चर्चा चुनाव की नहीं, हो रही नेपाल की

castसंजय कटियार

पूरे बिहार की तरह सीतामढ़ी में भी चुनाव होने हैं, पर यहां चर्चा चुनाव की नहीं, नेपाल की है। इसकी चिंता नहीं है कि विधायक कौन हो, चिंता रोजी-रोटी की है। नेपाल के साथ इनका रोटी-बेटी का रिश्ता जो है। उदासी छाई हुई है चारों तरफ। बैरगनिया के बाजार में जाइए तो दुकानदारों की आंखें सीमा पर टकटकी लगाई सी दिखती हैं। सीमा पार से ही तो चलता है इनका बाजार। जानकी जन्म स्थली के रूप में विख्यात सीतामढ़ी में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। आस्था के केंद्र होने के बाद भी आस्था के प्रतीक यहां दम तोड़ रहे हैं। हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक संजय कटियार की रिपोर्ट

पौराणिक आख्यानों में सीतामढ़ी त्रेतायुगीन शहर के रूप में वर्णित है। मान्यता है कि यहीं पर सीता जी धरती से प्रकट हुई थीं। अपने पौराणिक महत्व के बावजूद मिथिला के इस बदहाल जिले को इनदिनों बेहाली के लिए एक और वजह मिल गई है, नेपाल सीमा पर चल रहा मधेसी आंदोलन। दो महीने से ये आंदोलन जिले को तगड़ी आर्थिक चोट दे रहा है। नेपाल सीमा से सटे कन्हवा, सोनवर्षा, भिट्ठामोड़, बैरगनिया और सरिसवा के बाजार इनदिनों वीरान है। ये बाजार इसके तीन विस क्षेत्र परिहार, सुरसंड और रीगा में आते हैं।
पूरे बिहार की तरह यहां भी चुनाव होने हैं, पर चर्चा चुनाव की नहीं, नेपाल की है। इसकी चिंता नहीं है कि विधायक कौन हो, चिंता रोजी-रोटी की है। नेपाल के साथ इनका रोटी-बेटी का रिश्ता जो है। उदासी छाई हुई है चारों तरफ। बैरगनिया के बाजार में जाइए तो दुकानदारों की आंखें सीमा पर टकटकी लगाई सी दिखती हैं। सीमा पार से ही तो चलता है इनका बाजार। पेट्रोल पंपों पर ऐसा सन्नाटा भी पहले कभी देखा नहीं गया। कब आंदोलन खत्म होगा? कब सीमा पर धरना टूटेगा? फिर से कब आवागमन सामान्य होगा? न जाने ऐसे कितने सवाल इनके जेहन में तैर रहे हैं। लेकिन जवाब नहीं मिल रहा। इन क्षेत्रों से किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी जहां ऐसे सवालों से कन्नी काट रहे हैं, वहीं क्षेत्र में आ रहे कुछेक बड़े नेता दूसरे गठबंधन को मौका ताड़कर घेर रहे हैं, पर यहां के लोगों अनुत्तरित ही रह जाते हैं। बैरगनिया चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष मो.  सलाउद्दीन के अनुसार यहां का 90 फीसदी व्यवसाय चौपट हो चुका है। सीतामढ़ी को मिलाकर इस जिले में आठ विस सीटें हैं। सीमा पर आंदोलन की ताजा समस्या के अलावा सीतामढ़ी की तीन विस नक्सली गतिविधियों से प्रभावित हैं। ये रुन्नीसैदपुर, रीगा और बेलसंड हैं, पर यहां भी नक्सल समस्या की चर्चा कम ही होती है। बातें तो विकास की होती हैं, पर वह कहीं दिखता नहीं है। शिवहर से सीतामढ़ी जाइए तो सिंगल रोड है। ज्यादातर जर्जर। ये एनएच 104 है। मुजफ्फरपुर को सीतामढ़ी से जोड़ने वाले एनएच 177 से बिल्कुल अलग। बागमती की पुरानी धारा पर अंग्रेजों के जमाने का लोहा पुल दस साल से क्षतिग्रस्त है। कई बार पुल को सुरक्षा कारणों से बंद भी किया जा चुका है, लेकिन गुजरना इसी से होता है। ये राजमार्ग नक्सल प्रभावित बेलसंड से होकर गुजरता है। नेताओं के विकास के वादों और दावों की धज्जियां उड़ाता हुआ आगे बढ़ता है। जैसे तैसे बसे छोटे-मोटे टोले और बदहाल जिंदगी जैसे बताती है कि नक्सलवाद के लिए बेलसंड की धरती इतनी उर्वर क्यों है? सीतामढ़ी पहुंचते हालात सुधरते हैं तो एक अव्यवस्थित शहर सामने आ खड़ा होता है। जाम रोज की बात है। पांच साल में सीतामढ़ी शहर को सिर्फ लखनदेई नदी के ऊ पर एक नया पुल ही बना है। पेयजल के लिए बन रहीं दो पानी की टंकियां चालू नहीं हो पाई हैं। आईसीयू का भवन पांच साल से बनकर तैयार खड़ा है, पर लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा। सदर अस्पताल को अभी तक जिला अस्पताल का दर्जा नहीं मिल पाया है। यहां खेती ही मुख्य व्यवसाय है, लेकिन बाढ़ और सुखाड़ हर साल की बात है। बागमती के अलावा रातो,  मरहा-हरदी, धौंस आदि नदियां कई प्रखंडों के बड़े क्षेत्र को डुबो देता है। तटबंध जर्जर हैं। टूटने का खतरा बना रहता है। राजकीय नलकूप सिर्फ कागज पर सिमट कर रह गए हैं। अभी भी करीब 40 फीसदी ग्रामीण इलाके बिजली से वंचित हैं, लिहाजा बेहद उर्वर जमीन के बावजूद किसानों की हालत नहीं सुधर रही है। जिले को पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया सकता है।

जानकी जन्म स्थली के रूप में विख्यात सीतामढ़ी में दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। शहर के जानकी स्थान, पुनौरा धाम, हलेश्वर स्थान, बथनाहा में पंथपाकड़, बाजपट्टी में बौद्धायन, पुपरी का नागेश्वर स्थान व सोनबरसा का मढिया आस्था के केंद्र हैं, लेकिन यहां न तो सुविधाएं हैं और न ही कोई कोशिश ही दिखती है। जिले से कई मंत्री हुए हैं, पर कभी सीता सर्किट तो कभी पर्यटन नगरी बनाने की घोषणाएं करने के अलावा कुछ नहीं किया। आस्था के केंद्र होने के बाद भी आस्था के प्रतीक यहां दम तोड़ रहे हैं। नेपाल की पहाडियों से निकली लखनदेई नदी शहर से गुजरती है। इसे सीता की सखी भी कहते हैं। मान्यता है कि सीताजी के साथ ये नदी आयी थी। शहर के लोग इसी के तट पर धार्मिक आयोजन करते हैं, पर अब ये गंदे नाले से अधिक कुछ नहीं रह गई है। उड़ाही के लिए दो-तीन साल से आंदोलन हो रहा है। इक्का-दुक्का प्रत्याशी भी लखनदेई की बात कर रहे हैं। फिर भी ये चुनावी मुद्दा नहीं है। लगता है सीताजी की ही तरह सीतामढ़ी के भाग्य में भी वनवास ही है।

कौन जीतेगा कौन हारेगा यह तय करेगी जनता
सीतामढ़ी में आठ सीटें हैं और सभी सीटें जदयू-भाजपा गठबंधन के पास है। सीतामढ़ी रुन्नीसैदपुर, बथनाहा, रीगा, बेलसंड, परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी शामिल हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों से किस्मत आजमा रहे राजनीतिज्ञों में कई बड़े नाम हैं।सीतामढ़ी से पूर्व मंत्री सुनील कुमार पिंटू भाजपा से लड़ रहे हैं। इसके अलावा परिहार से राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे,सुरसंड से पूर्व मंत्री व जदयू से बागी हम के प्रत्याशी शाहिद अली खान और बाजपट्टी से जदयू की मंत्री डॉं. रंजू गीता भी मैदान में हैं। सीतामढ़ी से लोजपा से बागी होकर नगीना देवी निर्दलीय मैदान में उतर पड़ी हैं, जबकि रुन्नीसैदपुर से निवर्तमान विधायक व अब सपा प्रत्याशी गुड्डी देवी चुनावी मैदान में हैं। एनडीए के लिए सुकून है कि यहां उसके खेमे में बगावत कम है। यह इसके पक्ष में है और इसका फायदा मिल सकता है। from livehindustan.com






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