बांझ हो गया नीतीश का संकल्प
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का संकल्प बांझ (विरान) हो गया है। मुख्यमंत्री का सरकारी आवास एक अण्णे मार्ग पूरा ही विरान हो गया है। वहां मकान व चहारदिवारी ही बच गई है। पेड़-पौधे ही रह गए हैं। सीएम हाउस के नाम पर तैनात पूरी फौज सिर्फ मकान, चहारदिवारी व पौधों की ही रखवाली कर रही है। सीएम हाउस में न सीएम रहते हैं और न सीएम का कारवां।
वीरेंद्र यादव
नीतीश कुमार का पसंदीदा था संकल्प। वह भी विरान हो गया है। कभी सत्ता का असली केंद्र संकल्प ही था और बड़ी-बड़ी हस्तियों के साथ संकल्प में ही विकास के संकल्प गढ़े और पढ़े जाते थे। अब विमर्श भी निरर्थक हो गया है। उसमें भी सिर्फ कैंटिन और ईमेल भेजने का सिस्टम बच गया है।
संवाद की ताकत
संकल्प और विमर्श सीएम हाउस के दो अलग-अलग भवन हैं। नाम से ही उनकी उपयोगिता झलकती है। लेकिन अब दोनों सत्ता की आंखों से ओझल हो गए हैं। नीतीश कुमार को अब न संकल्प की जरूरत है और न विमर्श की। सब कुछ कैम्प कार्यालय में चला गया है। सीएम का पूरा कारवां और काफिला कैम्प कार्यालय में कैद हो गया है। सरकारी स्तर पर बड़ा कार्यक्रम या बैठक करनी है तो सीएम सचिवालय का ह्यसंवादह्ण है। यह अलग बात है कि संकल्प और विमर्श के निरर्थक होने के बाद संवाद की ताकत बढ़ÞÞ गई है। कैबिनेट की बैठक भी उसमें होने लगी है।
समय ने निरर्थक बना दिया
समय ने संकल्प, विमर्श और संवाद की नई भूमिका तय कर दी है। कुछ को निरर्थक बना दिया है तो कुछ की ताकत बढ़ÞÞा दी है। अब देखना है कि सत्ता के अंक गणित की नई चाल किस दिशा में दिखती है। इसका इंतजार करना होगा।
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