बाल विवाह का असर : बिहार में 10 वर्षों में 40% बच्चे बौनेपन का हुए शिकार
पटना. बाल विवाह जिंदगी को नर्क बना देता है। कम उम्र में शादी का खामियाजा न सिर्फ वर-वधू को भुगतना पड़ता है बल्कि समाज पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है। कम उम्र में गर्भ धारण करने की वजह से अस्वस्थ एवं अविकसित शिशु का जन्म होता है। आगे चलकर ऐसे बच्चे बौनेपन और मंदबुद्धि के शिकार हो जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के एक प्रतिवेदन के अनुसार बिहार में 2006 से 2016 के बीच पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 40 प्रतिशत बच्चे बौनेपन के शिकार हैैं। बीमारियों के साथ-साथ पारिवारिक कलह को भी आमंत्रित करता है बाल विवाह। बाल विवाह निषेध को ले राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए अभियान ने लोगों को जागरूक किया है। महिलाओं में इस अभियान के प्रति उत्साह अधिक है। 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की शादी वैधानिक रूप से बाल विवाह है। शादी के समय लड़का या लडकी जो भी इस तय उम्र की सीमा से कम है तो उस शादी को बाल विवाह माना जाएगा।
सजा का है स्पष्ट प्रावधान
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत यदि 18 साल से अधिक उम्र का पुरुष किसी 18 साल से कम उम्र की बच्ची से शादी करता है तो उसे बाल विवाह का दोषी समझा जाएगा और सजा होगी। बाल विवाह को प्रोत्साहित करने वाले बिचौलिए, लड़की या लड़के के माता-पिता, अभिभावक, सगे-संबंधी, बाल विवाह संपन्न कराने वाले पुरोहित, बैंड बाजा, हलवाई, टेंट वाले, विवाह भवन के मालिक और बाल विवाह में भाग लेने वाले बराती-सराती तथा गांव व समुदाय के लोगों को बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत सजा होगी। सभी स्थितियों में दो वर्ष का सश्रम कारावास और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
यह है हाल
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 (2005-06) की तुलना में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (2015-16) के आंकड़े के अनुसार बिहार में बाल विवाह के आंकड़े में लगभग 30 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 20 से 24 वर्ष की महिलाओं का पूरे देश में सर्वेक्षण हुआ। इस आयु वर्ग में बिहार में 39.1 फीसद महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हो गया था। पश्चिम बंगाल के बाद बिहार का स्थान इस मामले में दूसरे नंबर पर था। यह आंकड़ा कहता है कि सूबे में दस में से लगभग पांच लड़कियों की शादी बाल विवाह है। बाल विवाह का दुष्परिणाम यह हुआ कि 15 से 19 वर्ष की 12.2 फीसद किशोरियां मां बन गईं। प्रसव के दौरान 15 से कम उम्र की बालिकाओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र की महिलाओं की अपेक्षा पांच गुना अधिक होती है। बाल विवाह का दुष्परिणाम केवल बालिकाओं तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसकी अगली पीढ़ी को भी इसका नुकसान झेलना पड़ता है।
जागरूकता से समाधान संभव
बाल विवाह जैसी कुरीति का समाधान जागरूकता से संभव है। यदि हमें जानकारी मिले कि निकट भविष्य में कोई बाल विवाह होने वाला है तो ऐसी स्थिति में संबंधित अभिभावकों, रिश्तेदारों, पंचायत बाल संरक्षण समिति व पुरोहितों से बात कर बाल विवाह को रोकने की कोशिश की जानी चाहिए। लगातार पूरी स्थिति पर निगरानी रखना चाहिए। पुलिस में शिकायत दर्ज कराकर दोषियों को सजा दिलानी चाहिए।
जागरण से साभार
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