जिस दिन बृजबिहारी प्रसाद की हत्या हुई थी, उस दिन दलितों-पिछड़ों के घर चूल्हा नहीं जला था

अरुण कुमार
आज (13 जून,) बृजबिहारी प्रसाद को शहीद हुए 20 वर्ष हो गए हैं। याद आता है उन्‍नीस वर्ष पहले का वो दिन जब मेरे गांव में यह खबर सन्नाटे की तरह फैल गई थी कि बृज बिहारी प्रसाद की पटना में हत्या कर दी गई है। वे इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे। बिहार और यूपी के गुंडों ने संयुक्त मोर्चा बनाकर उनकी हत्या कर दी। जिस दिन बृजबिहारी प्रसाद की हत्या हुई थी, उस दिन क्षेत्र में शायद ही किसी दलित पिछड़ा के घर मे चूल्हा जला था। बिहार की छोटी व्यापारी जातियों जिसे बृजबिहारी प्रसाद ने वैश्य समाज के तहत संगठित किया था, ने तो अपना रखवाला खो दिया था। बृजबिहारी प्रसाद लालू प्रसाद के काफी करीबी थे। ये दोनों एक दूसरे की ताकत भी थे। पूरे उत्तर बिहार में जनता दल और विशेष रुप से लालू प्रसाद को ताकतवर बनाने में बृज बिहारी प्रसाद ने काफी मेहनत की थी। वह दौर राजनीति में बाहुबल के बोलबाला का दौर था और बाहुबल सवर्ण जातियों के पास था। रघुनाथ पाण्डेय, छोटन शुक्ला, अशोक सम्राट जैसे बाहुबलियों के सामने पिछडे वर्ग के लोग चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
बृजबिहारी प्रसाद पिछड़ों की हिम्मत बने और मुजफ्फरपुर विधानसभा से रघुनाथ पाण्डेय के खिलाफ बिजेन्द्र चौधरी को चुनाव लड़वाया और जितवाया। चुनाव प्रचार के दौरान रघुनाथ पाण्डेय खुलेआम धमकी देते कि मैं बिजेन्द्र के बाप से वोट ले लूंगा। लेकिन प्रसाद ने एक भी वोट पाण्डेय को जबर्दस्ती नहीं लेने दिया। इसी तरह लालगंज से मुन्ना शुक्ला को केदार गुप्ता से हरवाया। उस समय पूरे इलाके में लगभग सभी दबंगों को पिछड़ी जाति के युवा उम्मीदवारों ने हरा दिया था। बसावन भगत, महेश्वर यादव, रामविचार राय जीतकर आए और खुद वे आदापुर से विधायक बने। बृजबिहारी प्रसाद लालू प्रसाद की सरकार में मंत्री बने। वे लगातार कई विभागों के मंत्री रहे और उर्जा मंत्री रहने के दौरान उनके द्वारा किए गए कामों को आज भी मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों की जनता याद करती है। मुजफ्फरपुर इंजिनियरिंग कॉलेज में सामाजिक विविधता लाने का पूरा श्रेय बृज बिहारी प्रसाद को ही है।
मोतिहारी लोकसभा चुनाव में बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी श्रीमती रमा देवी ने जब भाजपा के बड़े नेता राधामोहन सिंह को हराया, तब उनका राजनीतिक कद अप्रत्याशित रुप से बढ़ गया। वामपंथ और भाजपा का गढ़ रहे चम्पारण क्षेत्र में जनता दल की यह पहली बड़ी जीत थी। उसके जब तक बृजबिहारी जीवित रहे जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल मजबूत स्थिति में रही। उनकी हत्या के बाद से आजतक राजद इन इलाकों में मजबूत नहीं हो पाया। बृजबिहारी प्रसाद की बढ़ती लोकप्रियता से घबड़ाकर बिहार और यूपी के गुंडों ने उनकी हत्या कर दी। पिछड़ों ने अपना नायक खो दिया, सामाजिक न्याय की शक्ति क्षीण होने लगी और वैश्य एकता की गठरी खुल गई। आज बिहार में कृतज्ञ समाज के लोग उन्हें याद तो कर रहे हैं, पर उनके आदर्शों से दूर जा रहे हैं।






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