बिहार दिखाता रहा है देश का राह
सरोज कुमार
अब बिहार में चुनावी दौर को जनता ने बेहद शांति के साथ निपटा दिया है. कहा जा रहा है कि उसने वैमनस्य की सियासत की जगह सद्भाव और विकास पर अपना मत जाहिर किया है. तो क्या हमें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है? अतीत अगर गौरवशाली रहा हो तो क्यों नहीं? आज से करीब 2,700 साल पहले जब दुनिया का लोकतंत्र से साबका भी नहीं पड़ा था, बिहार के वैशाली में इसकी नींव रखी जा रही थी. ईसा पूर्व छठी सदी में वैशाली में लिच्छवियों के संघ ने गणतंत्र की स्थापना की और यहां के शासक जनता के चुने प्रतिनिधियों की ओर से तय होने लगे थे. जाहिर है, लोकतंत्र और सामाजिक चेतना बिहार की रगों में दौड़ती है.
बिहार की यह उपलब्धि देश और दुनिया में इसके योगदान का नमूना भर है. ऐसी अनेक ऐतिहासिक, सामाजिक-सांस्कृतिक विरासतें यहां मौजूद हैं, जो इसके गौरवशाली अतीत का बखान करती हैं. नालंदा विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षा केंद्रों का जिक्र देश में और कहां है? आॅक्सफोर्ड जैसी जगहों पर विश्वविद्यालय की जब बुनियाद पड़ रही थी, उस वक्त इसकी प्रतिष्ठा पताका दुनिया में लहरा रही थी. जहां चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, फारस समेत अन्य देशों के छात्र शोध करने आते थे. महान गणितज्ञ और खगोलविद् आर्यभट्ट भी यहीं के थे.
प्रदेश का धार्मिक सद्भाव भी इसको अनोखा बना देता है. सीता का जन्मस्थान सीतामढ़ी को माना जाता है, तो बौद्धों का प्रतिष्ठित महाबोधि मंदिर बोधगया में है. गौतम बुद्ध ने यहीं ज्ञान प्राप्त कर दुनिया को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था. समृद्ध बौद्ध परंपरा की वजह से प्रदेश के नाम की उत्पत्ति को बौद्ध विहारों के साथ जोड़ा जाता है. इसी तरह वैशाली का कुंडलपुर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर का जन्मस्थान है. सिखों का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित गुरुद्वारा पटना साहिब राजधानी पटना में है, तो बिहार शरीफ सूफी परंपरा की विरासत है. विभिन्न धर्मों की यह ही अहम बातें इसको धार्मिक विविधता और सद्भाव का रूप देती हैं.
बिहार ने विश्वविजेता सिकंदर का भी रथ रोक दिया था. देश में ग्रांड ट्रंक सरीखी उन्नत सड़क बनवाने वाले शेरशाह सूरी ने दिल्ली सल्तनत के हुमायूं को शिकस्त दी थी. बिहार का आधुनिक इतिहास भी इसकी भूमिका की तस्दीक करता है. अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के पहले विद्रोह में कुंवर सिंह के योगदान को भला कौन भूल सकता है. महात्मा गांधी ने भी आजादी की लड़ाई के आगाज के लिए प्रदेश के चंपारण को ही चुना था. निकट अतीत में देखें तो इमरजेंसी के दौरान जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में क्रांति के बिगुल ने पूरे देश को आंदोलित किया था. ए बातें प्रदेश की सामाजिक चेतना और जुझारूपन की कहानी बयान करती हैं.
आज इन्हीं विरासतों से सबक लेने की जरूरत महसूस होती है. सन् 2000 में झारखंड के अलग हो जाने से बिहार ने अलग स्वरूप लिया. इस बंटवारे के बाद प्रचुर खनिज-संसाधनों से वंचित हो जाने के बावजूद अपने सीमित संसाधनों के बूते 94,163 वर्ग किमी और 10.39 करोड़ आबादी वाला यह राज्य विकास की ओर बढ़Þ रहा है. ’70, ’80 और ’90 के दशकों में दलितों-पिछड़ों की सामाजिक और राजनैतिक क्रांति के बाद भी बिहार काफी बदला. वहीं विकास के मामले में फिसड्डी माने जाने वाले इस प्रदेश की विकास दर पिछले दशक में लगातार सुधरी है. इसकी साक्षरता दर 2001 में जहां 47 फीसदी थी, वह अब करीब 62 फीसदी हो गई है. आइआइटी, आइआइएम, निक्रट जैसे संस्थान खुल गए हैं तो नालंदा विश्विविद्यालय का गौरव लौटाने की कोशिशें जारी हैं. असल में बिहार में संघर्ष करने और आगे बढ़?े का माद्दा है. चाहे त्योहार हों, रहन-सहन हो, पहनावा हो या फिर खानपान, हर मामले में यहां शुद्ध देसी मिजाज देखने को मिलता है. मगही, मैथिली, अंगिका और भोजपुरी जैसी बोलियां भी इसकी विविधता बयान करती हैं तो यह लीची की मिठास और लिट्टी-चोखे के अलहदा स्वाद के लिए भी मशहूर है.
इस वार्षिक विशेषांक में हम इस प्रदेश की खासियतें पेश कर रहे हैं. ऐतिहासिक स्थल, सांस्कृतिक आयोजन, स्ट्रीट फूड, प्राकृतिक-धार्मिक स्थल, होटल और संग्रहालय जैसे क्षेत्रों पर विशेषज्ञों की राय समेत हमने हर क्षेत्र की तीन बेहतरीन मिसालें चुनी हैं. इनमें बिहार की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान और पर्यटन के मुख्य आकर्षणों से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां हैं.from http://aajtak.intoday.in/story/bihar-always-shows-path-to-nation-and-society-1-842872.html
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