे न जाने कितने मोदी विरोधी नेता हैं। वे मोदी को घर बैठाना चाहते हैं। लेकिन वे भी यह बात कैसे पचा सकते हैं कि राहुल गांधी केंद्र में विपक्ष के नेतृत्वकर्ता हो। पचा सकते, तो दो दिन पहले विपक्ष की बैठक के लिए महाशयों के आने के इंतजार में आंखें नहीं तकना पड़ता। असल में, मोदी भी चाहेंगे कि 2019 आते आते विपक्ष में राहुल राहुल का शोर हो। विपक्ष के ही कई महत्वाकांक्षी मानसिक अवसाद की स्थिति में जाने लगेंगे। महाराष्ट्र के नेताअों की स्टाइल में कहा जाए तो राहुल के विरोध में विपक्ष के ही लोगों का पोला छूटेगा। अब बताइये, मोदी कहां हारे,किसने कह दिया वे हारे।






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