एक मामूली संत ने छेड़ा ऐसा अभियान, 500 लोगों ने छोड़ दिया दारू
अमन कुमार सिंह. छपरा।
कुछ लोग जन्मजात ही संस्कार व कुछ कर दिखाने की जज्बा लेकर जन्म लेते हैं। उनके रग-रग में मानव की सेवा भावना वास करती है। उसी में जीना है उसी में मरना है। इन्हीं उदाहरणों में से एक हैं छपरा के संत रविन्द्र दास जी। गृहस्थ घर में जन्म लिए रविंद्र दुनिया के कई दरवाजों पर ठोकरे खाने के बाद संत कबीर दास के अनुयाई बन गए। उसके बाद उन्होंने समाज एवं नैतिकता के विकास के रास्ते का सबसे बड़ा बाधक बना नशा, दारू व मांस सेवन के खिलाफ अकेले मुहिम छेड़ दी। वर्ष 2000 में संत रविंद्र दास ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की धरती से नशा विमुक्त समाज बनाने की मुहिम छेड़ी। 14 वर्षों में उन्होंने सारण जिले के गांव-गांव, घर-घर जाकर नशा छोड़ो जागृति अभियान चलाई। बाद में सत्यनाम सेवा सदन नशा विमुक्ति केंद्र स्थापित कर नशा व मांस सेवन करने वाले लोगों को चिह्नित कर होम्योपैथ व आयुर्वेद के महत्वपूर्ण दवाओं के जरिए इलाज कर अभी तक करीब 500 लोगों को शराब व मांस सेवन से मुक्ति दिलाई। आज वे सभी कबीर पंथ के समर्थक व अनुयाई हैं।
30 गांवों में चला रहे नशा जागृति अभियान
गड़खा प्रखंड के मीरपुर जुअरा गांव निवासी स्व. रामायण सिंह के पुत्र रविंद्र सिंह अब संत रविंद्र दास 1990 से कपड़ा व्यवसाय करते थे। उसी दौरान वैशाली जिले के शकरपुर महुआ कबीर आश्रम में जाना हुआ। वहां उन्होंने कबीर पंथ को अपनाया। उसके बाद कबीर जी से प्रेरणा लेकर व आदर्श मानकर गांव-गांव में घूम-घूमकर नशा जागृति अभियान चलाई। दारू व मांस का सेवन करने वाले लोगों को होम्योपैथ व आयुर्वेदिक दवा के जरिए इलाज की। इसकी शुरुआत उन्होंने जयप्रकाश नारायण के गांव सिताब दियारा आलेख टोला, से की। वहां करीब 45 लोगों को नशा से मुक्ति दिलाने के बाद सटे गांव दलजीत टोला, बाबू टोला, गरीबा टोला, बैजू टोला, शोभा छपरा, लक्ष्मण छपरा में करीब साढ़े चार वर्षों तक मुहिम चलाई। इन गावों में दो सौ लोगों को नशा व मांस का सेवन छुड़वाया। आज उस घर के लोग दारू तो दूर मांस भी सेवन नहीं करते हैं। किताब दिया रा निवासी झा मा सिंह व शिवनाथ व्यास का कहना है कि, मेरा घर बर्बाद होने से बच गया। अन्यथा कब के बर्बाद हो गया होता। इस तरह वहां से सफल प्रयोग होने के बाद उन्होंने महज पांच सहयोगियों के साथ नशा विमुक्ति अभियान शुरू किया।
कैसे चलाते हैं अभियान
संत जी हर रविवार को विभिन्न गांवों में साइकिल से जाकर नशा करने वालों को चिह्नित करते हैं। उसके बाद उसके परिजन से मिलकर नि:शुल्क होम्योपैथ के दवा बेलाडोना, नेट्रो न्युर, फेरास फॉस व अन्य आयुर्वेदिक दवाओं के जरिए दारू या खाना में खाने को दे देते हैं। साथ की कार्यशाला लगाते हैं। नशा जागृति समारोह नाटक भी करते हैं। एक से डेढ़ माह में नशेड़ी व्यक्ति को घृणा होने लगता है। नशा करने वाले व्यक्तियों की सूची तैयार की जाती है।
बिना सरकारी मदद से चला रहे अभियान
संत जी नशा मुक्ति अभियान बिना सरकारी राशि के सहयोग के ही चलाते हैं। इसके लिए पैसे वे दूसरे बीमारी के इलाज करने से इकट्ठे करते हैं। निजी प्रैक्टिस कर इकट्ठा पैसा से नशा मुक्ति अभियान चलाते हैं। साथ ही खेती गृहस्थी से भी मदद मिलती है। from dainikbhaskar.com
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