हर तरफ छाया ‘चंपारण मीट हाउस’ का देसी ब्रांड

रोचक खबर : हर तरफ छाया ‘चंपारण मीट हाउस’ का देसी ब्रांड
पुष्यमित्र @ पटना
‘चंपारण मीट हाउस’ आज की तारीख में मटन पसंद करने वालों के लिए राजधानी पटना में स्वाद का सबसे पॉपुलर ठिकाना बन गया है. यह किसी एक दुकान का नाम नहीं है, पूरे शहर में इस नाम से दर्जनों रेस्तरां और गुमटियां खुली हुई हैं और हर दुकान के आगे मिट्टी के घड़े में अहुना मीट पकता हुआ नजर आता है. यह कोई फूड चेन भी नहीं है, हर दुकान का मालिक अलग-अलग है. हर दुकान के साइन बोर्ड पर चंपारण मीट हाउस के साथ-साथ बहुत छोटे अक्षर में एक अलग नाम लिखा नजर आता है, कहीं जनशक्ति तो कहीं राजेश, कहीं राजधानी तो कहीं मीट महल कर दिया है. दिलचस्प बात यह है कि चंपारण के ब्रांड नेम से मटन बेचने का सिलसिला राजधानी पटना में महज दो साल पहले शुरू हुआ है और आज यह एक क्रेज में बदल गया है.
नेपाल से आयी इस डिश ने पहले मोतिहारी, फिर पटना को बनाया दीवाना
 तारामंडल और इनकम टैक्स चौराहा के इर्द-गिर्द ही चंपारण मीट हाउस के नाम से चार दुकानें हैं. इनमें विद्यापति भवन की तरफ जानेवाली सड़क पर चल रहा ओल्ड चंपारण मीट हाउस खुद को सबसे पुराना चंपारण मीट हाउस कहता है. रोचक तथ्य यह है कि जो दुकान सबसे पुरानी है, उसकी शुरुआत भी महज दो साल, दो महीने पहले हुई है.
दुकान के ओनर गोपाल कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने यह दुकान खोली थी, तो यह उम्मीद नहीं थी कि पटना में उनके ही जैसे नाम वाली 30-35 दुकानें खुल जायेंगी. मगर स्थिति यह हो गयी कि हमें घोषणा करनी पड़ी कि हमारी कोई ब्रांच नहीं है, हमारे पास सेल्स टैक्स वालों का नोटिस आ गया था कि आपकी शहर में इतनी दुकानें चलती हैं.
वे बताते हैं कि जब उनकी दुकान नहीं थी, तो लोग जब चंपारण से होकर गुजरते थे तो वहां के मटन का टेस्ट लेते थे. वह टेस्ट इतना पॉपुलर था कि उन्होंने वहां से कारीगर बुलवा कर उसी टेस्ट का अहुना मटन यहां तैयार करवाना शुरू कर दिया. रेस्तरां के चीफ शेफ धनी लाल बताते हैं कि सारा जादू इसे पकाने की विधि में है.
फेसबुक पेज व होम डिलिवरी भी
बोरिंग कनाल रोड में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास बावर्ची-चंपारण मीट महल के नाम से रेस्त्रां चलाने वाले सोनू वर्मा बताते हैं कि चूंकि मेरा घर मोतिहारी शहर में ही है इसलिए मुझे अहुना के टेस्ट और डिमांड का पता था. यही सोचकर मैंने खास तौर से मोतिहारी के कारीगरों को लाकर इस रेस्त्रां की शुरुआत की. मैंने अहुना के साथ-साथ वहां की खास डिशेज मसलन ताश, इस्टू, सींक और मटन गोड़ी को भी अपने मेनू में शामिल किया है. चूंकि कारीगर चंपारण के ही हैं इसलिए इन सबके टेस्ट में आपको असल चंपारण का अहसास होगा. इसके साथ ही हमने ग्राहकों के लिए बावर्ची-चंपारण मीट महल के नाम से शॉप का फेसबुक पेज और होम डिलिवरी की सुविधा का भी ख्याल रखा है.
नेपाल से आयी है यह रेसिपी
दिलचस्प बात यह है कि ये चंपारण ब्रांड मटन रेसिपी चंपारण की पारंपरिक रेसिपी नहीं है. मोतिहारी शहर में भी यह पिछले छह-सात साल से ही बिक रही है. पहले जायसवाल होटल वालों ने इस रेसिपी की शुरुआत की, फिर धीरे-धीरे शहर के गलियों और चौराहों पर अहुना मटन की कई दुकानें खुल गयीं. कई जगह तो इसे ठेले पर भी बेचा जाने लगा. जायसवाल होटल के ओनर सुनील जायसवाल कहते हैं कि यह मूलतः नेपाल की रेसिपी है और नेपाल से पहले पूर्वी चंपारण के सीमावर्ती इलाके घोड़ाहसन में इसे बनाया जाना शुरू किया गया.
वहां से हम इसे लेकर मोतिहारी शहर आये. फिर यहां से यह पटना चला गया. हालांकि इस रेसिपी में घोड़ाहसन के कारीगरों ने बड़ा बदलाव किया. वे हांडी को पैक करके इसे पकाने लगे, जिसने इसके स्वाद में चार-चांद लगा दिया. इसी वजह से जहां भी चंपारण मीट हाउस खुलता है, घोड़ाहसन के कारीगरों को ही बुलाया जाता है.
ऐसे पकाया जाता है अहुना मटन
इसे बनाने के लिए शेफ शुरुआत में ही मटन, तेल और मसाले को मिट्टी के घड़े में डाल देते हैं और उसे ढक्कन से ढक कर आंटे की लोइ से पैक कर देते हैं. फिर उसे 45-50 मिनट के लिए कोयले के अंगारे पर रख देते हैं. मटन धीमी आंच पर पकता रहता है. धनी लाल कहते हैं कि इस बीच में वे सिर्फ इतना करते हैं कि घड़े को अंगारे से उठाकर हिला देते हैं. बांकी सारा काम कोयले की आंच और मिट्टी की बरतन के संयोग से खुद-ब-खुद होता है.
एक हांडी में अमूमन एक से डेढ़ किलो मटन पकता है, और कई दफा ग्राहक पूरे हांडी ही खरीद लेते हैं. पैक की हुई.यह वजह है कि शहर के तकरीबन सभी चंपारण मीट हाउस पर अहुना मटन दुकान के सामने खुले में पकाया जाता है, जिसे देख कर लोग आकर्षित होते हैं. अहुना मटन के अलावा ताश और मटन स्टू भी इन रेस्तराओं में पकता है, ये भी चंपारण ब्रांड मटन ही हैं. ग्राहकों के बीच इन दोनों रेसिपी की भी खूब मांग रहती है.
मोतिहारी के जायसवाल होटल में टन के हिसाब से पकता था मटन
इन्हीं घोड़ाहसन के कारीगरों की बदौलत एक मोतिहारी के जायसवाल होटल का अहुना मटन एक समय इतना फेमस हुआ कि यहां टन के हिसाब से रोज मटन की खपत होती थी. मगर शराबबंदी के बाद इनकी खपट घटने लगी. सुनील जायसवाल कहते हैं, इसी वजह से शहर के अहुना मटन के दूसरे दुकान भी बंद होने लगे.  हालांकि राजधानी पटना के चंपारण मीट हाउस पर शराबबंदी का बहुत असर नहीं दिखता. ओल्ड चंपारण मीट हाउस के ओनर गोपाल जी कहते हैं कि आज भी उनकी दुकान पर रोजाना तीन से चार सौ ग्राहक पहुंचते हैं और कई बार ग्राहकों को बाहर खड़ा रहना पड़ता है. उनकी शॉप में चंपारण के आठ कारीगर काम करते हैं और 800 रुपये किलो के रेट के बावजूद लोग खरीदने के लिए तैयार रहते हैं.
प्रभात खबर से साभार





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