जेल के अंदर गुलजार जिंदगी

siwan-jail-bihar-kathaबिहार में जेलें हमेशा से अजीबोगरीब हरकतों के लिए बदनाम रही हैं लेकिन इधर कुछ समय से हालात बदतर हुए हैं. कई आदतन अपराधी अब वारदात करने के बाद अदालतों में समर्पण करने पहुंच जाते हैं. इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि उन्हें इधर-उधर भटकने की बजाए जेलें ज्यादा सुरक्षित लगती हैं. और हो भी क्यों न? जेलें सुरक्षित पनाहगाह तो हैं ही, समर्पण करने से उनकी संपत्ति की कुर्की भी नहीं होती और बाद में जमानत पाने में भी आसानी होती है.

अमिताभ श्रीवास्तव
यह वाकया जून, 2015 का है. शिवहर डिविजनल जेल में एक ज्वाइंट रजिस्टर एंट्रीह्व की इजाजत दी गई. इसके जरिए विचाराधीन कैदियों को पैसे जमा करने के लिए जेलर के दक्रतर में जाने की मंजूरी दी गई. यह मामला विचाराधीन कैदी दंपती पूजा और उसके सरगना पति मुकेश पाठक का है. जेल के रिकॉर्ड के मुताबिक, इन लोगों ने करीब 15,000 रु. दफ्तर में जमा करवा दिए. पर ए दोनों वहां सिर्फ पैसा जमा करने भर के लिए नहीं गए थे. उनका इरादा तो कुछ और ही था. जहां सभी अधिकारियों ने अपनी आंखें बंद रखीं, इन दोनों ने सहायक जेलर के दफ्तर को ह्लअंतरंग संबंधह्व का ठिकाना भी बनाया.
इस इंतजाम के बारे में शिवहर जेल के कुछ चुनिंदा आला अफसरों को ही पता था. लेकिन इसकी असलियत सितंबर में उस वक्त खुल गई जब एक नियमित मेडिकल जांच के दौरान पता चला कि पूजा गर्भवती हो गई है. शिवहर जेल के अधिकारियों ने इस बात को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो सके. पिछले साल कैद से भागने के दुस्साहसिक कारनामे के बाद से छुट्टा घूम रहे मुकेश पाठक का नाम जब दरभंगा में 26 दिसंबर को हुई दो इंजीनियरों की हत्या के सिलसिले में उछला तो पुलिस ने गहरी पड़ताल शुरू की. जल्द ही जेल में उसके कारनामों के राज एक-एक करके खुलने लगे.
सहूलियतों के सिपाही
बिहार में जेलें हमेशा से अजीबोगरीब हरकतों के लिए बदनाम रही हैं लेकिन इधर कुछ समय से हालात बदतर हुए हैं. कई आदतन अपराधी अब वारदात करने के बाद अदालतों में समर्पण करने पहुंच जाते हैं. इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि उन्हें इधर-उधर भटकने की बजाए जेलें ज्यादा सुरक्षित लगती हैं. और हो भी क्यों न? जेलें सुरक्षित पनाहगाह तो हैं ही, समर्पण करने से उनकी संपत्ति की कुर्की भी नहीं होती और बाद में जमानत पाने में भी आसानी होती है.
सितंबर, 2014 की सीतामढ़ी जिले के डीएम और एसपी की साझा रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ चुनिंदा कैदियों को एसी, कूलर और मोबाइल जैसी सुविधाएं मुहैया कराई गईं. इसके मुताबिक तो कुछ ह्लखासह्व कैदियों को गांजा और शराब भी मुहैया कराई गई. यह सब इस दौर में चल रहा है जब बड़ी संख्या में सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं, जेलों में भीड़ कम हो गई है और मीडिया पहले से अधिक सक्रिय है. कोई उपाय कारगर नहीं रहा. इस रिपोर्ट से कुछ भौंहें जरूर तनीं मगर इसे जल्द ही दफना दिया गया.
मुकेश पाठक का ही मामला देखिए. उसने अदालत से मंजूरी हासिल करने के बाद पूजा से अक्तूबर 2013 में शिवहर जेल में शादी की थी. तब जेलर आर.एन. शफी ने दुल्हन के पिता की भूमिका अदा की थी और कन्यादान भी किया था. पिछले साल जेलर के दफ्तर की घटना के बाद पाठक ने बीमारी की शिकायत की और उसे फौरन शिवहर के सरकारी अस्पताल में भेज दिया गया, जहां से वह 20 जुलाई को सुरक्षा गार्डों को नशे की दवा पिलाकर भाग गया.
विडंबना देखिए कि उसके बाद हुई जांच में न अस्पताल में भर्ती करने की सिफारिश करने वाले डॉक्टर से पूछताछ हुई, न ही उससे जिसने हफ्ते भर उसका इलाज किया. (आप डॉक्टर को भी दोष नहीं दे सकते. 2011 में गोपालगंज जिला जेल में जेल डॉक्टर बुद्धदेव सिंह ने जाली मेडिकल सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया तो उनकी पीटकर हत्या कर दी गई. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में बिहार में जेल के कैदियों के चिकित्सीय वजहों से अस्पताल के 7,051 दौरे हुए.)
सितंबर 2015 में पूजा के गर्भवती होने की बात खुले चार महीने से ज्यादा बीत गए हैं और आंतरिक जांच किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है कि इसके लिए दोषी कौन है. आइजी (जेल) प्रेम सिंह मीणा कहते हैं कि जांच से तीन तारीखों का पता चला है जब दंपती अकेले में मिले हो सकते हैं (जो गर्भ का कारण हो सकता है). इनमें एक दिन वे जेलर के दफ्तर में थे. जेल के सहायक जेलर, हेड वार्डन और वार्डन को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. उनका जवाब आने के बाद हम कार्रवाई करेंगे.
मुकेश पाठक संतोष झा गैंग का एक मुख्य शूटर है जिसका काम उगाही करना है. पाठक का मामला कोई अपवाद नहीं है. बिहार की जेलें अपराधियों का नया ठिकाना बन गई हैं. एक वजह तो सजा सुनाए जाने की दर का बेहद कम होना है. जेल के कैदियों के आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में महज 14.2 प्रतिशत सजायाफ्ता कैदी हैं जबकि 85.6 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं. इस मामले में राष्ट्रीय औसत 31.4 प्रतिशत सजायाक्रता के मुकाबले 67.6 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों का है.
इससे एक दूसरी सचाई भी खुलती है. गिरफ्तारियां बढ़ÞÞ गई हैं और पुलिसिया मामलों की संख्या भी. लेकिन देश भर में सजा सुनाए जाने की दर सबसे कम होने का मतलब यह है कि बड़े अपराधों के लिए कोई डर नहीं रह गया है. (दरअसल इन दिनों अपराधी पुलिस से भिडऩे के बदले जेल को पसंद करते हैं. 2001 में पुलिस मुठभेड़ में गोली लगने से मौत का आंकड़ा 41 था. 2015 में यह महज दो पर आ गया.)
इससे एक दुष्चक्र तैयार हो गया है. पुलिस जब किसी बड़े अपराधी को गिरफ्तार करती है तो उसे अदालत में ले जाया जाता है जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है. फिर, जेल पहुंचने के बाद आरोपी वहीं सुरक्षित पनाहगाह से अपने कारनामे अंजाम देने लगता है. इससे भयावह नतीजे निकलते है: गिरफ्तारियां जितनी अधिक होंगी, अपराध भी बढ़ÞÞता जाएगा. इसलिए यह सच है कि जेल अधिकारियों की मिलीभगत से वह मकसद ही नाकाम हो गया है जिसके लिए ए जेलें बनाई गई हैं.
बिहार की जेल में कैद बाहुबली सामान्य ढंग से ही सक्रिय हैं. 2015 में ही निर्दलीय एमएलसी रीतलाल यादव, विधायक अनंत सिंह, पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन के खिलाफ जेल उल्लंघनों के लिए नए एफआइआर दर्ज हुए. विपक्ष के नेता, बीजेपी के प्रेमकुमार कहते हैं, बिहार में अधिकांश आपराधिक मामले जेल से जुड़े हैं. जेल अधिकारियों पर भारी दबाव होता है या उनकी मिलीभगत होती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद गृह विभाग के प्रभारी हैं उन्हें फौरन व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए या कबूल करना चाहिए कि हालात उनके काबू में नहीं हैं.
जेल से हत्या का फरमान
दरभंगा में दो इंजीनियरों ब्रजेश कुमार सिंह और मुकेश कुमार सिंह की हत्या उनकी गुडगांव स्थित निर्माण कंपनी के रंगदारी का पैसा देने से इनकार करने पर हुई, जिसका 120 किमी लंबे बेगूसराय-दरभंगा राज्य राजमार्ग पर काम चल रहा है. परियोजना की लागत 700 करोड़ रु. है और इस पर काम आधा हो चला है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस निर्माण कंपनी से परियोजना की कुल कीमत का दस फीसदी रंगदारी के रूप में मांगा गया था. इस हत्याकांड से बिहार में बड़ी परियोजनाओं के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है. इसकी पड़ताल पुलिस को एक और जेल की ओर ले गई. मुकेश का आका, बिहार में फल-फूल रहे रंगदारी उद्योग का मास्टरमाइंड संतोष झा को अब गया से भागलपुर सेंट्रल जेल भेजा गया है. झा मोबाइल फोल के जरिए हत्यारों के संपर्क में था और फेसबुक मैसेंजर के जरिए बारीक ब्यौरों के साथ उन्हें निर्देश भी दे रहा था. इसमें एक निर्देश दो इंजीनियरों के सफाए का भी था.
रंगदारी का ठेका
पूर्व माओवादी और अब अपराध सरगना 40 वर्षीय संतोष झा के खिलाफ हत्या, रंगदारी-फिरौती वसूली, अपहरण और एक ह्लबारूदी सुरंग विस्फोटह्व के मामले दर्ज हैं. कथित तौर पर उसने बिहार में बड़ी निर्माण कंपनियों से करोड़ों रु. उगाहे हैं. टेक्नोसेवी अपराधियों की नई जमात में से एक झा ह्लपीपल्स लिबरेशन आर्मीह्व के बैनर तले उत्तरी बिहार की सड़क निर्माण कंपनियों और नेपाल के समृद्ध कारोबारियों को अपना निशाना बनाता है. वह ज्यादातर अपने जाति वालों को गिरोह में शामिल करता है और कथित तौर पर उत्तरी बिहार और नेपाल से करीब 1,000 लोगों से वसूली कर चुका है. इस गिरोह की मांग से इनकार करने पर कम से कम छह इंजीनियर अपनी जान गंवा चुके हैं.
जून 2014 में पश्चिम बंगाल में गिरफ्तार किया गया झा फिलहाल गया जेल में बंद है लेकिन उसके दबदबे से ही पाठक को शिवहर जेल के अधिकारियों पर अपना रंग जमाने में मदद मिली. पुलिस पड़ताल से पता चला कि फेसबुक के जरिए गिरोह के सदस्यों से संपर्क में रहने के अलावा झा अपने सात शॉर्पशूटरों को नेटबैंकिंग के जरिए तय वेतन भी देता रहा है. जब्त दस्तावेजों में झा के शूटरों से जुड़े 25 बैंक खाते भी हैं. गिरोह के गुर्गों के दर्जन भर एटीएम कार्ड भी जब्त किए गए हैं. यह समस्या सिर्फ झा के गिरोह से ही जुड़ी नहीं है. लगातार सिफारिशों के बावजूद जेल विभाग बिहार की 58 जेलों में से एक में भी जैमर नहीं लगा पाया है जबकि यह सभी मानते हैं कि कैदियों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल ही अपराध में इजाफे का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है.
यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अपराध के प्रति जीरो टालरें के रवैए की नीति का कोई खास असर नहीं दिख रहा है. जेडीयू प्रवक्ता, राज्यसभा सदस्य के.सी. त्यागी कहते हैं, ह्लसरकार ने बिहार के जेलों से आपराधिक गतिविधियों के रिश्ते पर गौर किया है. अगर अनियमितताएं पाई गईं तो जेल अधिकारियों समेत कोई भी बख्शा नहीं जाएगाह्व लेकिन बातें करने भर से काम नहीं चलेगा, उन पर अमल करना होगा. बिहार के इतिहास और पिछले छह महीने में बढ़ते अपराध के मद्देनजर यह आसान नहीं लगता है.(सौजन्य: इंडिया टुडे)






Related News

  • लोकतंत्र ही नहीं मानवाधिकार की जननी भी है बिहार
  • भीम ने अपने पितरों की मोक्ष के लिए गया जी में किया था पिंडदान
  • कॉमिक्स का भी क्या दौर था
  • गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
  • वह मरा नहीं, आईएएस बन गया!
  • बिहार की महिला किसानों ने छोटी सी बगिया से मिटाई पूरे गांव की भूख
  • कौन होते हैं धन्ना सेठ, क्या आप जानते हैं धन्ना सेठ की कहानी
  • यह करके देश में हो सकती है गौ क्रांति
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com