मनु संहिता की सार्थकता : जानिए किसने बनाई जाति!

सुबोध गुप्ता
ऋग्वेद के लगभग 10 हज़ार ऋचाओं में जाति शब्द का उल्लेख तक नहीं है . ऋग्वेद में कहीं पर भी शूद्र वर्ण का वर्णन नहीं है . शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मणग्रन्थ ‘शतपथ ब्राह्मण’ तथा कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा एवं महर्षि भारद्वाज सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आख्यान से संबंधित ‘तैत्तिरीय ब्राह्मण’ में भी शूद्र वर्ण को अलग वर्ण नहीं माना गया है .
यद्यपि मनु संहिता ही एक मात्र ऐसी ग्रन्थ है जिसने मनुष्यों को 4 वर्णों में बांटा है . किसी भी काल में किसी भी देश का कोई भी ज्ञानी पांचवां वर्ण नहीं बता सकता .फिर भी मनु संहिता या अन्य कुछ पौराणिक ग्रन्थ में वर्णित कुछ ऋचाएं एवं सूत्र परस्पर विरोधी होने के कारण वर्तमान में घोर विवादित हैं . रचयिता ऋषियों का अभिप्राय उस पौराणिक कालों में क्या रहा होगा यद्यपि कहना मुश्किल है किन्तु उनके अर्थ आज जो परिलक्षित हो रहे हैं को स्वीकार करना अत्यंत कठिन है .इक्कीसवीं शताब्दी की देहरी पर खड़ी हिन्दू सभ्यता इस बात की साक्षी रहेगी कि जिन वेदों, ग्रंथों और पुराणों पर अभिमान करते हुए वैदिक काल से ही हिंदुस्तान विश्व गुरु रहा है , उनकी सार्थकता पर हिन्दुओं ने ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था. सर्व काल में सर्व देश में सर्व धर्म के सर्व मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ पथ प्रदर्शक व सर्वाधिकार वाले ग्रंथों पर एकाधिकार हो जाने के कारण वह सनातन धर्म, जिसके अस्तित्व के प्रमाण श्रृष्टि की उत्पति काल में भी मिलते हैं, सार्वभौम क्या बनता इसी के ही अनुनायी पलायन करते हुए उन धर्मों को अंगीकृत करने के लिए बाध्य हो गए जिनके प्रवर्तक स्वयम हिन्दू हुआ करते थे.
यद्यपि यह विडम्बना है उन धर्म ग्रंथों की तथापि यह मनु संहिता की ही देन है कि महर्षि विश्वमित्र क्षत्रिय होकर भी सर्व श्रेष्ठ वेद मंत्र गायत्री मंत्र को जब रचा तो प्रज्ञावान ब्राहमण के रूप में प्रकांड ब्राह्मणों द्वारा स्वीकार किए गए थे . वेदांत सूत्र और महाभारत के रचयिता वेदव्यास केवट पुत्री के जारज संतान थे. उनके पिता महर्षि पराशर चाण्डाली के पेट से पैदा हुए थे. महामुनि वशिष्ठ गणिका पुत्र थे . नारद और महर्षि भरद्वाज की माताएं भी निम्न और मलिन थीं . वज्रसूच्युपनिषद का अवलोकन करने पर पता चलता है कि वाल्मीकि दीमकों की मिटटी के ढेर से उत्पन्न हुए थे.
छान्दोग्य उपनिषत 4/4 के अनुसार दासी पुत्र सत्यकाम जाबाल , जिसके पिता का निश्चय माता भी नहीं कर सकती थी , ब्रह्मविद्या सीखकर ऋषि पद को प्राप्त हुआ .महिदास ऐतरेय शुद्र के पुत्र थे . ग्रंथों के आधार पर विद्वानों की सम्मति है कि ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे. परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की. ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण को ही अतिशय आवश्यक माना जाता है.
ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे. ऐतरेय ब्राह्मण 2.19 के अनुसार जुआरी और चरित्र हीन भी थे. परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये. ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया, दीर्घतम ऋषि की माँ उशिज शूद्र थी .
राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया. (विष्णु पुराण 4.1.14) अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए? नाभागरिष्ट के दो पुत्र ब्राह्मण हो गए . विष्णु पुराण 6/2/25 के अनुसार नैदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हो गए . पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया . (विष्णु पुराण 4.1.13), धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया. आगे उन्हीं के वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए. (विष्णु पुराण 4.2.2), विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने. हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए. (विष्णु पुराण 4.3.5), मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने, त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे, विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया तह विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया, विदुर दासी पुत्र थे तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया . मतंग ऋषि हरिजन तो शबरी भील जाति की थी . ब्रह्माण्ड पुराण 2/32/121-122 तथा मत्स्य पुराण 145/116-117 के अनुसार 91 मंत्र द्रष्टा ऋषियों में 3 वैश्य थे यथा भलंद , वन्द्य और संकृति .
ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड , पृष्ठ संख्या : 347 में कुछऐसे ब्राह्मणों की उत्पति लिखी है जो मूलतः भील थे. क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया. पुनः विष्णु पुराण 4/8/9 और हरिवंश पुराण 21/32 कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए थे . इस प्रकार एक ही कुल में चारो वर्ण के मनुष्य होने का प्रमाण मिलता है . ऋग्वेद 9/112/3 के अनुसार ऋषि अंगिरस कहते हैं कि मै स्तव रचना करता हूँ ,पिता वैद्य और माता पिसनहारी है . 80 शतपथ ब्राह्मण 11/6/2/10 , तैतरेय संहिता 6/6/1/4 और कठोपनिषत 30/1 स्पष्ट कहते हैं कि कर्म के अनुसार वर्ण का निर्माण होता था .
स्वयम राजा दसरथ की चार महारानियों में लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की माता होने का सौभाग्य प्राप्त अत्यंत प्रभावशाली सुमित्रा शूद्र जाति की थी. महाभारत कालीन शांतनु की पत्नी सत्यवती मल्लाह की पुत्री थी . उस मल्लाह ने राजा शांतनु से यह वचन भी लिया था कि उनके द्वारा उत्पन्न पुत्र ही राजा का उतराधिकारी होगा. जाति के नाम पर उसे वंचित नहीं किया जाएगा .
ब्रह्म ज्ञान के बड़े- बड़े उपदेष्टा क्षत्रिय थे यथा जनक, अजातशत्रु, अश्वपति, कैकय, प्रवाहन आदि. वृहदारण्यक उपनिषत 3/1/1 के अनुसार इनके पास ब्राह्मण ऋषि भी ब्रह्म विद्या सिखने आते थे. ऋग्वेद 10/98 के अनुसार क्षत्रिय लोग यज्ञ के अनुष्ठान के परिचालक हुआ करते थे . महाभारत आदि पर्व 175 के अनुसार महर्षि भृगु के वंशज रथ बनाया करते थे .
शाश्वत सत्य है कि जाति से किसी मनुष्य की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. यद्यपि निम्न कुल में उत्पन्न हुए थे किन्तु अनेकों ऋषि मुनि ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी तप की ज्वाला से समस्त मनुष्य जाति की चेतना को प्रज्वलित किया है . संत तुकाराम, संत नामदेव, संत रैदास, संत नरहरि की जाति वर्तमान व्यवस्था में यद्यपि निम्न थी किन्तु संतों की जाति में उनका स्थान सदैव सर्वोपरि है . प्रकांड से प्रकांड ब्राह्मणों ने भी वेद ज्ञाता इन संतों की प्रज्ञा को नमन किया है . जातक कथा के अनुसार भगवान् बुद्ध जो क्षत्रिय राजा शाक्य के वंशज थे , की पत्नी एक किसान की पुत्री थी , अहिल्याबाई होलकर निम्न जाति का होने के पश्चात भी गंगा, यमुना, नर्मदा पर पुल बनवाने के अतिरिक्त अयोध्या में जर्जर हो रहे मंदिरों का जीर्णोद्धार किया था. एक मोची ने रायपुर में विष्णु मंदिर बनवाया था. चन्द्रगुप्त मौर्य वैश्य थे . सम्राट अशोक, बिम्बसार ,अजात शत्रु आदि भी वैश्य थे .आन्ध्र साम्राज्य का राजा शुद्र था . उज्जैन का राजा अहीर था .हिंदुस्तान पर अत्यंत संगठित और शक्तिशाली विदेशी हूणों ने जब आक्रमण किया था तो उन्हें हिंदुस्तान से खदेड़ देने वाला कौन था? हिंदुस्तान के इतिहास में अबतक ज्ञात सर्वोपरि सुनहरा दौर का गौरव रखने वाले गुप्त वंश के शासक व प्रथम विक्रमादित्य क्या ब्राह्मण या क्षत्रिय थे? महान पराक्रमी राजा हर्ष को बाण भट्ट ने हर्ष चरित में बनिया होना माना है .मध्यकाल में मुगलों और अफगानों के अभेद सैन्य शक्ति को नेस्तनाबूद कर देने वाला हेमू कोई क्षत्रिय तो नहीं था. पुराणों की खामियों को दर किनार करते हुए अन्य सभी धर्मों के अनेको मर्मज्ञों और धर्माचार्यों को शस्त्रास्त्र में परास्त कर हिन्दू दर्शन व ग्रन्थ ही सर्व श्रेष्ठ हैं को प्रमाणित करने वाले तथा यह साबित करने वाले कि हिन्दुओं की किसी भी ग्रन्थ में अस्पृश्यता नहीं है स्वामी विवेकानंद क्या अपनी मूल जाति से पंडित या ब्राह्मण थे? उनकी वाणी व उपदेश का संचय किसी वेद और पुराण से कम नहीं , आदि अनेकोनेक उधाहरण है . जो प्रमाण हैं कि किसी भी मनुष्य पर तथाकथित कृत्रिम जाति का कोई असर नहीं होता.
‘Caste’ शब्द की उत्पति का मूल स्रोत ‘ स्पेन और पुर्तगाल की भाषा की शब्दावली है . ‘Casta’ का मतलब वंश या वंशावली होता है . जिसकी व्युत्पति लैटिन भाषा की शब्दावली Castus से हुई है . स्पेनिश लोगों ने सर्व प्रथम इस शब्द का प्रयोग किया था. किन्तु भारत में इसका व्यवहार पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में पुर्तगालियों द्वारा हुआ था.. वे जब भारत आये थे तो यहाँ के हिन्दुओं को देखा कि ये विभिन्न श्रेणियों में वंश एवं वृति के आधार पर बंटे हुए हैं तो उन्होंने इस शब्द का प्रचलन किया था.
साभार ; आखिर कौन था -हेमू ? (उसकी जाति क्या थी ?
शोध कर्ता : सुबोध गुप्ता





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