इस तरह भाजपा में एक गैंग के शिकार बनें जनकराम और ऐसे हुई डा सुमन की जदयू में एंट्री

विशेष संवाददाता, बिहार कथा, गोपालगंज. संसद का सत्र चल रहा था. गोपालगंज के सांसद दिल्ली में थे. गोपालगंज भाजपा के वरिष्ठ नेता राम प्रवेश राय, मिथिलेश तिवारी, सुभाष सिंह और इंद्रदेव मांझी ने एक  यह तय किया कि सांसद के फंड का उपयोग अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में कराया जाए और तब के असान्न विधानसभा चुनाव में जनता के बीच अपना विकास कार्य दिखा कर उन्हें मोह लिया जाए. इसके के लिए इस गैंग ने जनक राम से संपर्क साधा. बात हुई कि दिल्ली से लौटने के बाद मुलाकात होगी. जैसे ही जनकराम लौटे, इस गैंग ने उन्हें विधायक सुभाष सिंह के आवास पर बुलााय. जनक राम ने कहा कि किसी के घर पर बैठक के बजाय सर्किट हाउस ठीक रहेगा. सर्किट हाउस खुला. सब बैठे. वहां भाजपा नेताओं के इस गैंग ने जनक राम के सामने यह प्रस्ताव रखा कि विधानसभा चुनाव आने वाला है. उन लोगोंं को चुनाव जीतना है. इसलिए सांसद मद का एक-एक करोड उन चारों नेताओं के क्षेत्र में हो. इसके लिए जनक राम से उनका पैड मांगा गया. सांसद अव्वाक रह गए. लेकिन वे बसपा में रहते रहते ऐसे सिचुएशन को हैंडल करना सीख गए थे. सांसद ने इस गैंग से कहा कि अभी तो फंड भी नहीं आया है. तो क्या प्रस्ताव मिला कि आप पैड दे दीजिए हम लोग काम लिख देते हैं और जब फंड आएगा तब होगा. सांसद जनक राम ने टालने में चालाखी समझी. उन्होंने कहा कि जिस पंचायत में विधायक मद से काम नहीं हुआ है और जिस कार्यकर्ता को काम नहीं मिला है, आप लोग उनका ब्यौरा दे दीजिए वहां काम करा देंगे. जनक राम की यह बात उस गैंग को नागवार गुजारी. बैठक वहीं खत्म हो गई और बैठक से भाजपा का यह गैंग जनकराम के प्रति मन में खटास लेकर सर्किट हाउस से निकला. आगे विधानसभा चुनाव था. इसलिए सब उसकी तैयारी में लग गए. भोरे और बरौली की सीट से भाजपा को जनता ने बेदखल कर दिया. पूर्व मंत्री रामप्रवेश, विधायक सुबाष सिंह और मिथिलेश तिवारी के दिल से सांसद जनक राम को रबर स्टैंप बनाने की रणनीति में फेल होने की टिस खत्म नहीं हुई. उसके बाद से गाहे बगाहे जब मौका मिलता, सांसद को निचा दिखाने का खेल और इसके खिलाफ प्रोफेगेंडा फैलाने का जाल शुरू हुआ.
दो साल पहले बनी थी जनक को रिप्लेस करने की रणनीती
सांसद जनक राम के तीन साल के कार्यकाल बीत जाने के बाद भी भाजपा के इस गैंग के हाथ जनक राम से कुछ हाथ नहीं लगा तो इन्होंने आगामी चुनाव में जनक राम को रिप्लेस करने की रणनीति बनाई. नए नेता के रूप में डा आलोक कुमार सुमन प्रोजेक्ट हुए. बहुत कम लोगोंं को यह जानकारी है कि एक वक्त था जब जनकराम बसपा में रहते डा आलोक सुमन को चुनाव लडाना चाहते थे तब उन्होंनेे कहा था कि वे बसपा से नहीं लडेंगे और बहन जी ने जनकराम को जबरन टिकट दिया. यह बात भी बहुत कम लोगों को पता होगा कि जनक राम और डा आलोक सुमन आपस में रिश्तेदार हैं. दोनों की छोटी बहन एक ही परिवार में ब्याही हैं.
जनक को झूठे मुकदमें में फंसाने के लिए एसपी को किया गया था दिल्ली से फोन
आलोक सुमन धीरे धीरे प्रोजेक्ट हो रहे थे. एक दिन उनके घर डकैती हुई. डकैती के प्रकरण के उद्भेदन के लिए जनक राम ने निजी रूप से गोपालगंज के एसपी से आग्रह किया ओर बताया कि डाक्टर साहब करीबी रिश्तेदार हैं. केस इसका उद्भेन जरूरी है. पैरवी कई बार की. एक बार एसपी से मिलने जनकराम पहुंचे थे. तब एसपी ने बताया कि आप जिनके पक्ष में पैरवी कर रहे थे, वे पार्टी तो आपको ही एक केस में आरोपी बनवाना चाहती थी. इसके लिए दिल्ली से भी कॉल कर प्रेशर डाला गया था. ( बहुत से लोग यह जानते हैं कि लोकसभा सचिवाल में डा सुमन के एक भाई वरिष्ठ अफसर हैं.) केस क्या था, इसकी चर्चाबाद में होगी. डा सुमन जनक राम से चिढते थे. उन्होंने इस केस में पैरवी बिहार के डीजीपी तक पहुंचाने के लिए सिवान के सांसद ओम प्रकाश से चिट्ठी लिखवाई। तब सांसद ओमप्रकाश को यह नहीं पता था कि डाक्टर सुमन जनक राम के रिश्तेदार हैं. उन्होंने चिट्ठी तो लिख दी. लेकिन जब यह चिट्ठी लेकर बिहार के डीपीजी के पास मौखिक रूप से यह कह कर दबाव बनाया गया कि इस डकैती में जनक राम का हाथ है. उन पर भी एफआईआर दर्ज हो. दरअसल डा सुमन की ओर से हर तरह से यह प्रयास हो रहा था कि कैसे भी करके बेदाग छबि वाले जनक राम केस में फंसे. डीजीपी के कार्यालय से निकलते ही जब डीजीपी ने वहां उपस्थित अन्य अधिकारियों से इस विषय पर चर्चा की तो उन अधिकारियों ने जनक राम के अच्छे व्यवहार की प्रशंसा की तथा यह कन्विंश किया कि इसमें जनकराम आरोपी हो नहीं सकते. बात आई गई हो गई. बाद में पुलिस ने डा सुमन के घर में डकैती डालने वालोंं को दबोच लिया. इसके बाद भी डॉक्टर आलोक के मन में जनक राम के प्रति खटास कम नहीं हुई. वे बार बार सांसद जनक राम को नीचा दिखने के लिए कोई मौका नहीं गंवाते थे.
स्मृति ईरानी के सामने डा सुमन ने दिखाया था जनक को नीचा 
स्मृति इरानी जिले में आईं. जिले के भाजपा नेताओं ने तिकडम कर इस नए नवेले नेता को मंच पर सबका सत्कार कराने का मौका दिया. डा साहब ने मंच की अगले पक्ति में बैठे सभी को शॉल देकर सम्मानित किया. लेकिन जनक राम को झूठ मुंह से भी नहीं ताका. मंगल पांडे ने तो वह शॉल लेने से इनकार तक कर दिया, तो इनके काफी हुज्जत के बाद हाथ में लेकर शॉल किसी दूसरे को दे दिया. डॉ सुमन ने इसका फ़ोटो अपने ट्विटर पर पोस्ट किया उसमे जनकराम को क्रॉप कर किया। जनक राम ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनका संबंधी राजनीति के लिए इस तरह से बेरुखा हो जाएगा.
खैर, पार्टी का एक गुट प्रोपेगेंडा चला कर यह दुष्पचार में असफल रहा कि जनकराम ने अपना सारा फंड गैर पार्टी के लोगों को बेच दिया. इसकी सच्चाई जनक राम जाने और फंड से काम कराने वाले. लेकिन एक हकीकत यह भी है कि जनक राम जिले में एक भी विश्वासपात्र तैयार करने में नाकाम रहें. जिन्हें उनके मद से ठेका मिला, वे भी उनके सपोर्ट में नहीं आए. कुछ ऐसा भी नहीं किया कि पार्टी में उनकी खिलाफत को लेकर डैमेज कंट्रोल कर सके. बस इसी मुगालते में रहें कि बिहार और झारखंड में भाजपा की ओर से रविदास समाज से वे अकेले नेता हैं, पार्टी उनको टिकट से कैसे बेदखल कर सकती है. लेकिन राजनीति में गुमान कभी कभी आत्मघाती हो जाता है.
डा. सुमने के सामने सुशील मोदी ने डाटा था विधायक गैंग को
हाल ही की तो बात है कि जब पटना में भाजपा की रैली थी. रैली के बाद  रामप्रवेश राय और सुबाष सिंह डा आलोक को लेकर सुशील मोदी के पास पहुंचे. जैसे ही जनक के बदले डा सुमन को गोपालगंज से उम्मीदवार बाने का प्रस्ताव रखा, सुशील मोदी खीझ गए. डांटते हुए बोले कि एक तो जनक सीटिंग एमपी हैं उसे कैसे टिकट काट सकते हैं और दूसरा इस सीट को जदयू मांग रहा है. यह गैग सुशील मोदी के यहां बेइज्जत हो कर निकली. उन्हें इस बात का इल्म हो गया कि यह सीट जदयू के कोटे में जा सकती है. इसलिए डा सुमन को ही उस पाले में भेज दिया जाए. इसके लिए नई रणनीति बनी. इसके लिए सारण के मंटू सिंह से संपर्क साधा गया. मंटू सिंह इन्हें लेकर यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी व नीतीश कुमार के पूर्व प्रमुख सचिव तथा वर्तमान में जदयू से राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह के दरबार में पहुंचे. आरसीपी सिंह ने बैकुंठपुर के बाबू साहब व हारे हुए विधायक मंजी सिंह को कॉल किया तथा इस ममले को आगे बढाने की बात कही. अगले सिंह शाम डा. आलोक सुमन बैकुंठपुर के देवालपुर में मंजीत सिंह के आवास पर थे. फोटो फेसबुक पर बायरल हुई. भाजपा के जिलाअध्यक्ष ने जब डा सुमन को फोन लगया और पूछा कि आप बैकुंठपुर में मंजीत सिंह के पास क्यों गए थे. डा साहब ने जिलाअध्यक्ष बिनोद सिंह को प्यार भरा जवाब दिया कि उन्हें सबसे मिलने के लिए निर्देश दिया गया है. इसलिए मेल मुलाकात बढाने आए हैं. बिनोद सिंह इसे हल्के में लिए इस संबंध में जब जदयू के जिलाअध्यक्ष प्रमोद पटेल से पूछा गया तब वह भी  भडक गए और बोले कि हमारा उम्मीदवार जिले दो पुराने नेता होंगे जिनके नाम सीएम को सुझाया गया है.इसकी जानकारी वे बिहार कथा के इंटव्यू में भी दे चुके हैं. लेकिन प्रमोद पटेल के पास आया एक फोनकॉल उनके तेवर को बुदल चुका था. उन्हें पटना बुलाया गया था. अगली सुबह एक टोली जिस में डा शशि थे गाडियों के काफिले में पटना जा रहे थे. फेसबुक पर यह खबर तैर रही थी कि डा सुमन जदयू में जा रहे हैं. दो घंटे बाद तस्वीरे वायरल हुई. डा साहब जदयू के हो चुके थे। 
भाजपा विधायकों ने डा. को मोहरा बना कर किया पार्टी को डैमेज
अब चूंकि जदयू की संभावित सीटों की सूची सार्वजनिक हो चुकी हैं तो यह तय माना जा रहा है कि जदयू की ओर डा आलोक सुमन मैदान में होंगे. लेकिन सवाल यह है कि जिनके मोहरे बन कर उन्होंने भाजपा से भीतरघात किया. उस पार्टी के कितने प्रशितत कार्यकर्ता उनके सपोर्ट में आएंगे. नीतीश ने सीवान और गोपालगंज से  भाजपा की दो सीटिंग सीट लेकर सीमावर्ती राज्य यूपी में पांव पसारने के दूरगामी संकेत दिया है.
(नोट उपरोक्त पूरी बात बिहार कथा की ओर से भाजपा के कई शीर्ष नेताओं से बातचीत व विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के आधार लिखी गई है)





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