क्या लालू को झटका देकर एनडीए में वापसी की तैयारी में हैं सुशासन बाबू!

मीडिया में इन दिनों बार-बार यह खबर आ रही है कि नीतीश कुमार लालू यादव को झटका देकर एनडीए का दामन थाम लेंगे, लेकिन ऐसा कुछ होगा, इसको कुछ ढोस तर्क कहीं नहीं दिखता है. यह समान्य सी बात है कि जब नीतीश एनडीए में जाएंगे तो उनका कद कितना बड़ा रहेगा. अभी वे पीएम मोदी के बराबरी के कद को टक्कर दे रहे हैं, लेकिन भाजपा में जाकर उनके अधिनस्त हो जाएंगे. नीतीश कुमार सीएम के अलावा केंद्रीय (मंत्री रेल व कृषि) रह चुके हैं. वे आगामी चुनाव में पीएम पद के लिए यूपीए की ओर से दावेदारों में शामिल होंगे. बिहार भाजपा तो ऐसी ही फर्जी खबरों के सहारे नीतीश को अपनी ओर आने की टकटकी लगाए हुए हैं…जानिए जो मीडिया में बिना किसी आधार के हवा हवाई खबर चल रही है, वह है क्या?

नई दिल्ली. राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने बिहार में चुनाव के वक्त बने लालू-नीतीश और कांग्रेस के महागठबंधन में सेंध लगा दी है. नीतीश कुमार की जेडीयू सांसदों-विधायकों से बातचीत के बाद पार्टी ने साफ कर दिया है कि वो कल तक बिहार के गवर्नर रहे रामनाथ कोविंद को ही राष्ट्रपति चुनावों में समर्थन देगी. खास बात ये है कि जेडीयू ने इस ऐलान से पहले 22 जून यानी कल होने वाली कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की बैठक तक का इंतजार नहीं किया. नीतीश के इस रुख से सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिहार में महागठबंधन अंतिम सांसें ले रहा है और नीतीश की एनडीए में घर वापसी हो सकती है? बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सुशील मोदी लगातार लालू यादव और उनके परिवार को करप्शन के आरोपों में घेरते जा रहे हैं. शुरूआत मिट्टी घोटाले से की गई जिसमें लालू के परिवार पर सवाल उठे. उसके बाद मीसा भारती की दिल्ली में बेनामी संपत्ति को निशाना बनाया गया और अब आयकर विभाग भी लालू और उनके परिवार के पीछे पड़ गया है. खास बात ये है कि सुशील मोदी जहां लालू यादव पर हमलावर हैं वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू इससे बची हुई है. यहां तक कि सुशील मोदी ने कुछ दिन पहले साफ-साफ कहा था कि अगर नीतीश लालू यादव से अलग होती है तो बीजेपी उन्हें समर्थन देने पर विचार कर सकती है.
नीतीश ने पीएम पद को लेकर दिया बड़ा बयान
नीतीश कुमार ने पहले ही प्रधानमंत्री पद की अपनी महत्वाकांक्षाओं को लेकर लगाई जा रही अटकलों को एकदम खारिज कर चुके हैं. उन्होंने साफ कह दिया है कि वो मूर्ख नहीं हैं और उनकी पीएम कैंडिडेट बनने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है. नीतीश के इस बयान को एक तरह से एनडीए में उनकी एंट्री की तैयारी के रूप में देखा जा रहा था क्योंकि विपक्ष और मीडिया का एक तबका अक्सर 2019 के आम चुनावों में मोदी के सामने नीतीश के खड़े होने की भविष्यवाणी करता रहा है.
क्या कहते हैं बिहार के समीकरण
243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 विधायकों की संख्या चाहिए. इस समय जेडीयू के 71, आरजेडी के 80 जबकि कांग्रेस के 27 विधायकों वाली महागठबंधन सरकार चल रही है. यदि नीतीश आरजेडी से नाता तोड़कर एनडीए में जाते हैं तो कांग्रेस के 27 विधायक भी सरकार से हट जाएंगे. ऐसे में नीतीश को सरकार बचाने के लिए 51 और विधायकों की जरूरत होगी. विधानसभा में बीजेपी के 53 विधायक हैं. इसके अलावा एलजेपी के 2, आरएलएसपी के 2, एचएएम के 1,सीपीआई एमएल लिब्रेशन के तीन और स्वतंत्र 4 विधायक हैं. यानी जेडीयू और बीजेपी मिलकर सरकार बना सकते हैं क्योंकि दोनों पार्टियों के विधायकों का आंकड़ा कुल मिलाकर 124 बैठता है.
नीतीश को नहीं है बीजेपी से कोई एलर्जी
नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं. वे वाजपेयी सरकार के दौरान रेलमंत्री भी थे. यानी नीतीश को विचारधारा के स्तर पर बीजेपी से कोई परेशानी नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी से उनकी व्यक्तिगत अदावत के चलते बीजेपी से उनका गठबंधन टूटा और विधानसभा चुनाव में उन्हें महागठबंधन करना पड़ा लेकिन लालू के साथ नीतीश कभी उतने सहज नहीं रहे. दूसरी ओर नरेंद्र मोदी से उनके रिश्ते पिछले दो साल में काफी सुधरे हैं. ऐसे में एक बार फिर बिहार में नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बने तो इसमें चौंकने वाली बात नहीं होगी.






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