कंफ्युजन में क्यों हैं गोपालगंज में यादव समाज के कुछ लोग ?
कंफ्युजन में क्यों हैं गोपालगंज के कुछ यादव समाज के लोग
साधु यादव के चक्कर में आकर तेजस्वी यादव को करेंगे कमजोर
मायावती अखिलेश यादव को यूपी में दे चुकी हैं गच्चा, उसी के हाथी पर सवार है साधु
साधु के सांसद रहते दबंगई करने वाले अभी हाशिये पर हैं, वे साधु के सहारे फिर से जिले में वर्चस्व दिखाने के फिराक में हैं.
विशेष संवाददाता. गोपालगंज.
गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक लडाई पूरी तरह से दिलचस्प होकर एक रोचक मोड पर खडी हो गई है. आमने सामने के उम्मीदवार भाजपा के सिटिंग विधायक सुबाष सिंह हैं तो महागठबंधन से कांग्रेस ने बिहार के पहले सीएम रहे अब्दुल गफूर के पोते आसिफ गफूर को मैदान में उतारा है. साधु यादव बसपा के टिकट से चुनाव मैदान में हैं. साधु यादव का वजूद तभी कमजोर हो गया था जब लालू यादव ने बिहार के राजनीति में करारी हाकर के समीक्षा में साधु यादव के कारनामें को मुख्य बजह मान कर उनहें अपने परिवार से बाहर कर दिया था. तब से साधु यादव कई बार गोपालंज की राजनीति में पांव जमाने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन हर पर फिसले हैं. इस बार वह फिर पांव जमाने की कोशिश में हैं, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी केवल वोट कटवा साबित होंगे यह वक्त बताएगा.
एक तरह से देखा जाए तो साधु यादव गोपालगंज में आकर लालू यादव और तेजस्वी यादव को कमजोर कर रहे हैं. वहीं साधु जिस पार्टी यानी बहुजन समाज पार्टी से चुनाव मैदान में हैं, वहीं बसपा उत्तरप्रदेश में ऐलान कर चुकी हैं कि अखिलेश यादव को हराने के लिये वह बीजेपी के साथ जाने को तैयार है. मतलब एक यादव को हराने के लिए साधु यादव की पार्टी सुप्रीमों हर सिद्धांत ताख पर रख दिया और वहीं दूसरी ओर यहां गोपालगंज में साधु यादव के लिए कुछ यादव समाज के लोग अंधभक्ति में लगे हैं. इससे कमजोर कोई और नहीं तेजस्वी यादव होंगे. क्योंकि एक वोट से सरकार बनती है और गिरती है. गोपागलंज के जाधवपुर की जनसभा में तेजस्वी यादव ने बिना साधु यादव का नाम लिये संकेत दिया था कि दातुन के चक्कर मेंं पूरा वृक्ष मत उखाड दिहअ लोग. इसके बाद से साधु यादव के पाले में खडे अनेक यादव कट कर महागठबंधन के प्रत्याशी आसिफ गफूर के समर्थन में आ गए. लेकिन अभी भी यादव समाज के कुछ लोग कंफ्युजन में साधु यादव का साथ दे रहे हैं. वहीं बसपा जब उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हारी थी तो अपनी हार का पूरा ठीकरा मुसलमानों के ऊपर थोप दिया था जिससे कि उनके जो दलित कैडर हैं, वह मुसलमानों से नफरत करने लगे हैं और इसको भजाने का काम भारतीय जनता पार्टी करती है. कहने का मतलब यह है कि बसपा और साधु के इस राजनीतिक खेल का लाभ भाजपा ले रही है, बस इसको गोपागलंज के कुछ यादव समाज और मुस्लिम समाज के लोग समझने के बजाय कंफ्युजन में आ गए है. यादव समाज के यही कुछ कन्फ्युज मतदाता यह कैसे अपेक्षा रखते हैं कि वे गोपागलंज में आसिफ गफूर के खिलाफ जाकर जिले के अन्य विधानसभा मुस्लिम समाज के वोटों को शत प्रतिशत पा लेंगे. इनके आपसी फुट और दुविधा का लाभ भाजपा को मिल जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. एक बात और गौर करने वाली यह है कि साधु यादव ने हर गांव पंचायत में लोकल दंबग और दागी लोगों को अपनी साथ ज्यादा लोगों लेकर घुम रहे हैं. एक जाककार व्यक्ति तो यह भी बता रहे हैं कि साधु यादव के पॉवरकाल में जिले के कई अपराधी जहां उनसे सह पाते हैं, साधु यादव के राजनीतिक रूप से कमजोर होने के बाद से वे हाशिये पर आ गए हैं. यही अपराधी माफिया फिर से अपना वजूद मजबूत करने के लिए साधु यादव को सपोर्ट कर रहे हैं.
आसिफ में व्यक्तित्व से प्रभावित हुए मतदाता
वहीं दूसरी ओर धीरे धीरे गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी आसिफ गफूर को लेकर जिले की राजनीति में एक नया और सकारात्मक माहौल तेजी से बना है. एक ओर टिकट मिलने के बाद से जहां यह महौल बनाने की कोशिश की गई है कि आसिफ गफूर बाहरी उम्मीदवार हैं, वहीं पब्लिक के मेल मुलाकात और धुंआधार जनसंपर्क से आसिफ गफूर ने यह साबित कर दिया कि वे बाहरी नहीं बल्कि उनके बीच से ही है. लोग आफिस गफूर के बाच विचार और उनके स्पष्ट विजन से काफी प्रभावित हुए हैं. मीडिया के सवाल पूछने पर आसिफ गफूर साफ कहते हैं कि गोपालगंज का अस्त्तिव कब और किसने लाया. यही नहीं यहां हालात इतने खराब हैं कि मजबूरी में हमें बाहर पढने के लिए जाना पडा. यदि गोपालगंज में पिछले 15 साल में बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था होती तो निश्चिय ही वे यही रह कर पढाई करते और अपने बच्चों को पढा रहे होते. इसी हालात को बदलना तो हर कोई चाहता है, लेकिन इसकी पहल कौन करेगा. वे यही पहल कर रहे हैं.
आखिर में वोटकटवा साबित होंगे साधु
वहीं गोपालगंज में में साधु यादव को लेकर यह हवा बनाई गई कि वे निवर्तमान विधायक सुबाष सिंह को टक्कर दे रहे हैं. लेकिन ग्राउंड हकीकत यह है कि वे लडाई में तीसरे नंबर पर रहेंगे और एक तरह से वोटकटवा साबित होंगे. ज्ञात हो कि पहले रियाजुल हक राजू के चुनाव लडने से हार और जीत कर अंतर मात्र पांच से दस हजार वोटों का ही होता था. वह भी उस स्थिति में जब कार्यकर्ता हिंदू मुस्लिम के नाम पर ध्रुवीकरण करने का प्रयास करते थे. अब चूंकि माहौल काफी सकारात्मक हो चुका है और आफिस गफूर का व्यक्तित्व और उनका फैमिली बैकग्रांउस ऐसा है जिससे उपर कास्ट के मतदाताओं का एक बडा वर्ग भी इनसे जुडने में नहीं हिचक रहा है. इसका एक और कारण यह भी है कि आसिफ गफूर के दादा कांग्रेस के बाद समाता पार्टी से गोपालगंज के सांसद भी रहे और समता पार्टी में ये पूर्व पीएम अटल बिहार वाजपेयी के पसंदीदा भी रहे.
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