वामपंथ की जड़ पर रंगा भगवा रंग
टाइम्स न्यूज नेटवर्क
बीहट. यूं ही नहीं बेगूसराय और खासतौर पर बीहट गांव को बिहार का लेनिनग्राद कहा जाता था। आज भी इस गांव में आपको वैसे घर मिल जाएंगे जहां लेनिन की तस्वीर आपको घर के सामने की ओर लगी मिलेगी। ऐसे जैसे कि घर कह रहा हो कि वह लेनिन है, लेनिन की विचारधारा से रंगा है। ऐसा ही एक घर है आॅल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) के दिवंगत नेता चंद्रेश्वरी सिंह का।
चंद्रेश्वरी सिंह ने बिहार में वामपंथी आंदोलन की नींव रखी थी। आज भी आए दिन यह गांव वाम दलों के सिकुड़ते अस्तित्व और मिटती पहचान के बीच उन्हें उम्मीद की एक रोशनी थमाता है। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के हाल ही में हुए छात्रसंघ के चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के अंग एआईएसएफ की छात्रसंघ के अध्यक्ष पद पर जो जीत हुई उसका चेहरा बीहट का ही एक युवा है।
हालांकि यह भी सच है कि आज के दौर में बीहट भारत में वामपंथी आंदोलन और इसकी असफलता का एक चिन्ह बन गया है। बीहट तेघड़ा विधानसभा सीट में आता है। तेघड़ा विधानसभा सीट पर साल 2010 तक सीपीआई का कब्जा रहा था। 2010 में पहली बार बीजेपी ने उसे यहां हराया।
बेगूसराय लोकसभा सीटों में 7 विधानसभा सीटें हैं। 2010 में बीजेपी ने यहां से 3 सीटें जीती थीं। सीपीआई को बछवाड़ा में केवल एक सीट मिली थी। अभी के हालात इशारा कर रहे हैं कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी इस बार वामपंथ का गढ़ रहे इस इलाके में पूरी तरह से सेंध लगा देगी। यहां 12 अक्टूबर को चुनाव होने वाले हैं।
बीहट इन दिनों बीजेपी के हाथों में जाने की बदनामी से डरा हुआ है। एक सीपीआई कार्यकर्ता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी को बीजेपी के हाथों यह सीट हारने का डर है। हालांकि बीजेपी के लल्लन कुमार ने 2010 में सीपीआई से तेघड़ा सीट छीन ली थी, लेकिन बीजेपी ने उन्हें हटाकर राम लखन सिंह को टिकट दे दिया।
1950 और 60 के दशक में यहां कई कारखाने खुले। मजदूर संगठनों की शक्ल में वामपंथ यहां पैर जमाने लगा। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के रूप में एक बेहद हिंसक वामपंथ विरोधी लहर चली। दोनों के आपसी संघर्ष में कई मौतें हुईं। साल 1969 से 1982 के बीच बेगूसराय में जितनी राजनैतिक हत्याएं हुईं उतनी भारत के किसी और जिले में नहीं हुईं। भूमिहार जाति की बहुलता वाले बीहट में यह सब 1969 में शुरू हुआ। कांग्रेस के सदस्य नारायण सिंह याद करते हैं कि कांग्रेस के नेता अनु सिंह की वामपंथियों द्वारा की गई कथित हत्या के बाद किस तरह हत्याओं का दौर शुरू हुआ।
जानकारों का कहना है कि इस इलाके में भी बीजेपी का भगवा रंग वामपंथ के लाल रंग पर हावी हो रहा है। वे कहते हैं कि यह प्रक्रिया मोदी के आने के बाद खासतौर पर उभर कर सामने आई है।
जानकार मानते हैं कि तेघड़ा में सीपीआई बीजेपी को नहीं हरा सकेगी। उनका मानना है कि बीजेपी को रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि महागठबंधन इस जगह से राम लखन सिंह के रूप में एक भूमिहार प्रत्याशी खड़ा करे।
बीहट की लेनिनग्राद के तौर पर पहचान कायम है या नहीं यह तो अलग मुद्दा है, लेकिन इतना तो तय है कि वामपंथ की मजबूत जड़ वाले इस इलाके में भी जातिय समीकरण बेहद प्रभावी है।
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