बिहार में सरकारी बंदूक के कारखाने शटरडाउन के कगार पर, बढ़ रहा हथियारों का अवैध बिजनेस
मुंगेर.मुंगेर के सरकारी बंदूक कारखाने अब बंदी के कगार पर हैं। यहां के 36 यूनिट कारखाने में सात बंद हो चुके हैं। जबकि अन्य पांच यूनिट बंद होने की कगार पर हैं। इसकी वजह है कि हाई टेक्नोलॉजी के दौर में बंदूक की डिमांड कम हो गई है और लोग राइफल व पिस्टल ही ज्यादा खरीदना पसंद करते हैं। चूंकि यहां एकनाली और दोनाली बंदूक ही तैयार होते हैं। ऊपर से लाइसेंस लेने की प्रक्रिया टेढ़ी होने के कारण लोगों को पैरवी-पैगाम के बाद ही सफलता मिलती है। इसके पीछे दूसरी वजह है कि कम मजदूरी होने के कारण कारीगर सरकारी कारखाने में काम नहीं करना चाहते। सरकारी कारखाने में काम करने वाले मजदूर एक बंदूक को तैयार करने में जितना वक्त लगाते हैं, इसके बदले इन्हें मजदूरी के रूप में दो हजार रुपए ही मिल पाते हैं। जबकि बाहर में अवैध तरीके से देसी कट्टा बना कर मजदूर एक घंटे में चार से पांच सौ रुपए कमा लेते हैं। महीने में दस से बीस हजार की कमाई अवैध तरीके से हो जाती है।
अवैध गन फैक्ट्रियों की है भरमार
एक तरफ सरकारी कारखाने बंद होने को है। वहीं अवैध कारखाने फलफूल रहे हैं। अवैध निर्माण की फैक्ट्री का बाजार सजा है। समय-समय पर छापेमारी में अवैध फैक्ट्री का भंडाफोड़ होता है, पर इनमें कमी नहीं हो रही है। इससे साफ जाहिर होता है कि जितनी बरामदगी होती है, उससे कई गुणा अधिक इसका कारोबार यहां होता है। अवैध कारखाने में मजदूरों की संख्या भी बेहद अच्छी है। क्योंकि उन्हें अच्छी खासी मजदूरी मिल जाती है।
सरकारी कारखाने में बंदूक बनाने का टारगेट होता है तय
यहां के अलग-अलग यूनिट को साल भर में कितने बंदूक का निर्माण करना है, इसका कोटा सरकार से मिलता है। इसी आधार पर ये लोग बंदूक तैयार कराते हैं। बंदूक निर्माण यूनिट के एक संचालक ने बताया कि हमारे पास महज 216 बंदूक साल में बनाने की अनुमति है।
पहले थे एक हजार मजदूर अब रह गए 220
सरकारी बंदूक कारखाने में पहले एक हजार मजदूर काम करते थे। अब 220 ही रह गए हैं। जो मजदूर यहां काम कर रहे हैं वो भी दूसरे पेशे की तलाश में रहते हैं। कुछ मजदूरों ने बताया कि लंबे समय से किसी के वेतन में वृद्धि नहीं हुई है। वे मांगों को लेकर हड़ताल भी कर चुके हैं।
पेट नहीं भरेगा तो काम का क्या फायदा
बंदूक कारखाना श्रमिक यूनियन के अध्यक्ष गणेश साह ने बताया कि न्यूनतम वेतनमान की मांग को लेकर हमलोग हड़ताल पर बैठे हैं। जब काम करने से पेट ही नहीं भरेगा तो काम करने से क्या लाभ है। इस वजह से हमलोग हड़ताल पर हैं।
लागत के अनुरूप नहीं हो रहा काम
फाईजर एंड कंपनी के ऑनर सौरभ निधि ने बताया कि लागत के अनुरूप काम भी नहीं हो रहा है। इस वजह से मजदूरों की मांग भी कम हो गई है। दूसरी बात परंपरागत पेशे में अब लोग आना भी नहीं चाहते हैं।
हर काम के लिए 40-50 रुपए मजदूरी
बंदूक कारखाना के निर्माण इकाई में कार्यरत प्रकाश शर्मा ने कहा कि 40 रुपए एक बंदूक में हामड़, वेल्डिंग, पॉलिश, भांति व अन्य कार्यों के लिए मिलते हैं। हर एक विभाग के एक्सपर्ट हैं, पर उनके पास दूसरा कोई काम नहीं है और वे दूसरा काम करने लायक भी नहीं हैं। इस वजह से बचपन से इसी काम की आदत पड़ गई है।
सौ नेत्रहीन भी लगे हैं बंदूक बनाने में
सरकारी बंदूक कारखाने में सौ नेत्रहीन कारीगर भी काम कर रहे हैं। जिनकी पूरी उम्र इस पेशे में गुजर गई है और अब वह उम्र के इस पड़ाव पर कोई और काम भी नहीं कर सकते। साथ ही वह अपनी नई पीढ़ी को इस पेशे में नहीं आने देना चाहते हैं। with thanks from bhaskar.com
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