खत्म हो सकती है सोनपुर मेले की पहचान
अगले साल से नहीं आएंगे हाथी!
विवेक कुमार
सोनपुर. सोनपुर मेला को एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। इसका नाम आते ही जेहन में हाथी और घोड़ों की तस्वीर उमड़ती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से मेला में हाथी बहुत कम संख्या में आ रहे हैं। हालत यह हो गई है कि इस साल मेला में सिर्फ 14 हाथी आए हैं। हाथी मालिकों का कहना है कि इस बार वे मेले की इज्जत के चलते आ गए हैं, लेकिन अगले साल नहीं आएंगे, बहुत संभव है कि अगले साल इस मेले में एक भी हाथी न आए।
हाथी से है मेले की पहचान
मेला मालिक मनोज सिंह कहते हैं कि सोनपुर की पहचान ही हाथी से है। पौराणिक कथा के अनुसार यहां हाथी और मगर के बीच लड़ाई हुई थी, जिसमें भगवान विष्णु ने अपने चक्र से मगर को काटकर हाथी को मुक्त कराया था। पहले मेला हाजीपुर में लगता था। बादशाह औरंगजेब ने हाजीपुर की जगह सोनपुर में मेला लगवाया। राजा-महाराजा के समय सोनपुर और हाजीपुर में गंडक नदी के दोनों किनारे पर हाथी रखे जाते थे। हजारों हाथी इस मेले में आते थे। यह मेला तब राजाओं के लिए सैन्य शक्ति बढ़Þाने का जरिया हुआ करता था। राजा यहां से हाथी, घोड़ा और हथियार (भाला, तलवार, कटार आदी) खरीद कर ले जाते थे।
हाथी नहीं आए तो विदेशी पर्यटक भी नहीं आएंगे
मनोज के अनुसार विदेशी पर्यटकों के बीच हाथी का खास आकर्षण है। वे यहां हाथियों की तस्वीर लेते हैं और उनके बारे में जानते हैं। मेले से हाथी गायब हुआ तो विदेशी पर्यटक भी नहीं आएंगे। विदेशी पर्यटक यहां थिएटर और नौटंकी देखने नहीं आते।
वन विभाग की सख्ती के कारण मेला में कम आते हैं हाथी
वन्य प्राणी अधिनियम 2003 के तहत हाथियों की खरीद बिक्री पर रोक लगाई गई है। पहले लोग दान के नाम पर हाथियों की खरीद बिक्री कर लेते थे, लेकिन अब दान की आड़ में भी हाथी की बिक्री होने पर भी स्वामित्व प्रमाण पत्र नहीं मिलता है। मेला में हाथी लाने के लिए पहले वन विभाग से परमिशन लेना पड़ता है। लोग परमिशन के बाद हाथी लाते हैं और मेला से जाते समय भी फोटो के साथ वन विभाग को यह दिखाना पड़ता है कि उनके हाथी की बिक्री नहीं हुई है। वन विभाग ने सभी पालतु हाथियों के शरीर में ट्रांसमीटर लगा दिए हैं, जिससे वह हाथियों को ट्रैक करता है।
इस तरह की कागजी प्रक्रिया से हाथी मालिक मेला में आने के प्रति हतोत्साहित हुए हैं। मेला में अपने हाथी के साथ आए वैशाली के गोपाल शरण सिंह कहते हैं कि हम मेला में हाथी सिर्फ प्रदर्शन के लिए लाते हैं। हाथी को यहां लाने और रखने का पूरा खर्च हम उठाते हैं। वन विभाग की कागजी कार्रवाई पूरी कराने में बहुत परेशानी होती है। इस बार तो मेले में अपना हाथी लाया हूं, लेकिन अगले साल से नहीं लाऊंगा।
साल दर साल घटती गई हाथियों की संख्या
मेला मालिक मनोज सिंह के अनुसार मेला में हाथियों की आवक साल दर साल घटती जा रही है। पहले यहां असम और उत्तर प्रदेश से भी हाथी आते थे, लेकिन खरीद बिक्री पर रोक लगने के बाद से बाहर के हाथी नहीं आ रहे हैं। मेला में 1998 में 170, 2000 में 133, 2003 में 70, 2013 में 60, 2014 और 34 हाथी आए थे। इस साल सबसे कम 14 हाथी आए हैं और जिस तरह से हाथी मालिकों में नाराजगी है ऐसा लगता है कि अगले साल यह मेला हाथी विहीन हो जाएगा।
जंगली हाथी से ज्यादा पालतू हाथी सुरक्षित
सारण जिले के संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि वे हाथी को अपने घर के सदस्य की तरह रखते हैं। हाथी को हम भगवान गणेश का रूप मानकर पूजते हैं। वह हमारी शान है। हम 24 घंटे हाथी पर नजर रखते हैं, उसकी देखभाल के लिए दो लोगों को लगाया जाता है। बीमार पड़ने पर हाथी का इलाज कराया जाता है। हमारे हाथी जंगली हाथी से अधिक स्वस्थ और सुरक्षित हैं। जंगल में हाथियों के रहने की जगह नहीं है। खाने की तलाश में हाथी गांव में घुस रहे हैं। रेलवे ट्रैक पर ट्रेन से कटकर हाथियों की मौत हो रही है। वन विभाग के लोग इसके लिए कुछ करने की जगह हाथी मालिकों को परेशान करते हैं। fraom bhaskar.com
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