कभी शहाबुद्दीन से थरथराते थे लोग, जिसे पीटा था उसी ने हराया
बिहार कथा. सीवान। बिहार में राजद के शासन में पूर्व सांसद शहाबुद्दीन खौफ का दूसरा नाम हुआ करते थे। लोग इनसे थरार्ते थे। फिलहाल वो जेल में बंद हैं। लेकिन बिहार के डॉन और आतंक के पर्याय रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन अर्थात साहब का जलवा ऐसा था कि पूछिए मत। सीवान में आज भी लोग नाम लेकर नहीं पुकारते। जेल में बंद होने बावजूद उनका खौफ लोगों पर भारी है और उनकी पहचान साहब की बनी हुई है। बीते करीब 27 सालों से ऐसा ही हो रहा है।
शहाबुद्दीन का जन्म बिहार के सीवान जिले के प्रतापपुर में 10 मई 1967 को हुआ था। कॉलेज के दिनों से ही इनकी दबंगई के चर्चे आम थे। महज 21 साल की उम्र में शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान के एक थाने में पहला मामला दर्ज हुआ था। देखते ही देखते शहाबुद्दीन सीवान के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बन गए। शहाबुद्दीन पर उम्र से भी ज्यादा 56 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से 6 में उन्हें सजा हो चुकी है। भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण व हत्या के मामले में वह आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं।
1986 में पहली प्राथमिकी दर्ज
निशानेबाज शहाबुद्दीन का सियासी सफर शुरू होने से काफी पहले दबंगई की शुरुआत हो गई थी। रिकॉर्ड के मुताबिक उन पर पहली प्राथमिकी 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुई थी। उसके बाद तो उनकी छवि ऐसी बनी कि लोग सरेराह उनका नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। चुनाव लड़ने के दौरान सीवान शहर में शहाबुद्दीन की पार्टी को छोड़कर दूसरे किसी प्रत्याशी का झंडा लगाने की हिम्मत किसी को नहीं होती थी। शहाबुद्दीन पर हत्या, अपहरण और हत्या रंगदारी के दर्जनों मुकदमें जुड़ते गए।
1990 में पहुंचे विधानसभा
सीवान जिले के जिरादेई विधानसभा से वह पहली बार जनता दल के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। तब वह सबसे कम उम्र के जनप्रतिनिधि थे। दोबारा उसी सीट से 1995 में चुनाव में जीत दर्ज की। 1996 में वह पहली बार सीवान से लोकसभा के लिए चुने गए। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाए जाने की बात चर्चा में ही आई थी कि मीडिया में शहाबुद्दीन के आपराधिक रिकॉर्ड की खबरें छपीं। इस प्रकार उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का मामला पीछे रह गया।
शहाबुद्दीन ने जिसे पीटा था, उसी ने हराया 2 बार
शहाबुद्दीन के टेरर के खिलाफ आवाज उठाने वाले भाकपा माले के छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और उनकी हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को 2007 में आजीवन कारावास की सजा हुई थी। आपराधिक मामले में सजा मिलने के बाद चुनाव आयोग ने उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में वह चुनाव नहीं लड़ सके। ऐसे में राजद ने 2009 और 2014 में शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को टिकट दिया था, पर निर्दलीय ओम प्रकाश यादव ने 2009 में उन्हें करीब 60 हजार वोटों से हरा दिया था। इसके बाद 2014 में बीजेपी के टिकट पर ओम प्रकाश ने 1 लाख से भी ज्यादा वोटों से हीना को हरा दिया। यह वही ओम प्रकाश थे जिन्हें कभी शहाबुद्दीन ने सरेआम पीटा था।
आईएसआई से लिंक की रिपोर्ट
राज्य के तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के आईएसआई से लिंक के बारे में सौ पेज की रिपोर्ट दी थी। तब वह रिपोर्ट देश भर में चर्चा में थी। दरअसल, अप्रैल 2005 में सीवान के तत्कालीन एसपी रत्न संजय और डीएम सीके अनिल ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापेमारी की थी। उस दौरान पाकिस्तान निर्मित कई गोलियां, एके 47 सहित ऐसे उपकरण मिले थे जिसका इस्तेमाल सिर्फ मिलिट्री में ही किया जाता है। उसमें नाइट ग्लास गॉगल्स और लेजर गाइडेड भी शामिल था। इन उपकरणों पर पाकिस्तान आडिनेंस फैक्टरी के मुहर लगे हुए थे। शहाबुद्दीन पर हुई कार्रवाई के बाद तब की राबड़ी सरकार ने ओझा को उनके पद से तबादला कर दिया था।
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष की हत्या में हाथ?
मार्च 1997 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर को सीवान में तब गोलियों से छलनी कर दिया गया था, जब वह भाकपा माले के एक कार्यक्रम के सिलसिले में नुक्कड़ सभा कर रहे थे। शहर के जेपी चौक पर हुए हमले में शहाबुद्दीन के बेहद करीबी रहे रुस्तम मियां को सजा हो चुकी है। यह अजीब है कि अपराध की दुनिया में खासा दखल रखने वाले शहाबुद्दीन ने मुजफ्फरपुर के बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइंस में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
लगता था कोर्ट, सुनाया जाता था फैसला
सामाजिक जीवन पर शहाबुद्दीन का प्रभाव तो पहले से ही पड़ना शुरू हो गया था। पर जैसे-जैसे पावर यानी सत्ता का संरक्षण मिलता गया, उनकी ताकत भी बढ़ÞÞती गई। शहाबुद्दीन की अदालत काफी सुर्खियों में रही थी। फरियादी उनके पास आते और वहां से तत्काल न्याय पाते। इस क्रम में उन्होंने फरमान जारी किया कि डॉक्टरों की फीस 50 रुपए होगी। जाहिर है किसी में इस आदेश को नकारने की हिम्मत नहीं थी। हालांकि, अब डॉक्टरों ने अपनी फीस बढ़ÞÞा दी है। content from bhaskar.com
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